SHRI KRIPALU KUNJ ASHRAM
  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog
Divya Ras Bindu

ब्रह्म के स्वरूप​

Read this article in English
सनातन वैदिक धर्म का सर्वोच्च प्रामाणिक ग्रंथ वेद हैं । उन वेदों का दुदुंभीघोष है कि परात्पर​ ब्रह्म श्रीकृष्ण हैं। वेदव्यास के अनुसार​ उन​ श्रीकृष्ण के तीन सनातन रूप  हैं।

ब्रह्म , परमात्मा  और भगवान। 

श्री मद्भागवत के अनुसार -

वदन्ति तत्त्तत्वविदस् तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम् ।
ब्रह्मेति पर्मात्मेति भगवानिति शब्द्यते ॥ भा १.२.११

“तत्ववेत्ताओं (जो जीव परम तत्व को प्राप्त कर चुके हैं) का कथन है कि उन​के अनादि काल से तीन रूप हैं - ब्रह्म, परमात्मा और भगवान”।

ब्रह्म

परात्पर​ ब्रह्म श्रीकृष्ण
वेदों का दुदुंभीघोष है कि परात्पर​ ब्रह्म श्रीकृष्ण हैं।
श्रीकृष्ण के निराकार रूप को ब्रह्म कहते हैं। यद्यपि परम तत्व के प्रत्येक​ रूप में अनंत शक्तियाँ विद्यमान हैं परन्तु इस रूप में नाम, रूप, लीला, गुण, धाम व जन का प्राकट्य​ नहीं होता। ब्रह्म अपनी सत्ता एक अदृश्य अनन्त आनन्द के पयोधि के समान स्थापित करते हैं।

रूपं यत्तत्प्राहुरव्यक्त्तमाद्यं,  ब्रह्मज्योतिर्निर्गुणं निर्विकारम्। 
सत्तामात्रं र्निर्विशेषं निरीहं, सत्वं साक्षाद् विष्णुरध्यात्म दीपः ।।

ज्ञानी श्री कृष्ण के इसी निराकार रूप की उपासना करते हैं।

निराकार ब्रह्म
यद्यपि परम तत्व के प्रत्येक​ रूप में अनंत शक्तियाँ विद्यमान हैं परन्तु इस रूप में नाम, रूप, लीला, गुण, धाम व जन का प्राकट्य​ नहीं होता ।

परमात्मा

परमात्मा महाविष्णुवैकुंठ में सभी जन​ परमात्मा का सम्मान तथा गुणगान करते हैं। परंतु उनसे घनिष्ठ संबन्ध नहीं स्थापित कर सकते ।
श्रीकृष्ण का दूसरा रूप है परमात्मा, जो महाविष्णु के नाम से भी जाने जाते हैं। इसमें वे अपने चतुर्भुजी रूप में शंख, चक्र, गदा एवं पद्म को धारण कर बैकुंठ धाम में नित्य निवास करते हैं। इस रूप में नाम, रूप, गुण, धाम का प्राकट्य होता है परन्तु लीलाएँ और इनके परिकर नहीं होते।

वैकुंठ में अनंत ऐश्वर्य है। यहाँ अनंत तेज एवं गति वाला सुदर्शन चक्र तथा गदा उनके सर्वशक्तिमान होने का द्योतक हैं। जो योग​ मार्ग का अवलंबन ले भगवत प्राप्ति करते हैं अथवा परमात्मा महाविष्णु की उपासना करते हैं उनको वैकुंठधाम की प्राप्ति होती है । उन जीवों को परमात्मा महाविष्णु के सदृश​ रूप (सारूप्य​ मुक्ति) प्राप्त होता है। वैकुंठ में सभी जन​ परमात्मा का सम्मान तथा गुणगान करते हैं। परंतु उनसे घनिष्ठ संबन्ध नहीं स्थापित कर सकते।

परमात्मा रूपी श्री कृष्ण सभी जीवों के हृदय में उनके कर्मों के साक्षी रूप में भी विद्यमान रहते हैं तथा उनके कर्मों का फल देते हैं। (पढ़ें क्या श्री कृष्ण और महाविष्णु एक हैं?)

भगवान

श्री कृष्ण के तीसरे रूप का नाम भगवान है। इस रूप में आप नित्य दिव्य धाम गोलोक में निवास करते हैं। इस रूप में अपनी ऐश्वर्य शक्ति पूर्णतया लुप्त कर श्री कृष्ण धराधाम​ पर मनुष्य रूप में अवतरित होकर जीवों को प्रेम दान करते हैं। इस रूप में समस्त शक्तियाँ प्रकट होती हैं एवं​ नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, परिकर सब​  प्रकट  होते हैं।

भगवान अपनी भगवत्ता को भुला कर साधारण मनुष्य के समान व्यवहार करते हैं। तब वे अधिकारी जनों पर अपनी  सरस लीलाओं द्वारा प्रेम की अंतिम कक्षा के रस की वर्षा कर जनों को ओतप्रोत करते हैं। इनकी लीलाएँ अत्यधिक मधुर होने के कारण जीवों का मन आकर्षित करने में लाभप्रद सिद्ध होती हैं। इसीलिए भगवत प्राप्ति के लिए इस रूप की उपासना सबसे सरल है ।

इस रूप की उपासना में साधक को ना तो परमात्मा के ऐश्वर्य का भय रहता है तथा ना ही ज्ञान के दुर्गम मार्ग पर चलकर त्याग एवं वैराग्य की पराकाष्ठा को प्राप्त करना पड़ता है। जो लोग इस प्रकार से श्री कृष्ण एवं श्री राम की उपासना करते हैं उन्हें गोलोक या साकेत लोक की प्राप्ति होती है।
श्रीकृष्ण गोपियों के साथ​
भगवान रूप में अपनी ऐश्वर्य शक्ति पूर्णतया लुप्त कर श्री कृष्ण धराधाम​ पर मनुष्य रूप में अवतरित होकर जीवों को प्रेम दान करते हैं।
Picture
ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान एक ही है। क्या ऐसा है?

हाँ, जैसे पानी की तीन अवस्थाएँ होती हैं जल, बर्फ एवं भाप वैसे ही ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान उस परतत्व की तीन अवस्थाएँ हैं। जैसे जल, बर्फ एवं भाप की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं ठीक वैसे ही ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान की भी अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं। प्राकृत​ पानी एक समय में एक ही अवस्था में रह सकता है परंतु इसके विपरीत​ परतत्व की तीनों अवस्थाएँ एक साथ​ अनादि काल से हैं । तथा प्रत्येक अवस्था के गुण भी अनादिकालीन​ हैं।

इन​ तीनों अवस्थाओं को समझने के लिए एक और​ उदाहरण शिशुपाल वध​ ग्रंथ से प्रस्तुत है - 

चयस्विषामित्यवधारितं पुरा ततः शरीरीति विभाविताकृतिम्।
विभुर्विभक्तावयवं पुमान इति क्रमादमुन्नारद इत्यबोधि सः ॥

शिशुपाल वध​
एक बार द्वारिका में श्री कृष्ण के दरबारियों ने तेजपुंज को आकाश से नीचे उतरते देखा। सभी उत्सुकता पूर्वक उसे देखने लगे। जब वह तेज पुंज और निकट आया तो उसमें झिलमिलाती हुई आकृति दिखाई दी। उन्होंने अनुमान लगाया कि कोई देवता हो सकतें हैं, जिससे उन्हें प्रसन्नता हुई। जब​ प्रकाश पुंज और निकट आया तो लोगों ने देखा कि यह तो नारदजी हैं और उनका हर्षोल्लास​ के साथ स्वागत किया।

