![The perfect love exists in the divine](/uploads/1/9/8/0/19801241/published/rk-with-hearts_2.jpg?1675649702)
लोग 13वीं शताबदी से वैलेंटाइन डे को प्रेम और रोमांस के दिन के रूप में मनाते आ रहे हैं। इस दिन लोग अपने विशेष "वेलेंटाइन" के साथ कार्ड, चॉकलेट, फूल या उपहार देकर अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं।
"प्रेम" को शुद्ध, निःस्वार्थ और शाश्वत माना जाता है। क्या हमारे चारों ओर दिखने वाले "प्रेम" में ये विशेषताएँ हैं? आइए विभिन्न संसारी संबंधों की वास्तविकता को परखते हैं ।
1. माता-पिता का संतान से संबंध - माता-पिता अपने बच्चों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार देखभाल करते हैं। वे इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हैं और उनकी आशा बनी रहती है कि बच्चे उनके बुढ़ापे की लाठी बनेंगे ।
2. स्त्री-पति का संबंध - यह तब तक चलता है जब तक रिश्ते से कुछ पाने की आशा होती है। अगर वह आशा खत्म हो जाती है तो संबंध भी खत्म हो जाता है।
3. मित्रता का संबंध - हर दोस्ती तब तक चलती है जब तक दोनों पक्ष की रुचि और विचार एक जैसे हों। रुचियों के अलग होते ही मित्रता समाप्त हो जाती है।
4. नियोक्ता-कर्मचारी का संबंध - नियोक्ता किसी कर्मचारी के साथ अच्छा व्यवहार तब तक करता है जब तक कि कर्मचारी उसके ऊपर सौंपे गए उत्तरदायित्वों को अच्छी तरह निभाता है। यदि काम सही तरीके से नहीं किया तो नियोक्ता कर्मचारी को नौकरी से निकल देता है। दूसरी ओर, कर्मचारी भी अपने स्वयं के हितों जैसे मुआवजे, लचीली अनुसूची, स्थिरता, विकास-क्षमता आदि के आधार पर नियोक्ता बदलते हैं।
"प्रेम" को शुद्ध, निःस्वार्थ और शाश्वत माना जाता है। क्या हमारे चारों ओर दिखने वाले "प्रेम" में ये विशेषताएँ हैं? आइए विभिन्न संसारी संबंधों की वास्तविकता को परखते हैं ।
1. माता-पिता का संतान से संबंध - माता-पिता अपने बच्चों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार देखभाल करते हैं। वे इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हैं और उनकी आशा बनी रहती है कि बच्चे उनके बुढ़ापे की लाठी बनेंगे ।
2. स्त्री-पति का संबंध - यह तब तक चलता है जब तक रिश्ते से कुछ पाने की आशा होती है। अगर वह आशा खत्म हो जाती है तो संबंध भी खत्म हो जाता है।
3. मित्रता का संबंध - हर दोस्ती तब तक चलती है जब तक दोनों पक्ष की रुचि और विचार एक जैसे हों। रुचियों के अलग होते ही मित्रता समाप्त हो जाती है।
4. नियोक्ता-कर्मचारी का संबंध - नियोक्ता किसी कर्मचारी के साथ अच्छा व्यवहार तब तक करता है जब तक कि कर्मचारी उसके ऊपर सौंपे गए उत्तरदायित्वों को अच्छी तरह निभाता है। यदि काम सही तरीके से नहीं किया तो नियोक्ता कर्मचारी को नौकरी से निकल देता है। दूसरी ओर, कर्मचारी भी अपने स्वयं के हितों जैसे मुआवजे, लचीली अनुसूची, स्थिरता, विकास-क्षमता आदि के आधार पर नियोक्ता बदलते हैं।
![A self-interest is hidden even in](/uploads/1/9/8/0/19801241/editor/donating_2.jpg)
5. धार्मिक, शैक्षिक, चिकित्सा आदि संस्थानों का - दानियों की सूचि में अपना नाम लिखे जाने के लालच में लोग इन संस्थानों को समय, तन -धन दान करते हैं।
6. ज़रूरतमंदों की मदद करना - कुछ लोग ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं
6. ज़रूरतमंदों की मदद करना - कुछ लोग ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं
- इस उम्मीद में कि जब उन्हें जरूरत होगी तो कोई उनकी मदद करेगा।
- धन, समय, संसाधन आदि दान करके वे पृथ्वी पर किसी से कुछ भी उम्मीद नहीं करते हैं बल्कि वे परलोक बनाने की आशा करते हैं।
![All material love lasts as long as self-interest if preserved](/uploads/1/9/8/0/19801241/editor/broken-heart_2.jpg?250)
इन सभी (और प्रेम की अन्य किसी भी अभिव्यक्ति) के गहन परीक्षण से ये निष्कर्ष निकलता है कि सभी सांसारिक संबंधों में प्रेम आत्म-सुख, आत्म-संतुष्टि और स्वार्थ से प्रेरित होता है। और हमारा यह अनुभव है कि जब दो व्यक्तियों का स्वार्थ टकराता है तो उसका परिणाम असंतोष, अतृप्ति और कलह होता है। यह सबका निज अनुभव है ।
शास्त्र और आधुनिक वैज्ञानिक भी कहते हैं कि यह संसार समाप्त हो जाएगा। यहाँ कुछ भी शाश्वत कैसे हो सकता है? इसका मतलब यह है कि जिस "प्रेम" का हमने अब तक अनुभव किया है, जिसके बारे में इतनी अधिक चर्चा की जाती है, वह वह प्रेम है ही नहीं ।
अब सवाल उठता है कि सच्चा प्रेम क्या है जिसकी, लोग ही नहीं, वेद-शास्त्र भी प्रशंसा करते हैं? क्या यह कोरी कल्पना है या अलभ्य आदर्श?
