SHRI KRIPALU KUNJ ASHRAM
  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog
Picture
Picture
Picture
Picture

 भक्ति शुभ दायनी ​है

Read this article in English
पिछले प्रकाशन में हमने चर्चा की थी कि भक्ति क्लेशों का अंत करती है। क्लेश को समाप्त करने के साथ-साथ भक्ति से शुभता भी प्राप्त होती है। चार चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें शुभ माना जाता है। 
शुभानिप्रीणनं सर्वजगतामनुरक्तता । सद्गुणाः सुख्मित्यादीन्याख्यातानि मनीषिभिः । 
भ​.र​.सि.
"1. सबको सन्तुष्ट करना
 2. सबका स्नेह प्राप्त करना
 3. सर्व दैवीय गुणों से युक्त होना यथा सहनशीलता, दया आदि गुण।
 4. आत्मसुख की प्राप्ति। भक्ति उन सभी को अत्यधिक मात्रा में प्रदान करती है ”।

सबको सन्तुष्ट करना

श्रीकृष्ण समस्त कारणों के कारण हैं। जब वे आपकी भक्ति से संतुष्ट होते हैं तो, शास्त्रों के अनुसार​, बाकी सब की भक्ति स्वतः हो जाती है - संतुष्टि हो जाती है। इसका उदाहरण महाभारत की कहानी में मिलता है जहाँ श्री कृष्ण ने द्रौपदी के बर्तन से चावल का एक दाना खाया और सभी ऋषि तृप्त हो गए! [1], लेकिन, अगर किसी ने श्री कृष्ण को छोड़कर अन्य सभी देवी-देवताओं की उपासना की, तो वो श्रीकृष्ण की उपासना नहीं मानी जाएगी।
​
पद्म पुराण का डिम डिम घोष है -
येनार्चितो हरिस्तेन तर्पितानि जगंत्यपि । रज्यंते जन्तवस्तत्र स्थावरा जंगमा आपि ।
"जिसने श्री कृष्ण की भक्ति कर ली है, वह न केवल देवताओं को संतुष्ट करता है, बल्कि वह जड़ तथा जंगम सभी की उपासना कर चुका "।

सबका स्नेह प्राप्त करना

जब कोई भक्ति की साधना आरंभ करता है, तो स्वर्ग में उसके पितर हर्षोल्लास से नाचते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ईश्वर प्रेम सहित सभी दिव्य गुणों का धाम है। अंश अपने अंशी (तथा उसकी संपत्ति) से स्वाभाविक प्रेम करता है। जीव ब्रह्म का अंश है अतः प्रत्येक जीव स्वाभाविक रूप से भगवान से प्यार करता है, भले ही वह जीव इस वास्तविकता से अनभिज्ञ हो या भगवान के अस्तित्व को नकारता ही क्यों न हो  [2]। परमात्मा का अंश होने के कारण जीव उन गुणों के प्रति स्वतः ही आकर्षित होता है [3]। जब भगवान भक्त के जीवन का एक प्रमुख अंग बन जाते हैं, तो अन्य जीव स्वयमेव साधक के प्रति आकर्षित होते हैं।
परन्तु तार्किक इस कथन का खंडन यह कहकर कर सकते हैं कि इतने सारे संतों को अपशब्द कहे गए और यहाँ तक कि उन्हें प्रताड़ित भी किया गया। जान लें कि कभी-कभी कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए संतों का विरोध करते हैं परंतु वे अपवाद हैं और यदा-कदा ही ऐसा होता है।

यह कथन पुराणों में भगवद्-प्राप्त संतों द्वारा लिखा गया है । वे संत​ भूत-वर्तमान और भविष्य को देख सकते थे। ऐसे त्रिकालदर्शी संतो के वाक्य सदा सत्य ही होते हैं। भले ही साधारण मायिक बुद्धि वाले जीव उन से सहमत न हों। भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए जीव को इन पर विश्वास करके साधना द्वारा आगे बढ़ना होगा । जब आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ेगी तो आप स्वयं इन कथनों की सच्चाई  को जानने में सक्षम हो जाएँगे। इनकी सत्यता को तब परखा जा सकता है ।

सर्व दैवीय गुणों से युक्त होना

भागवत दर्शाता है -
यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुरा: ।
हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा मनोरथेनासति धावतो बहि: ॥ 5.18.12 ॥
“जिसने श्री कृष्ण की भक्ति कर ली, उसके भीतर सभी देवी-देवता निवास करते हैं। जो श्री कृष्ण की भक्ति नहीं करते हैं, उनका मन संसार की मायिक वस्तुओं में आसक्त रहता है। ऐसे मन में देवी गुणों का प्रादुर्भाव किस प्रकार संभव है?”
इस विषय पर पहले विस्तार से विचार किया जा चुका है । संक्षेप में ईश्वर असंख्य दिव्य गुणों का धाम है। जैसे-जैसे मन शुद्ध होता जाता है, वैसे-वैसे जीव में दैवीय गुण स्वत: ही प्रस्फुटित होने लगते हैं [3] ।

आत्मसुख की प्राप्ति

अब, हम विभिन्न प्रकार के सुखों की चर्चा करते हैं और उसके बाद भक्त के सुख के कुछ उदाहरण देखते हैं। सुख मुख्यतः 3 प्रकार के होते हैं।
सुख वैषयिकं ब्राह्ममैश्वरं चेति तत्त्रिधा ॥
तंत्र संहिता
1. सांसारिक सुख
​

पहले प्रकार का सुख संसार का आनंद है जिसे वैषयिकं कहते हैं, जिसमें भू लोक (पृथ्वी) से लेकर ब्रह्मलोक तक सारे लोकों के ऐश्वर्य​ शामिल है [4] । कर्म के मार्ग पर चलने वालों का लक्ष्य इन स्वर्ग​ लोकों की विलासिता है । जड़ इन्द्रिय मन-बुद्धि से जड़ मायिक पदार्थों का भोग करने का सुख अर्थात​ जड़-जड़ संयोगजन्य सुख ।

जो लोग योग के मार्ग का अनुसरण करते हैं वे भौतिक सिद्धियों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिनका उपयोग वे लोकरंजन करके जनता को ठगने के लिए करते हैं। इन दोनों को एक साथ मायिक आनंद कहा जाता है। मायिक होने के कारण ये क्षणिक हैं।
Picture
विभिन्न प्रकार के सांसारिक सुख, जो क्षणिक हैं
2. ब्राह्म सुख

ब्रह्म के निराकार स्वरूप के आनंद का भोग​ ब्राह्म सुख कहलाता है जिसको ज्ञानी मुक्ति के पश्चात​ प्राप्त करते हैं। क्षणिक​ सांसारिक सुख (स्वर्ग तथा सिद्धियों) के विपरीत चेतन आत्मा-चेतन ब्रह्म​ संयोगजन्य मुक्ति रूपी ब्राह्म सुख नित्य​ है। फिर भी ब्राह्म सुख ब्रह्म की सत्ता में विलीन होने का सुख है । निराकार ब्रह्म रूप में अनंत​​ गुण प्रकट नहीं होते अतः यद्यपि यह भी नित्य​ आनंद की एक कक्षा है परंतु यह सर्वोत्कृष्ट​ आनंद नहीं है।

एक बार जाबालि मुनि वन से गुजर रहे थे तो उन्होंने अत्यंत सुंदर स्त्री को समाधि में देखा। उनको जिज्ञासा हुई कि यह स्त्री घोर वन में तपस्या क्यों कर रही है? अतः वे वहीं रुक गए तथा उस सुंदरी के आंख खोलने की 100 वर्षों तक प्रतीक्षा करते रहे। जब उन्होंने अपनी आँख​ खोली तो जाबालि मुनि ने विनम्रता पूर्वक प्रणाम किया और​ उनसे उनका परिचय पूछा। तब उन्होंने अपने परिचय में कहा -
अथाब्रवीच्छनैर्बाला तपसातीव कर्शिता ब्रह्मविद्याहमतुला योगींद्रैर्या विमृग्यते ॥ 
साहं हरिपदाम्भोजकाम्यया सुचिरं तपः चराम्यस्मिन्वने घोरे ध्यायंती पुरुषोत्तमम् ॥ 
ब्रह्मानंदेन पूर्णाहं तेनानंदेन तृप्तधीः । तथापि शून्यमात्मानं मन्ये कृष्णरतिं बिना ॥ ​
पद्मपुराणम्। खण्डः ५ .०७२. ३० - ३२ ​
Picture
ब्रह्मविद्या को समाधि में देख जाबालि मुनि को जिज्ञासा हुई
“मैं अनुपम ब्रह्मविद्या हूँ, जिसे योगीन्द्र-मुनीन्द्र खोजते हैं। मैं बहुत काल से श्रीकृष्ण के चरण-कमलों को प्राप्त करने हेतु इस घोर वन में तपस्या कर रही हूँ। मैं परिपूर्ण हूँ और ब्रह्मानंद से ओतप्रोत हूँ । फिर भी कृष्ण प्रेम के बिना मैं अपने को शून्य मानती हूँ।“
​
ज़रा सोचिए कि श्री कृष्ण का प्रेम कितना विचित्र होगा जिसको पाने के लिए ब्रह्मविद्या भी आतुर है ?
उसी कृष्णप्रेम हित गोविंद राधे । जाबालि हौं तप करौं हौं बता दे।। 3546
यह सुनि जाबालि गोविंद राधे । बने ब्रह्मविद्या शिष्य बता दे।। 3547
3. ऐश्वर्य सुख
श्री कृष्ण के अनंत, प्रतिक्षण  वर्धमान, नित्य नवायमान माधुर्य, रूप, लीला सौरस्य का रसास्वादन भक्तजन निरन्तर किया करते हैं। इस चेतन मन​-चेतन भगवान संयोगजन्य सुख ​को प्रेमानंद और ऐश्वर्य-सुख कहा जाता है।
​​
​भक्ति बिना मांगे ही भक्त को इन तीनों प्रकार के सुख प्रदान कर देती है। भगवान अपने भक्तों के पीछे-पीछे  चलते हैं और उनका योगक्षेम वहन करते हैं। भगवान कृष्ण कहते हैं -
यत्कर्मभिर्यत्तपसा ज्ञानवैराग्यतश्च यत् योगेनदानधर्मेण श्रेयोभिरितरैरपि ॥
सर्वं मद्भिक्तियोगेन मद्भक्तो लभतेंजसा, स्वर्गापवर्गं मद्धाम कथंचिद् यदि वांछति ॥
भा. 11.20.32
Picture
ब्रज गोपियों के साथ श्री कृष्ण
"कर्म, तपस्या, ज्ञान, वैराग्य, योग, दान, वर्णाश्रम धर्म और आध्यात्मिक उत्थान के अन्य सभी साधनों से जो कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है, वह सब मेरी भक्ति करके मेरे भक्त सहज ही प्राप्त कर लेते हैं । यदि कभी मेरा भक्त स्वर्ग, मुक्ति या गोलोक प्राप्त करना चाहता है, तो वह यह सब प्राप्तव्य सहज ही प्राप्त कर लेता है।"
परात्पर ब्रह्म भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से सारे प्राप्तव्य प्राप्त किए जा सकते हैं। यहाँ तक कि श्री कृष्ण का धाम गोलोक भी भक्ति प्रदान कर सकती है। वहाँ श्री कृष्ण की सेवा करने का शुभ अवसर प्राप्त होता है। भक्ति की कृपा से साधना भक्ति की अवस्था से ही अन्य साधनों के फलों में अरुचि होने लगती है। और जैसे-जैसे भक्ति बढ़ती है, भक्त अन्य सभी उपलब्धियों को उसी अनुपात में अस्वीकार कर देता है। प्रेमा भक्ति पर पहुँचने पर सारे प्राप्त प्राप्तव्यों को न्योछावर करके राधा कृष्ण की सेवा में ही निमज्जित​ रहता है।
आपने प्राचीन इतिहास में सुना होगा कि अनेक राजाओं को संसार से वैराग्य हो गया। इसलिए वे अपने उत्तराधिकारी को राजगद्दी पर बिठाकर स्वयं साधना करने के लिए जंगल में चले गए। उदाहरण के लिए, राजा दशरथ जंगल जाने से पहले राम को राजगद्दी सौंपना चाहते थे और जड़ भरत ने अपना राज्य छोड़ दिया और साधना करने के लिए जंगल में एक छोटी सी कुटिया बना ली। इसी तरह और भी कई हैं। आधुनिक काल में श्री महाराज जी तत्व ज्ञान देते रहे हैं। उन प्रवचनों को सुनकर कुछ भक्त सांसारिक आकर्षणों से इतने विरक्त हो जाते हैं कि वे सब छोड़कर श्री महाराज जी के आश्रम में सेवा करने चले जाते हैं। यह सब ईश्वर-प्राप्ति से पहले होता है। यह साधना भक्ति का प्रभाव है। सांसारिक उपलब्धियों, स्वर्ग और यहाँ तक कि मुक्ति से भी अरुचि हो जाती है। जैसे-जैसे भक्त भाव-भक्ति की ओर बढ़ता है यह वैराग्य [5] बढ़ता जाता है। अंत में, भगवत प्राप्ति के बाद, भक्त प्रेमामृत के सागर के परमानंद में पूरी तरह से लीन रहता है।
​
इस प्रकार भक्ति निरंतर क्लेशों को काटने के साथ-साथ शुभता को भी जन्म देती है। यह प्रक्रिया साधना भक्ति की स्थिति से शुरू होती है। जैसे-जैसे भक्ति परिपक्व होती है, शुभता बढ़ती जाती है, और अंत में, यह ईश्वर-साक्षात्कार [6] प्राप्त करने पर सिद्ध हो जाती है। इसलिए भक्ति शुभ दायिनी अर्थात शुभदा है।
प्रत्यक्ष अनुमान गोविंद राधे। दोनों प्रमाण गति जग में बता दे।।3548।।
ईश्वरीय क्षेत्र में तो गोविंद राधे। शब्द प्रमाण ही प्रमाण है बता दे।।3549।।
शब्द प्रमाण अर्थ गोविंद राधे। नित्य अनादि वेदवाक्य है बता दे।।3550।।
राधा गोविन्द गीत (ज्ञान)​
Translation
- Jagadguruttam Shri Kripalu Maharaj
Radha Govind Geet (Gyan)
Jagadguruttam Swami Shri Kripalu Ji Maharaj
जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
यदि आपको यह लेख लाभप्रद लगा तो संभवतः निम्नलिखित लेख भी लाभप्रद लगेगें
[1] Shri Krishna Protects His Devotees
 [2] Everyone is a Believer
[3] दैवीय गुण कैसे विकसित हों
[4] Upper Planets
[5] ज्ञानी और भक्त का वैराग्य भिन्न है
[6] What is God realization?
माया का जीव पर अधिकार कैसे और क्यों?

यह लेख​ पसंद आया​ !

उल्लिखित कतिपय अन्य प्रकाशन आस्वादन के लिये प्रस्तुत हैं
Picture

सिद्धान्त, लीलादि

इन त्योहारों पर प्रकाशित होता है जगद्गुरुत्तम दिवस, होली, गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा
Picture

सिद्धांत गर्भित लघु लेख​

प्रति माह आपके मेलबो‍क्स में भेजा जायेगा​
Picture

सिद्धांत को गहराई से समझने हेतु पढ़े

वेद​-शास्त्रों के शब्दों का सही अर्थ जानिये
हम आपकी प्रतिक्रिया जानने के इच्छुक हैं । कृप्या contact us द्वारा
  • अपनी प्रतिक्रिया हमें email करें
  • आने वाले संस्करणों में उत्तर पाने के लिये प्रश्न भेजें
  • या फिर केवल पत्राचार हेतु ही लिखें

Subscribe to our e-list

* indicates required
नये संस्करण की सूचना प्राप्त करने हेतु subscribe करें 
Shri Kripalu Kunj Ashram
Shri Kripalu Kunj Ashram
2710 Ashford Trail Dr., Houston TX 77082
+1 (713) 376-4635

Lend Your Support
Donate in US Dollar
​भारतीय रुपये में दान करें
Social Media Icons made by Pixel perfect from www.flaticon.com"
Picture

Worldwide Headquarters

Affiliated Centers of JKP

Resources

  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog