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शरीर के प्रकार

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ज्ञान के अगाध समुद्र वेदों में वर्णित है की जीवों को अपने कर्मों के अनुसार 84 लाख प्रकार के शरीर प्राप्त होते हैं । इन 84 लाख प्रकार के शरीरों का सृजन भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है । इनमें से कुछ सृजन के प्रकारों से आप अवगत होंगे ही । उन प्रकारों के अतिरिक्त आपने वेद शास्त्रों में कुछ अन्य सृजन के तरीके भी सुने होंगे जो की सामान्य बुद्धि से अगम्य हैं ॥  इन सबके अतिरिक्त आपने श्री महाराज जी के प्रवचनों में  भगवत प्राप्ति के बाद दिव्य शरीर के बारे में भी सुना होगा । 

तो आइए, हम यहाँ इसी विषय पर संक्षेप में प्रकाश डालते करते हैं ।

कुल जमा 10 प्रकार के शरीर होते हैं - जिनमें से 9 भौतिक हैं और मात्र​ 1 दिव्य है ।
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मायिक शरीर

संपूर्ण चराचर जगत में समस्त शरीर दो श्रेणियों में विभक्त किए जा सकते हैं -
शरीरं द्विविधं योनिजमयोनिजं च ।
“योनि से उत्पन्न, बिना योनि के​ उत्पन्न” |
नर नारी योग से ही गोविंद राधे । बने प्रायः तनु प्राकृत बता दें ॥
राधा गोविंद गीत 7238
“प्रायः नर-मादा के संयोग​ से प्राकृत शरीर बनता है।”
​
1. जरायुज - योनि से पैदा होने वाले शरीर को जरायुज, मैथुनी या योनिज कहा जाता है। मनुष्य तथा कुछ जानवरों (गाय​, बैल​, भैंस​) के शरीर योनि से उत्पन्न होते हैं ।  

अयोनिज​

योनिज के अतिरिक्त 8 प्रकार के अयोनिज शरीर भी​ होते हैं । अयोनिज शरीरों की प्रथम तीन​ श्रेणियों से आप​ भली भांति परिचित होंगे ही । 

​2. स्वेदज​ - स्वेद अर्थात पसीने से पैदा होने वाले यथा जूँ, बैक्टीरिया, वायरस इत्यादि ।

3. अण्डज​ - अंडे से पैदा होने वाले शरीर यथा चिड़िया सर्प​ इत्यादि ।

4. उदभिज​ - जिनकी उत्पत्ति पृथ्वी से होती है। “उद्:” माने उत्पन्न “भिज” माने “भूमि से” । जैसे, पेड़ पौधे ।

​निम्नलिखित पाँच​ अयोनिज श्रेणियों से, संभव है, आप​ अपरिचित होंगे तथापि आपने कदाचित​ उनका उल्लेख ग्रंथों में पढ़ा​ होगा । अयोनिज शरीरों में निम्नलिखित पाँच शरीर​ पूर्व शरीर से उच्चतर श्रेणी के होते हैं​ । ​​ आइये​ इन अयोनिज शरीरों का अवलोकन करते हैं ।

5. 
ऊर्ध्वरेता शरीर - शरीर के ऊपरी भाग के स्पर्शमात्र से उत्पन्न शरीर ।​

​6. दृष्टि से उत्पन्न - जैसे वेदव्यास ने अंबिका, अंबालिका और उनकी दासी को देखा और क्रमशः धृतराष्ट्र पांडु और विदुर जी का जन्म हो गया।

​7. 
मानस - केवल सोचने मात्र से उत्पन्न संतान का शरीर।
काम जन्य तनु हो या गोविंद राधे। ऊर्ध्वरेता संकल्पज बता दे ॥ राधा गोविंद गीत 7239 ​​
"वासना से उत्पत्ति हो या ऊर्ध्वरेता शरीर हो"...
दृष्टि मात्र हो या गोविंद राधे। बिना दृष्टि के ही देह हो बता दे॥ राधा गोविंद गीत 7240
"​चाहे शरीर दृष्टि से उत्पन्न हो , या बिना दृष्टि के उत्पन्न  हो"...
मैथुनी अमैथुनी गोविंद राधे । सभी देह हैं प्राकृत ही बता दे ॥ राधा गोविंद गीत ​7241 
“किंतु शरीर योनिज​ (मैथुनी) हो या अयोनिज (अमैथुनी), यदि शरीर की संरचना नर-मादा के संयोग से हो तो वह देह प्राकृत ही होता है।
निम्नलिखित ​दो प्राकृत शरीर नर-मादा के संयोग से नहीं बनते ।​

​
8. ​निर्माण शरीर - शरीर की अवधि समाप्त होने पर योगी योगअग्नि में अपना शरीर भस्म करके नए शरीर का निर्माण कर लेते हैं। जैसे अंबा ने अपने शरीर को भस्म​ करके शिखंडी का रूप धारण किया था । यह पूर्ववर्णित अन्य शरीरों से श्रेष्ठतर होता है ।
​योग निर्माण काय गोविंद राधे ।  शुद्ध है किंतु है प्राकृत बता दे॥ राधा गोविंद गीत ​7242
"यौगिक शक्ति से निर्मित शरीर शुद्ध है फिर भी यह भौतिक शरीर है"
यद्यपि ये पाँच शरीर उच्च श्रेणी के हैं तथापि ये भी प्राकृत हैं । इनसे भी श्रेष्ठ एक और​ मायिक शरीर होता है । 

9. तैजस् शरीर - देवताओं  के शरीर का निर्माण तेज से  होता है ।   ​
​देवों का दिव्य देह गोविंद राधे  । रक्त मांस अस्थि आदि रहित बता दे॥ राधा गोविंद गीत 7243
"उस शरीर में रस, रक्त, मांस,  मेदा, मज्जा इत्यादि नहीं होता" । इस शरीर में मल-मूत्र, बुढ़ापा, शारीरिक बीमारियाँ आदि कोई विकार नहीं होते ।  इन सभी शरीरों में से सुगंध निकलती है, इनकी पलक नहीं भंजती, उनके चरण पृथ्वी पर नहीं पड़ते, इनकी परछाईं नहीं होती, इनको भूख प्यास आदि कुछ नहीं लगती ।
किंतु देव देह भी गोविंद राधे  । प्राकृतिक देह है देवों ते बता दे ॥ राधा गोविंद गीत ​7244
" तथापि यह शरीर भी प्राकृत होता है" । अतः एक दिन यह शरीर भी मृत्यु को प्राप्त होता है।

दिव्य शरीर

10.  श्री कृष्ण का शरीर तथा उनके स्वांश का शरीर​​ भी दिव्य होता है । भगवत प्राप्ति के बाद जीव को भी दिव्य शरीर प्राप्त होता है ।  ये सब शरीर सच्चिदानन्द हैं फिर भी मात्र श्री कृष्ण को छोड़ कर सभी में देह-देही का भेद होता है । अर्थात जीव और जीव का शरीर अलग-अलग वस्तुएँ होती हैं।

किंतु श्री कृष्ण में तथा उनके शरीर में यह भेद नहीं होता है । इसके अतिरिक्त श्री कृष्ण के शरीर में अनेक गुण हैं जो दिव्य रस बिंदु के आने वाले अंको में प्रकाशित किए जाएंगे ।


​
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