SHRI KRIPALU KUNJ ASHRAM
  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog
Picture

नव वर्ष के इस संकल्प से अनंतकाल की छुट्टी

A New Year resolution for eternity
Picture
नूतन वर्ष के आरम्भ में नए संकल्प करने की प्रथा है जैसे - मैं सप्ताह में 3 दिन व्यायाम करूँगा, मैं अपना वजन घटाने का प्रयास करूँगा, मैं मीठा कम खाऊँगा इत्यादि। कुछ कर्तव्य निष्ठ लोग अपने संकल्पों को निष्ठा पूर्वक निभाते हैं, कुछ लोग उसको बोझ मानकर अनिच्छा से पूरा करते हैं, परंतु रिसर्च कहती है कि अधिकांश लोग तो 19 जनवरी तक अपने संकल्प भूल जाते हैं - कारण कोई भी हो यथा दैनिक दिनचर्या में व्यस्त होना अथवा लापरवाही ।  जो लोग अपने संकल्प को प्राथमिकता देते हुये नियमानुसार पालन करते हैं, वे वचन के पक्के, चरित्रवान, दृढ़ निश्चयी कहे जाते हैं ।

प्रत्येक वर्ष किये गये संकल्पों और​ अपूर्ण संकल्पों की सूची अत्यधिक लंबी है । और उनके अतिरिक्त​ एक और संकल्प है जो हम अनंत बार कर चुके हैं परंतु आज तक एक बार भी उसे नहीं निभाया है ।

वो क्या संकल्प है ?

हमने भगवान को वचन दिया था, "इस बार मैं तुम्हारी भक्ति ही करूँगा" (1)। आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि मैंने ऐसा वचन कब दिया? कुछ तो यहाँ तक कह देंगे, "मुझे तो भगवान में विश्वास ही नहीं है।" कुछ ऐसा भी कह सकते हैं, "मुझे भगवान में विश्वास तो है परंतु मैं उनकी भक्ति ही करूँगा, ऐसा मैंने कब कहा? मेरे और भी कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व हैं। उनका भी तो पालन करना है । हर समय भगवान की भक्ति करने का समय किसके पास है?"

Pictureकुछ शिशु रुदन नहीँ करते क्योंकि​ वे पीड़ा को सहन न कर पाने के कारण अचेत हो जाते हैं ।
​बच्चा अपनी माँ के छोटे से गर्भाशय में अत्यंत बदबूदार द्रव्य में मुँह बंद किए हुए 9 महीने तक उल्टा टंगा रहता है तथा सूक्ष्म परजीवी उसकी कोमल त्वचा को काटते रहते हैं । कष्ट के समय अनायास ही जीव को ईश्वर याद आता है ।  शास्त्र-वेदानुसार गर्भाशय में इस पीड़ा से विह्वल​ होकर जीव भगवान को वचन देता है कि "हे भगवान! मुझे इस स्थान से बाहर निकाल लो, इस बार मैं सदैव तुम्हारी भक्ति ही करूँगा।"

​आधुनिक विज्ञान ने अभी तक अजन्मे शिशु के मनोभावों को जानने की कोई पद्वति विकसित नहीं की है । परंतु हमारे सनातन पिता भगवान सदैव हमारे साथ रहते हैं तथा प्रत्येक विचार को नोट करते  हैं । उन्होंने अजन्मे शिशु की मानसिक स्थिति को शास्त्रों वेदों में प्रकट किया है 
(4)।

यद्यपि हमें अपने जन्म की स्मृति नहीं  है तथापि उस पीड़ा का कुछ मात्रा में हम अनुमान लगा सकते हैं । जन्म के समय बच्चा गर्भाशय से निकलकर अत्यंत संकरे रास्ते से बाहर आता है । नवजात शिशु का शरीर एवं त्वचा, दोनों, अत्यंत कोमल होते हैं। जन्म की प्रक्रिया के समय शरीर पर अत्यधिक दबाव पड़ता है तथा घर्षण से शिशु की त्वचा छिल जाती है । शास्त्र बताते हैं कि नवजात शिशु उस असहनीय पीड़ा को कम करने के लिए रोता है । कुछ शिशु रुदन नहीँ करते
क्योंकि​ वे पीड़ा को सहन न कर पाने के कारण अचेत हो जाते हैं ।

शास्त्रों के अनुसार जीवन काल में दो बार जीव को असहनीय पीड़ा भोगनी पड़ती​ है - ​

जनमत मरत दुसह दुख होई॥
“जन्म लेते समय तथा मरते समय सबसे अधिक मात्रा की पीड़ा होती है”(3)।
जन्म के बाद माता, पिता, रिशते-नातेदार, मित्र सभी अपने मोह जाल में फांस कर स्वयं से प्रेम करने की सीख देते हैं। प्रत्येक जीव अपरिमेय सुख की ही अभिलाषा रखता है। सभी “शुभचिंतक” दिखावा करते हैं कि वह अपरिमेय आनंद  मुझसे मिलेगा । परंतु अफसोस कि सत्य इसके विपरीत है। वे सब हमसे सुख चाहते हैं इसीलिए प्यार का दिखावा​ करते हैं। जब तक एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से सुख की आशा है तब तक वह दूसरे व्यक्ति से प्रेम करता है। जैसे-जैसे स्वार्थ पूर्ति की मात्रा कम हुई वैसे-वैसे स्वार्थ जन्य प्रेम भी कम होता जाता है । स्वार्थ पूर्ति की संभावना समाप्त तो प्रेम भी समाप्त । स्वार्थ हानि की संभावना होने पर वही प्रेम घृणा में परिवर्तित​ हो जाता है। समाचार पत्रों में ऐसे बहुत से वृतांत पढ़ने को मिल जाते हैं जिसमें पहले बहुत प्रेम और बाद में प्रेमी-प्रेमिका, माता-पुत्र​ जैसे घनिष्ठ संबंधी एक दूसरे की हत्या करने को प्रस्तुत हो जाते हैं। 

इसी प्रकार​ आजीवन प्रेम और घृणा का नाटक चलता रहता है और भगवान को दिया गया वचन ताक पर धरा का धरा रह जाता है । जीव की इसी लापरवाही के कारणवश इस भवाटवी में आवागमन का चक्र (चित्र #1 देखिये) अनंत जन्मों से चला आ रहा है । 

​हमारे शास्त्रों का दुंदुभीघोष है -
Picture
चित्र #1
वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः, शुष्कं सरः सारसा:, 
पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुपा, दग्धं वनान्तं मृगाः ।
निर्द्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिकाः, भ्रष्टं
श्रियं मन्त्रिणः।
सर्वः कार्यवशाज्जनोऽभिरमते,
कस्यास्ति को वल्लभः।।
”जब वृक्ष पर फल समाप्त हो जाते हैं  तो पक्षीवृंद​ उड़ जाते हैं। तालाब सूखने के पश्चात हंस वहाँ से उड़​ जाते हैं। फूल सूखने के पश्चात भँवरे उस पर नहीं बैठते। ज्वाला से भस्म जंगल में हिरण नहीं दिखाई देते । धनी के निर्धन होने पर वैश्या भी उससे नाता तोड़ लेती है । मंत्रीगण धनहीन राजा को छोड़कर चले जाते हैं ।अतः परस्पर प्रेम मूलतः निज-स्वार्थपूर्ती पर निर्भर  करता है। ऐसी स्थिति में कोई भी किसी का प्रेमास्पद कैसे हो सकता है"? अर्थात इस संसार में कोई प्रेमी और कोई प्रेमास्पद कदापि हो ही नहीं सकता ।

वेद का अकाट्य उदघोष है - 
न वा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवत्यात्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति।
​“कोई भी (मायाबद्ध​ जीव​​) किसी के सुख के लिए कुछ भी नहीं करत, नहीं कर सकता"।
क्या आप इस बात से सहमत हैं  कि "जिस किसी के पास जो वस्तु है ही नहीं वह उस वस्तु का दान कदापि नहीं कर सकता" ? अर्थात यदि एक भिखारी बहुत दानी भी हो तो भी वह दूसरे भिखारी को क्या देगा ? सभी जीव आनंद के प्यासे हैं ऐसी स्थिति में एक जीव दूसरे जीव को आनंद कैसे प्रदान कर सकता है? जब सुख किसी के पास  है ही नहीं तो वह खाली वचन भले ही दे दे सुख नहीं दे सकता । 
​
अतः एक दूसरे से सुख की अभिलाषा करना मूर्खता ही नहीं नितांत मूर्खता है। स्वर्ण अक्षरों में लिख लो - सुख भगवान और महापुरुष को छोड़कर किसी के पास है ही नहीं । मिलेगा तो उन्हीं से वरना नहीं मिलेगा। यह बात चाहे आज मान लो चाहे अनंत जन्मों में दुःख भोगने के बाद मानो। यह बात मान क​र उन्हीं से सुख माँगना पड़ेगा तभी सुख मिलेगा।
वर्तमान में भगवान ने हमको मानव देह दिया है (2)। मानव शरीर में विवेकयुक्त बुद्धि दी गई है ।  उस बुद्धि द्वारा विचार-विनिमय करके उत्तम फल प्रदान करने वाले कर्म केवल मानव देह में ही संभव है । अतः इस वर्ष इस जन्म के समय भगवान को दिए गए वचन को, एवं अनेकानेक जन्मों में भगवान को दिये गये वचन, को अक्षरशः निभाने की प्रतिज्ञा करनी चाहिये।
यक्ष युधिष्ठिर संवाद​यक्ष युधिष्ठिर संवाद​
यह बात हम सैकड़ों बार श्री महाराज जी के श्री मुख से सुन चुके हैं । हमारे हृदय ने ये बात मान भी ली । परंतु वास्तविकता यह है कि हमारी ऐसी दयनीय दशा है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी हमारी मनोवृति सदैव एकाग्रचित्त नहीं रहती है । अतः श्री महाराज जी ने एक सरल उपाय बताया है । सर्वप्रथम  मानव देह की क्षण भंगुरता का चिंतन करो तब भगवान स्वतः याद आयेंगे और उनका स्मरण भी बना रहेगा।

यक्ष ने युधिष्ठिर से अत्यंत महत्वपूर्ण 60 प्रश्न किए जिसमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न था -

​किमाश्चर्यम्

“सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?

युधिष्ठिर ने उत्तर दिया - ​

​अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् । ​शेषाः स्थिरत्व​मिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥
“प्रतिदिन हर आयु के मनुष्यों को हम मृत्यु को प्राप्त होते हुये देखते हैं । फिर भी बचे हुए जीव​ स्वयं को अजर अमर मानते हैं । इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा?”
बहिःसरति निःश्वासे विश्वासः कः प्रवर्तते ॥
“एक बार श्वास छोड़ने के बाद क्या आशा करते हो कि वही श्वास वापस आएगी" ?
क्षणभंगुर जीवन की कलिका, कल प्रात को जाने खिली न खिली। 
रट ले री रसना तू हरिनाम, कल प्रात को जाने हिली ना हिली।।
Picture
“हमारा जीवन उस कली के समान क्षणभंगुर है जो प्रातः खिलेगी या मुरझायगी कोई नहीँ जानता। इसलिए अरे जिव्हा! तू प्रतिक्षण हरि नाम का जप कर, क्योंकि कल प्रातः तू हिल पाएगी भी या नहीं कोई नहीं जानता।”

जीवन की क्षणभंगुरता के अटल सिद्धांत का ध्यान आते ही तुरंत एक प्रश्न प्रस्तुत होता है, “यदि इसी क्षण प्राण पखेरू उड़ गए तो कौन सी गति प्राप्त होगी हमें ?" अतः मृत्यु को अवश्यंभावी मानना मन-बुद्धि को सदा सावधान रखेगा ।  ऐसा सावधान मन ही उचित कर्मयोग द्वारा अपने उज्जवल भविष्य हेतु प्रयत्नशील होगा ।

​2021 वर्ष का अन्त निकट है तथा 2022 वर्ष का आगमन होने वाला है। इस नववर्ष में अपने सबसे पुरातन वचन पर अमल कर अपने जीवन को अनंत काल के लिए आनंदमय बना लीजिए । इसके पश्चात कभी कोई भी संकल्प करने की आवश्यक्ता ही नहीं रह जाएगी !

साल साल बीता जाए गोविंद राधे । अब तो हठीलो मन हरि में लगा दे।।
आयु जल बुलबुला गोविंद राधे। जाने कब फूट जाए सबको बता दे।।
- जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज​
​राधा गोविन्द गीत 
जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज​
जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज​
यदि आपको यह लेख लाभप्रद लगा तो संभवतः निम्नलिखित लेख भी लाभप्रद लगेगें
(1) I Solemnly Pledge
(2) Human Form: Boon or Bane?
(3) मृत्यु के भय से छुटकारा कैसे पायें ?
(4) भौतिकता और आध्यात्मिकता का संगम​

यह लेख​ पसंद आया​ !

उल्लिखित कतिपय अन्य प्रकाशन आस्वादन के लिये प्रस्तुत हैं
Picture

सिद्धान्त, लीलादि

इन त्योहारों पर प्रकाशित होता है जगद्गुरुत्तम दिवस, होली, गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा
Picture

सिद्धांत गर्भित लघु लेख​

प्रति माह आपके मेलबो‍क्स में भेजा जायेगा​
Picture

सिद्धांत को गहराई से समझने हेतु पढ़े

वेद​-शास्त्रों के शब्दों का सही अर्थ जानिये
Picture

यूट्यूब वीडियो

देखें ​बनचरी दीदी के सैकडों कीर्तन​, प्रवचन​ व​ प्रश्नोत्तरी ​
हम आपकी प्रतिक्रिया जानने के इच्छुक हैं । कृप्या contact us द्वारा
  • अपनी प्रतिक्रिया हमें email करें
  • आने वाले संस्करणों में उत्तर पाने के लिये प्रश्न भेजें
  • या फिर केवल पत्राचार हेतु ही लिखें

Subscribe to our e-list

* indicates required
नये संस्करण की सूचना प्राप्त करने हेतु subscribe करें 
Shri Kripalu Kunj Ashram
Shri Kripalu Kunj Ashram
2710 Ashford Trail Dr., Houston TX 77082
+1 (713) 376-4635

Lend Your Support
Social Media Icons made by Pixel perfect from www.flaticon.com"
Picture

Worldwide Headquarters

Affiliated Centers of JKP

Resources

  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog