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जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का जन्म 1922 में उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एक छोटे से गाँव मनगढ़ में हुआ था। 1966 में पहली बार श्री महाराज जी ने अपनी जन्म भूमि मनगढ़ में एक महीने के साधना शिविर का आयोजन किया। इसका एकमात्र उद्देश्य साधकों को सांसारिक प्रपंच से पृथक कर एकमात्र ईश्वरप्राप्ति हेतु श्यामा श्याम के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम में मन को निमज्जित​ करने का अवसर प्रदान करना था।  इस भक्ति साधना शिविर के दौरान, श्री महाराज जी सनातन वेदों शास्त्रों के सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ संसार में रहकर साधना भक्ति करने का प्रैक्टिकल ज्ञान भी देते हैं तथा उसी की साधना भी करवाते हैं । यह साधना शिविर तब से प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता आ रहा है। हज़ारों साधक प्रति वर्ष इस साधना शिविर का लाभ उठाते हैं ।

ऐसे ही एक साधना शिविर के अंत में श्री महाराज जी ने भक्तों को संसार में वापस जाने से पूर्व निम्नलिखित निर्देश दिए -

इन बिंदुओं पर मनन करें और  दृढ़ संकल्प करके अपना उद्धार कर लें -

  • एक बात गाँठ बाँध लें कि इस संसार में न सुख है न दुःख है। जो सुख दुःख दिख भी रहा है वो क्षणिक है। अत: सांसारिक लाभ या हानि में सुखी-दुखी नहीं होना है।
  • भगवान्, गुरु और भक्ति मार्ग के अतिरिक्त किसी भी विषय के चिंतन में एक पल भी व्यर्थ नहीं गँवाना है । फिर भी, पिछले जन्मों के संस्कारों के कारण, यदि मायिक विचार मन में आ जायें, तो हरि गुरु के सामने पश्चाताप के आँसू बहा कर क्षमा याचना करनी है।
  • अपने को अपने गुरु और भगवान् की धरोहर मानना है । अपनी मायिक मन बुद्धि को मायिक संसार की ओर आकृष्ट नहीं होने देना है । अपने गुरु के द्वारा बताये गए सिद्धान्त एवं आदेशों का अक्षरशः पालन करना है ।
  • मायिक संसार से ऐसे निर्लिप्त रहना है जैसे कमल के पत्ते पर पानी की बूँद रहती है।
  • अमूल्य मानव शरीर की क्षणभँगुरता पर लगातार विचार करना है । इस कारण हर क्षण साधना में लगाना है ।

हम भी मायिक संसार​ में ही रहते हैं और माया हम पर हावी है । इस कारण हम भी माया से त्रस्त हैं और अनंत आनंद की खोज में हैं ।  इसलिए आज भी श्री महाराज जी के ये सुनहरे निर्देश हमारे लिए उतने ही उपयोगी हैं, जितने उस शिविर में उपस्थित भक्त के लिए थे जिन्हें श्री महाराज जी ने साक्षात​ निर्देश दिये ।

यह लेख मनगढ़ के 2015 शरद पूर्णिमा साधना शिविर के समय प्रकाशित किया गया था


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