तेजपुंज के दृष्टिगोचर होते ही लोग उत्सुक
हुए​। तेजपुंज की तुलना निराकार ब्रह्म से कर सकते हैं। ज्ञानी ब्रह्म की उपासना करते हैं। वे परतत्व को तेज का पुंज मानते हैं जिसका कोई नाम नहीं होता, कोई रूप नहीं, कोई लीला नहीं, कोई गुण नहीं, कोई धाम नहीं, कोई परिकर नहीं। हमारा मन किसी सत्ता के रूप का ध्यान तो कर सकता है परंतु ज्ञान मार्ग के निराकार ब्रह्म​ का ध्यान करना साधकों के लिए अत्यंत कठिन होता है।
निराधार मन चकृत धावे ।
अस्पष्ट आकृति को देखकर उन दरबारियों की जानने की उत्सुकता, उस आकृति से मिलने की उत्सुकता में परिणित हो गई। इसकी तुलना हम परमात्मा से कर सकते हैं। योगी लोग परमात्मा की उपासना करते हैं। परमात्मा का धाम होता है, नाम होता है, गुण होते है परंतु उनकी लीला एवं परिकर नहीं होते।

जब नारद मुनि सबके समक्ष प्रकट हुए तो सब संतुष्ट एवं हर्षित हो उनकी अगवानी करने लगे। इस अवस्था की तुलना हम भगवान से कर सकते हैं जब भगवान पृथ्वी पर मनुष्य रूप में आते हैं और मनुष्यों के समान ही लीलाएँ करते हैं, खाते हैं, खेलते हैं, इस अवस्था में उनको देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि वे भगवान हैं। ब्रज के निवासियों की यही अवस्था थी कि उन्होंने श्रीकृष्ण को कभी भगवान नहीं माना एवं उनकी दिव्यता को भुला कर​ श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम, पुत्र, एवं सखा माना।

भगवान श्रीकृष्ण की तीन स्वरूप​ क्यों होते हैं?
नारद मुनि द्वारका में अवतीर्ण हुये
जब​ प्रकाश पुंज और निकट आया तो लोगों ने देखा कि यह तो नारदजी हैं और उनका हर्षोल्लास​ के साथ स्वागत किया ।
संस्कार वश लोगों की अलग-अलग प्रवृत्तियां होती हैं। भगवान एक कल्पवृक्ष हैं; जो जैसी इच्छा करता है उसको वही प्रदान करते हैं। अतः उन्होंने कृपा करके इन तीन अवस्थाओं को प्रकट किया है जिससे कोई याचक खाली हाथ न लौटे । श्रीकृष्ण ने जीव को जो भाव प्रिय हो उस भाव से उपासना करने की स्वतंत्रता दी है, तथा कृपा कर​ इन भावों के अनुसार फल का निरूपण भी किया है।

सारांश​

केवल एक ही परतत्व हैं,स्वयं श्री कृष्ण। वही विभिन्न अवस्थाओं में अनादिकाल से विद्यमान है। उस परा तत्व के सभी रूपों के उपासक धन्य हैं। तथापि जिस साधक का लक्ष्य 1. सरल मार्ग​ 2. मधुरतम रस की प्राप्ति हो उसे भगवान रूप​ में श्री कृष्ण से प्रेम करना होगा। भक्ति मार्ग​ अत्यन्त  सरल है तथा भक्ति का रस अतुलनीय है। अतः तीनों पथों को जानकर जो आपको अत्यधिक प्रिय लगे उसका चुनाव अपनी सुविधानुसार कर लीजिए ।


तीन रूप श्री कृष्ण को, वेदव्यास बताय ।
ब्रह्म और परमात्मा, अरु भगवान कहाय ॥
वेदव्यास ने श्री कृष्ण के तीन रूप बताये हैं - ब्रह्म, परमात्मा और भगवान ।
- जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
भक्ति शतक २१
Picture

Love our Publications!!
<-- Read Previous Divya Ras Bindu
To receive this publication monthly please subscribe by entering the information below
* indicates required
Suggested Reading

Brahma-Supreme God

Aim of Life

Radha Krishna - The Divine Couple

 

Shri Kripalu Kunj Ashram
Shri Kripalu Kunj Ashram
2710 Ashford Trail Dr., Houston TX 77082
+1 (713) 376-4635

Lend Your Support
Social Media Icons made by Pixel perfect from www.flaticon.com"
Picture

Worldwide Headquarters

Affiliated Centers of JKP

Resources

  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog