श्री कृष्ण के शरीर में क्या विशेषता है ? |
प्रश्न :
श्री कृष्ण के शरीर में क्या विलक्षणता है ?
श्री कृष्ण के शरीर में क्या विलक्षणता है ?
उत्तर :
अनुपम रूप नीलमणि को री ।
उर धरि कर करि हाय! गिरत सोई, लखत बार इक भूलेहुँ जो री ।
उर धरि कर करि हाय! गिरत सोई, लखत बार इक भूलेहुँ जो री ।
प्रेम रस मदिरा, श्री कृष्ण माधुरी
"नीलमणि श्यामसुन्दर के सौन्दर्य का वर्णन सर्वथा अनिर्वचनीय है। जो भी, भूलकर भी, एक-बार भी, उस रूपमाधुरी का दर्शन कर लेता है वह हृदय पर हाथ रखकर एवं हाय ! कह कर मूर्छित होकर गिर पड़ता है।"
अपनी आध्यात्मिक यात्रा में साधक की स्वाभाविक रूप से यही इच्छा होती है कि हमें भी वही दिव्य रस प्राप्त हो जिसका जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इस पद में वर्णन किया है। लेकिन बहुत ही कम साधक ऐसे होंगे जो इस अवस्था से अपनी यात्रा शुरू करते होंगे। अतः एक साधारण साधक को क्या करना चाहिए जिससे वह इस अवस्था तक पहुँच सके?
इस दिव्य रस को प्राप्त करने के साधन को समझने के लिए आगे पढ़िए।
श्री कृपालु महाराज ने पहली बार भगवान् के ध्यान को रूपध्यान शब्द से परिभाषित किया जिसका अर्थ है भगवान् के दिव्य रूप का प्रेमपूर्वक ध्यान करना । यह उनसे मिलने की लालसा को बढ़ाने का एक प्रबल साधन है । लेकिन साधक जिसने न कभी श्री कृष्ण को, न ही उनकी लीलाओं को देखा हो, इस दुविधा में पड़ सकता है कि अपने मन में श्री कृष्ण का रूप को कैसे बनायें। इसके लिए श्री कृष्ण के बारें में और जानने की आवश्यकता है। महात्म ज्ञान से उनके लिए हमारा प्यार बढ़ेगा और उनसे मिलने की व्याकुलता बढ़ेगी। अपना रूपध्यान पक्का करने हेतु, दिव्य रस बिंदु के इस अंक में हम श्री कृष्ण के दिव्य रूप और उनके दिव्य गुणों का अवलोकन करने का यथासम्भव प्रयास करेंगे । जब हम इन गुणों का अपने रूपध्यान में बार-बार चिंतन करेंगे तो हमारी उनसे मिलने की व्याकुलता कई गुना बढ़ जाएगी । मिलन की व्याकुलता कि अग्नि में समस्त मायिक विकार भस्म हो जायेंगे और हम अपने लक्ष्य के करीब पहुँचते जायेंगे ।
श्री कृष्ण के शरीर की विशेषता जानने के लिए सर्वप्रथम विभिन्न प्रकार के शरीरों (1) का अवलोकन करते हैं।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड में 9 प्रकार के मायिक शरीर होते हैं। इसके अतिरिक्त एक दिव्य शरीर ही होता है। दिव्य शरीरों में भी श्री कृष्ण का शरीर और भी विलक्षण है। उनके शरीर का वर्णन हम नीचे श्री महाराज जी के शब्दों में करेंगे।
अपनी आध्यात्मिक यात्रा में साधक की स्वाभाविक रूप से यही इच्छा होती है कि हमें भी वही दिव्य रस प्राप्त हो जिसका जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इस पद में वर्णन किया है। लेकिन बहुत ही कम साधक ऐसे होंगे जो इस अवस्था से अपनी यात्रा शुरू करते होंगे। अतः एक साधारण साधक को क्या करना चाहिए जिससे वह इस अवस्था तक पहुँच सके?
इस दिव्य रस को प्राप्त करने के साधन को समझने के लिए आगे पढ़िए।
श्री कृपालु महाराज ने पहली बार भगवान् के ध्यान को रूपध्यान शब्द से परिभाषित किया जिसका अर्थ है भगवान् के दिव्य रूप का प्रेमपूर्वक ध्यान करना । यह उनसे मिलने की लालसा को बढ़ाने का एक प्रबल साधन है । लेकिन साधक जिसने न कभी श्री कृष्ण को, न ही उनकी लीलाओं को देखा हो, इस दुविधा में पड़ सकता है कि अपने मन में श्री कृष्ण का रूप को कैसे बनायें। इसके लिए श्री कृष्ण के बारें में और जानने की आवश्यकता है। महात्म ज्ञान से उनके लिए हमारा प्यार बढ़ेगा और उनसे मिलने की व्याकुलता बढ़ेगी। अपना रूपध्यान पक्का करने हेतु, दिव्य रस बिंदु के इस अंक में हम श्री कृष्ण के दिव्य रूप और उनके दिव्य गुणों का अवलोकन करने का यथासम्भव प्रयास करेंगे । जब हम इन गुणों का अपने रूपध्यान में बार-बार चिंतन करेंगे तो हमारी उनसे मिलने की व्याकुलता कई गुना बढ़ जाएगी । मिलन की व्याकुलता कि अग्नि में समस्त मायिक विकार भस्म हो जायेंगे और हम अपने लक्ष्य के करीब पहुँचते जायेंगे ।
श्री कृष्ण के शरीर की विशेषता जानने के लिए सर्वप्रथम विभिन्न प्रकार के शरीरों (1) का अवलोकन करते हैं।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड में 9 प्रकार के मायिक शरीर होते हैं। इसके अतिरिक्त एक दिव्य शरीर ही होता है। दिव्य शरीरों में भी श्री कृष्ण का शरीर और भी विलक्षण है। उनके शरीर का वर्णन हम नीचे श्री महाराज जी के शब्दों में करेंगे।
श्री कृष्ण का शरीर
श्री कृष्ण देह तो है गोविंद राधे। सच्चिदानंद स्वरूप बता दे ॥
राधा गोविन्द गीत ७२४५
“श्री कृष्ण का शरीर का निर्माण सत् चित् आनंद से होता है”। तो ऐसे शरीर के क्या विशषताएँ हैं? जानने के लिए आगे पढ़ें।
श्रीकृष्ण के शरीर की विशेषताएँ
ऐसे शरीर में अनेक विशेषताएँ होती हैं जो अन्य किसी भी शरीर में नहीं होती। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
कृष्ण का प्रति अंग गोविंद राधे। सब इंद्रियों का करें कर्म बता दे॥
राधा गोविन्द गीत ७२४६
"श्री कृष्ण का एक-एक रोम मन बुद्धि तथा समस्त इंद्रियों का कर्म करने में समर्थ है।"
कृष्ण या कृष्ण देह गोविंद राधे। दोनों ही हैं एक तत्व बता दे॥
राधा गोविन्द गीत ७२४७
"श्री कृष्ण तथा उनका श्री देह दोनों एक ही तत्व है।" यह विलक्षणता "स्वगत भेद शून्य" कहलाती है तथा केवल और केवल श्री कृष्ण के शरीर में ही होती है ।
कृष्ण में देह देही गोविंद राधे। गुण गुणी रूप रुपी भेद ना बता दे॥
राधा गोविन्द गीत ७२४८
"श्री कृष्ण तथा उनके देह में देह-देही भेद नहीं है। उनमें गुण तथा गुणवान का भेद भी नहीं है। "
कृष्ण में नाम नामी गोविंद राधे। लीला अरु लीलाधारी भेद ना बता दे ॥
राधा गोविन्द गीत ७२४९
"जो श्री कृष्ण का नाम है श्रीकृष्ण वही हैं" यथा श्री कृष्ण का एक नाम है अजित और श्रीकृष्ण अजेय हैं।
श्री कृष्ण का सब कुछ गोविंद राधे । श्री कृष्ण ही हैं सार बता दे ॥
राधा गोविन्द गीत ७२५१
"श्री कृष्ण का नाम रूप, लीला, गुण, धाम, संत सब में अभेद है। "
श्री कृष्ण का वर्ण नीला है। यह संसार में मिलने वाला नीला रंग नहीं है। इस नीले रंग को देखकर कोई परमहंस तो क्या साधारण व्यक्ति भी अपनी समाधि नहीं भुला सकता। संसार में उस रंग के समान कोई वस्तु न होने के कारण संतो ने हार कर उनके शरीर की उपमा इन तीन वस्तुओं के 2-2 गुणों के कारण दी है -
श्री कृष्ण का वर्ण नीला है। यह संसार में मिलने वाला नीला रंग नहीं है। इस नीले रंग को देखकर कोई परमहंस तो क्या साधारण व्यक्ति भी अपनी समाधि नहीं भुला सकता। संसार में उस रंग के समान कोई वस्तु न होने के कारण संतो ने हार कर उनके शरीर की उपमा इन तीन वस्तुओं के 2-2 गुणों के कारण दी है -
- नीलमणि - नीला, अत्यंत ही चिकना तथा चमकीला
- नील कमल - नीला, अत्यंत ही कोमल तथा सुगंधित
- नील जलधर - नीला, ताप हरिता, शीतलता
रूपध्यान हेतु इन तीनों के दोनों गुणों को अनंत गुना करके एक दिव्य देह बनाइए। उस देह में निम्नलिखित गुण भी मानिए। मायिक शब्दों में सच्चिदानंद तन की पूर्णरूपेण व्याख्या करने की क्षमता नहीं है फिर भी हम श्रीकृष्ण के शरीर की कुछ विशेषताओं पर किंचित मात्र प्रकाश डालेंगे।
ब्रह्म से भी सरस
ब्रह्महूँ ते सरस गोविंद राधे। आनंदकंद कृष्ण चंद हैं बता दे॥
राधा गोविन्द गीत ७२५२
"ब्रह्म का स्वरूप आनंदमय है, और श्री कृष्ण आनंद के स्रोत हैं ।" श्री कृष्ण का सौरस्य इतना विलक्षण है कि अनादि काल से आज तक एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिसने ब्रह्म की प्राप्ति के उपरांत श्री कृष्ण को देखा हो और बरबस हठात मंत्रमुग्ध न हो गया हो। यह रूप इतना सरस है की ब्रह्मानंद को यदि परार्ध (1 के पश्चात 17, 0 अंक लगाएँ) से गुणा किया जाए तो भी वह प्रेमानंद के एक बिंदु के बराबर भी नहीं होगा।
मधुरता से भी मधुर
मधुर मधुरहूँ ते गोविंद राधे। चपल चपलहूँ ते हरि हैं बता दे॥
राधा गोविन्द गीत ७२५३
आप जो भी सबसे मीठी वस्तु की कल्पना कर सकते हो उसकी मधुरता को अनंत गुना कर दीजिए उससे भी अधिक मधुर श्री कृष्ण है।
चपलता से भी चपल
कमला चला है किंतु गोविंद राधे । हरि ढिग जाके भाई अचला बता दे॥
राधा गोविन्द गीत ७२५४
महालक्ष्मी अत्यंत ही चंचल हैं अतः उनको चपला कहा जाता है परंतु श्री कृष्ण की चपलता देखकर महालक्ष्मी अचला हो गई। एक बार महालक्ष्मी अपने पति महाविष्णु को छोड़कर श्री कृष्ण को देखने गई। बस गईं लेकिन वहाँ से वापस नहीं आ पाईं । श्रीकृष्ण के रूप, चपलतादि देखने के लोभ में अचला बनी वहीं खड़ी रह गईं ।
श्री कृष्ण ने कृपा करके उनको अपने वक्षस्थल के बाईं ओर श्रीवत्स चिन्ह के रूप में धारण कर लिया। |
कामदेव को भी मोहित करने वाले
सबते हैं सुंदर गोविंद राधे। काम, श्याम सौंदर्य काम को हरा दे॥
राधा गोविन्द गीत ७२५५
"समस्त ब्रह्मांड में रूप में कामदेव अग्रगण्य है । वह भी श्री कृष्ण के सौन्दर्य को देख कर मोहित हो गया "। एक बार कामदेव श्री कृष्ण की परीक्षा लेने गया। उसने सोचा जब श्री कृष्ण गोपियों के साथ रास कर रहे होंगे तब श्री कृष्ण पर आक्रमण करेगा। श्री कृष्ण को देखते ही मदन (कामदेव) ऐसे मोहित हुआ कि आक्रमण तो दूर, मंत्र मुग्ध देखता ही रह गया। इस कारणवश श्री कृष्ण का नाम मदन मोहन पड़ गया ।
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श्री कृष्ण अपने भूषण वस्त्र के भूषण हैं
साधारण मनुष्य वस्त्र तथा आभूषण धारण करके अपनी सुंदरता बढ़ाना चाहता है परंतु
कृष्ण के अंग सब गोविंद राधे । भूषण के भी हैं भूषण बता दें॥
राधा गोविन्द गीत ७२५८
"श्री कृष्ण के द्वारा धारण किए जाने से उन आभूषणों तथा वस्त्रों की शोभा अनंत गुणा बढ़ जाती है।"
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कोमलता से भी कोमल
पद्म पंखुड़ियों की गोविंद राधे। कोमलता है प्रसिद्ध बता दें॥ ७२५९
उनकी अनंत गुनी गोविंद राधे। कोमलता रमा पद में बता दें॥ ७२६०
वाते भी कोमल गोविंद राधे। रामा के दो कर कमल बता दे ॥ ७२६१
रमा कर तल ते भी गोविंद राधे। कोमल कृष्ण के चरण है बता दे॥ ७२६२
विश्व में कहीं भी कोई गोविंद राधे। उपमा न कोमलता की बता दे॥ ७२६३
तनु की मधुरता ते गोविंद राधे। मधुर है कृष्ण मुखचन्द्र बता दे ॥ ७२६4
उनकी अनंत गुनी गोविंद राधे। कोमलता रमा पद में बता दें॥ ७२६०
वाते भी कोमल गोविंद राधे। रामा के दो कर कमल बता दे ॥ ७२६१
रमा कर तल ते भी गोविंद राधे। कोमल कृष्ण के चरण है बता दे॥ ७२६२
विश्व में कहीं भी कोई गोविंद राधे। उपमा न कोमलता की बता दे॥ ७२६३
तनु की मधुरता ते गोविंद राधे। मधुर है कृष्ण मुखचन्द्र बता दे ॥ ७२६4
संसार में कोमलता की उपमा कमल की पंखुड़ियों से दी जाती है। जो आप सबसे कोमल वस्तु सोच सकें यथा मक्खन आदि उससे अनंत गुणा कोमल महालक्ष्मी का शरीर है। महालक्ष्मी के शरीर से अनंत गुना कोमल उनके हाथ हैं। उनके हाथों से अनंत गुना कोमल श्री कृष्ण का शरीर है। और उससे भी अनंत गुना कोमल श्री कृष्ण के चरण हैं।
सुगंधित
हमारे मायिक शरीर के विपरीत श्री कृष्ण के शरीर से आठ प्रकार की सुगंध निकलती हैं।
मुख ते मधुर अति गोविंद राधे। मुख की है दिव्य सुगंधि बता दे॥ ७२६५
कृष्ण दिव्य तनु ते तो गोविंद राधे। अष्ट सुगंधि निकले बता दें॥ ७२६६
कृष्ण दिव्य तनु ते तो गोविंद राधे। अष्ट सुगंधि निकले बता दें॥ ७२६६
"श्री कृष्ण के मुख से दिव्य सुगंधी निकलती रहती है। श्री कृष्ण के तन से 8 सुगंधी प्रस्फुटित होती हैं।"
एक सुगंधी तो है गोविंद राधे । श्री कृष्ण दिव्य मुख पदमा की बता दे॥ ७२६७
एक सुगंधि तो है गोविंद राधे । हरिचंदन तनु लेप बता दे ॥ ७२६८
एक सुगंधि मिश्र गोविंद राधे । हरिचंदन कुमकुम की बता दे ॥ ७२६९
एक सुगंधि तो है गोविंद राधे । माला बिच तुलसी की बता दे॥ ७२७०
एक सुगंधि तो है गोविंद राधे । वन्य पुष्पमालाओं की बता दे॥ ७२७१
तुलसी मंदार कुंद गोविंद राधे । पारिजात पद्म वनमाला बना दे ॥ ७२७२
एक हरिचंदन गोविंद राधे। कुंकुम कस्तूरी मिश्र बता दे॥ ७२७३
एक हरिचंदन गोविंद राधे। कुंकुम वन्य पुष्प मिश्र बता दे॥ ७२७४
एक श्री कृष्ण मुख गोविंद राधे। सब ही सुगंधि मिश्रित हैं बता दे॥ ७२७५
एक श्री कृष्ण मुख गोविंद राधे। सब ही सुगंधि मिश्रित हैं बता दे॥ ७२७५
एक सुगंधि तो है गोविंद राधे । हरिचंदन तनु लेप बता दे ॥ ७२६८
एक सुगंधि मिश्र गोविंद राधे । हरिचंदन कुमकुम की बता दे ॥ ७२६९
एक सुगंधि तो है गोविंद राधे । माला बिच तुलसी की बता दे॥ ७२७०
एक सुगंधि तो है गोविंद राधे । वन्य पुष्पमालाओं की बता दे॥ ७२७१
तुलसी मंदार कुंद गोविंद राधे । पारिजात पद्म वनमाला बना दे ॥ ७२७२
एक हरिचंदन गोविंद राधे। कुंकुम कस्तूरी मिश्र बता दे॥ ७२७३
एक हरिचंदन गोविंद राधे। कुंकुम वन्य पुष्प मिश्र बता दे॥ ७२७४
एक श्री कृष्ण मुख गोविंद राधे। सब ही सुगंधि मिश्रित हैं बता दे॥ ७२७५
एक श्री कृष्ण मुख गोविंद राधे। सब ही सुगंधि मिश्रित हैं बता दे॥ ७२७५
आठ सुगंधियों का वर्णन इस प्रकार है। "श्री कृष्ण के मुख से कमल की भीनी भीनी सुगंध निकलती है। उनके सच्चिदानंद शरीर से हरिचंदन की सुगंध निकलती है। वह हरिचंदन कुमकुम से मिलकर एक और ही सुगंध बन जाती है। श्री कृष्ण की वनमाला में से तुलसी की सुगंध आती है। तथा अन्य पुष्पों यथा तुलसी, मंदार, कुंद, पारिजात तथा कमल की सुगंध आती है। हरिचंदन के साथ कुमकुम व कस्तूरी की मिश्रित सुगंध आती है। हरिचंदन के साथ कुमकुम तथा अन्य पुष्पों की सुगंधि मिलकर एक और सुगंध बन जाती है। और श्री कृष्ण के मुख की सुगंधि से मिश्रित होकर यह सब सुगंधी एक और आठवीं सुगंधी बन जाती है।"
श्री कृष्ण के शरीर में छः विकार नहीं होते
साधारण शरीर के 6 अवस्थाएँ होती हैं
अस्ति अर्थात एक दिन आरंभ होता है,
जायते अर्थात जन्म होता है,
वर्धते अर्थात बढ़ता है,
विपरिणमते अर्थात ढलने लगता है,
अपक्षीयते अर्थात एक दिन अंत हो जाता है,
विनश्यतीति अर्थात अंत में एक दिन समाप्त हो जाता है।
अस्ति अर्थात एक दिन आरंभ होता है,
जायते अर्थात जन्म होता है,
वर्धते अर्थात बढ़ता है,
विपरिणमते अर्थात ढलने लगता है,
अपक्षीयते अर्थात एक दिन अंत हो जाता है,
विनश्यतीति अर्थात अंत में एक दिन समाप्त हो जाता है।
श्री कृष्ण के शरीर में गोलोक में इनमें से इन 6 में से एक भी अवस्था नहीं होती। वे सदा 16 वर्ष के किशोर अवस्था में रहते हैं।
आप प्रश्न कर सकते हैं कि जब अवतार होता है तब क्या होता है?
अवतार काल में माँ को आभास होता है कि गर्भ में बच्चा आ गया अर्थात अस्ति अवस्था। माँ को इस प्रकार का आभास होता है किंतु श्री कृष्ण वास्तव में अंतःकरण में जाते हैं गर्भ में नहीं। अंतःकरण में बैठकर गर्भवती माँ को होने वाली समस्त अनुभूति कराते हैं।
फिर जन्म हुआ अर्थात जायते अवस्था। यहाँ भी आपने रामावतार, कृष्णावतार में सुना होगा कि 16 वर्ष के होकर शंख, चक्र, गदा, पद्म लेकर माता के सामने प्रकट हो गए । पुनः माता के “भगवत्ता को भूल जाऊँ” वर मांगने पर माँ को भगवत्ता भुलाकर एक दिन के शिशु के रूप में आ गए।
पश्चात श्री कृष्ण का शरीर 16 वर्ष तक वर्धते अवस्था में रहता है। किंतु श्री कृष्ण का शरीर इस अवस्था में सीमित नहीं रहता। आपने प्रेम रस मदिरा के अनेक पदों में सुना होगा की पौगण्ड अवस्था में भक्तों को आनंदित करने के लिए कभी-कभी श्री कृष्ण बड़े हो जाते थे जैसे महारास के समय, तथा नीचे दी गई लीला में -
आप प्रश्न कर सकते हैं कि जब अवतार होता है तब क्या होता है?
अवतार काल में माँ को आभास होता है कि गर्भ में बच्चा आ गया अर्थात अस्ति अवस्था। माँ को इस प्रकार का आभास होता है किंतु श्री कृष्ण वास्तव में अंतःकरण में जाते हैं गर्भ में नहीं। अंतःकरण में बैठकर गर्भवती माँ को होने वाली समस्त अनुभूति कराते हैं।
फिर जन्म हुआ अर्थात जायते अवस्था। यहाँ भी आपने रामावतार, कृष्णावतार में सुना होगा कि 16 वर्ष के होकर शंख, चक्र, गदा, पद्म लेकर माता के सामने प्रकट हो गए । पुनः माता के “भगवत्ता को भूल जाऊँ” वर मांगने पर माँ को भगवत्ता भुलाकर एक दिन के शिशु के रूप में आ गए।
पश्चात श्री कृष्ण का शरीर 16 वर्ष तक वर्धते अवस्था में रहता है। किंतु श्री कृष्ण का शरीर इस अवस्था में सीमित नहीं रहता। आपने प्रेम रस मदिरा के अनेक पदों में सुना होगा की पौगण्ड अवस्था में भक्तों को आनंदित करने के लिए कभी-कभी श्री कृष्ण बड़े हो जाते थे जैसे महारास के समय, तथा नीचे दी गई लीला में -
निज ब्रजधाम लेहु नंदरानी, हम कहुँ अंत बसेंगी जाए ।
छोटो सो मत जान यशोदा, हाल बड़ो ह्वै जाए ।
छोटो सो मत जान यशोदा, हाल बड़ो ह्वै जाए ।
प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण-बाल-लीला-माधुरी - पद नंबर ७३
"हे यशोदे! तुम अपने पुत्र के साथ ब्रजधाम में रहो । हम सब किसी अन्य गाँव में जा कर रहेंगी । उसको छोटा सा मत जान यशोदे ! वह जब चाहे बड़ा हो जाता है ।" श्रीकृष्ण के दर्शन करने कि लिये तथा उनका गुणानुवाद करने के लिये गोपियों की ऐसी ही अटपटि प्रेम भरी भाषा है ।
अवतारकाल में भी अंत की तीन अवस्थाएँ (विपरिणमते, अपक्षीयते, विनश्यतीति) श्री कृष्ण के शरीर में नहीं होतीं । आपने श्रीमद्भागवत में श्री कृष्ण के गोलोक गमन के प्रकरण में सुना होगा कि श्री कृष्ण सशरीर गोलोक गए थे। श्री राम 11,000 वर्ष अयोध्या का राज्य करने के पश्चात जल समाधि ली और अलक्षित हो गए ।
उनके शरीर में और भी अनेक विलक्षणताएँ है जो शब्दातीत हैं । साधना से जैसे - जैसे आपका अंतःकरण शुद्ध होता जायेगा आपको इन्हीं गुणों में और-और रस की अनुभूति होगी ।
तो ये सब विशेषताएँ क्यों बताई जा रही हैं?
साधन बिना साध्य प्राप्त नहीं होता अतः आप रूपध्यान में इन सब गुणों से युक्त उन श्रीकृष्ण की उपासना करिए ।
लोगों को प्रायः वस्तु नहीं अपितु सुंदर वस्तु की अभिलाषा होती है। अतः सब आकर्षक गुणों की अंतिम सीमा, जो आपके मन-बुद्धि में समा सके, उन सब को एक शरीर में अध्यस्त करके एक दिव्य शरीर बनाइए । उस शरीर के रूपध्यान द्वारा मिलन की व्याकुलता बढ़ाइये । भावभक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँचने पर गुरु अपनी कृपा द्वारा आपका अंतःकरण दिव्य बना देंगे। तत्पश्चात श्री कृष्ण के उस रूप के दर्शन आपको भी प्राप्त होंगे जिसको देखकर बड़े-बड़े परमहंसों का मन हठात श्री कृष्णचंद्र की ओर खिंच गया। इसमें बड़े-बड़े शामिल हैं जैसे सतयुग में सनकादिक परमहंस, त्रेता में जनक परमहंस, द्वापर में उद्धव परमहंस, और कलियुग में शंकराचार्य। और इन सब ज्ञानी-परमहंसों का मन ऐसा खींचा कि वे अपनी परमहंसावस्था को सदा के लिए तिलांजलि देकर श्री कृष्णचंद्र की द्वैत माधुरी में सदा के लिए निमज्जित हो जाते हैं । उसी प्रकार श्रीकृष्ण आपका मन भी हठात आकर्षित कर लेंगे । बस साधना करते जाइये फिर एक दिन आप भी कहेंगे -
उनके शरीर में और भी अनेक विलक्षणताएँ है जो शब्दातीत हैं । साधना से जैसे - जैसे आपका अंतःकरण शुद्ध होता जायेगा आपको इन्हीं गुणों में और-और रस की अनुभूति होगी ।
तो ये सब विशेषताएँ क्यों बताई जा रही हैं?
साधन बिना साध्य प्राप्त नहीं होता अतः आप रूपध्यान में इन सब गुणों से युक्त उन श्रीकृष्ण की उपासना करिए ।
लोगों को प्रायः वस्तु नहीं अपितु सुंदर वस्तु की अभिलाषा होती है। अतः सब आकर्षक गुणों की अंतिम सीमा, जो आपके मन-बुद्धि में समा सके, उन सब को एक शरीर में अध्यस्त करके एक दिव्य शरीर बनाइए । उस शरीर के रूपध्यान द्वारा मिलन की व्याकुलता बढ़ाइये । भावभक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँचने पर गुरु अपनी कृपा द्वारा आपका अंतःकरण दिव्य बना देंगे। तत्पश्चात श्री कृष्ण के उस रूप के दर्शन आपको भी प्राप्त होंगे जिसको देखकर बड़े-बड़े परमहंसों का मन हठात श्री कृष्णचंद्र की ओर खिंच गया। इसमें बड़े-बड़े शामिल हैं जैसे सतयुग में सनकादिक परमहंस, त्रेता में जनक परमहंस, द्वापर में उद्धव परमहंस, और कलियुग में शंकराचार्य। और इन सब ज्ञानी-परमहंसों का मन ऐसा खींचा कि वे अपनी परमहंसावस्था को सदा के लिए तिलांजलि देकर श्री कृष्णचंद्र की द्वैत माधुरी में सदा के लिए निमज्जित हो जाते हैं । उसी प्रकार श्रीकृष्ण आपका मन भी हठात आकर्षित कर लेंगे । बस साधना करते जाइये फिर एक दिन आप भी कहेंगे -
अनुपम रूप नीलमणि को री ।
उर धरि कर करि हाय! गिरत सोई, लखत बार इक भूलेहुँ जो री ।
उर धरि कर करि हाय! गिरत सोई, लखत बार इक भूलेहुँ जो री ।
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