नारद जी ने अपने ग्रन्थ नारद भक्ति दर्शन में लिखा है कि
शास्त्र और आधुनिक वैज्ञानिक भी कहते हैं कि यह संसार समाप्त हो जाएगा। यहाँ कुछ भी शाश्वत कैसे हो सकता है? इसका मतलब यह है कि जिस "प्रेम" का हमने अब तक अनुभव किया है, जिसके बारे में इतनी अधिक चर्चा की जाती है, वह वह प्रेम है ही नहीं ।
अब सवाल उठता है कि सच्चा प्रेम क्या है जिसकी, लोग ही नहीं, वेद-शास्त्र भी प्रशंसा करते हैं? क्या यह कोरी कल्पना है या अलभ्य आदर्श?
नारद जी ने अपने ग्रन्थ नारद भक्ति दर्शन में लिखा है कि
अनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम्।
"प्रेम दिव्य तत्व है और इसीलिए यह अवर्णनीय है"।
फिर, वे नारद भक्ति दर्शन के 5वें सूत्र में कहते हैं
फिर, वे नारद भक्ति दर्शन के 5वें सूत्र में कहते हैं
यत्प्राप्य न किंचित्वांछति, न शोचति, न द्वेष्टि, न रमते, नोत्साही भवति ॥
"प्रेम में स्व-सुख की इच्छा, क्लेश, वैर, ग्लानि या आत्म-महत्वाकांक्षा का नामो-निशान नहीं होता"
क्या कोई भी सांसारिक संबंध प्रेम के इस परिभाषा पर खरा उतरता है ? जैसा कि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं, इसे संसार में कहीं भी प्रेम नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि, जीवन में हर किसी का एकमात्र लक्ष्य अनंत आनंद प्राप्त करना है और जब तक उस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक यह आनंद की खोज समाप्त नहीं होगी।
हमारे सनातन शास्त्र प्रेम के उच्चतम आदर्श की ये परिभाषा करते हैं
क्या कोई भी सांसारिक संबंध प्रेम के इस परिभाषा पर खरा उतरता है ? जैसा कि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं, इसे संसार में कहीं भी प्रेम नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि, जीवन में हर किसी का एकमात्र लक्ष्य अनंत आनंद प्राप्त करना है और जब तक उस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक यह आनंद की खोज समाप्त नहीं होगी।
हमारे सनातन शास्त्र प्रेम के उच्चतम आदर्श की ये परिभाषा करते हैं
तत्सुखसुखित्वं
"प्रियतम के सुख में सुखी रहना"
अर्थात नि:स्वार्थ प्रेमी के मन में आत्मसुख का विचार भी नहीं आता। अपने प्रिय का सुख ही उसका सच्चा सुख होता है। नारद जी आगे बताते हैं
अर्थात नि:स्वार्थ प्रेमी के मन में आत्मसुख का विचार भी नहीं आता। अपने प्रिय का सुख ही उसका सच्चा सुख होता है। नारद जी आगे बताते हैं
यथा ब्रजगोपिकानाम्।
"जैसे ब्रज की युवतियों में देखा जाता है।" गोपियाँ सर्वोच्च प्रेम की प्रतीक हैं। वास्तव में संस्कृत में गोपी शब्द का अर्थ है "प्रेम के सच्चे रूप का संरक्षक"।
तो, वह "प्रेम" क्या है जिसका हम अनुभव करते हैं? और क्या हम वास्तविक "प्रेम" प्राप्त कर सकते हैं?
जिस प्रेम का हम अनुभव करते हैं वह हमारे ही मन से बनाई हुई कल्पना मात्र है (1)। वह शुद्ध, निःस्वार्थ, शाश्वत प्रेम इस भौतिक संसार में है ही नहीं न कभी हो सकता है। अज्ञानवश "प्रेम" शब्द का प्रयोग भौतिक संदर्भों में किया जाता है।
वेद-शास्त्र के अनुसार "प्रेम" भगवान कृष्ण की एक दिव्य शक्ति है। "प्रेम" का साकार रूप श्री राधा के नाम से जाना जाता है। प्रेम की शक्ति इतनी प्रबल और विलक्ष्ण होती है कि वह शक्तिमान के वश में नहीं रहती। उल्टा, प्रेम सर्वशक्तिमान श्री कृष्ण को अपने वश में रखता है। गोपियाँ जो श्री कृष्ण से प्रेम करती हैं, उनसे कोई प्रतिफल प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखतीं क्योंकि प्रेम का मुख्य गुण पूर्ण निष्कामता है। वे केवल श्री कृष्ण को सुख देने के लिए उनकी सेवा करती हैं और ऐसे करने में उनको असीम सुख मिलता है। यदि उनकी कोई इच्छा है, तो वह केवल "श्यामा-श्याम का सुख" है। यदि उनका अपना सुख श्री कृष्ण को अप्रसन्न करता है, तो वे इसे महान पीड़ा का स्रोत मानती हैं। इसी प्रकार यदि उनकी अपनी पीड़ा से श्री कृष्ण को प्रसन्नता मिलती है तो वह पीड़ा उनके लिए सुख का स्रोत है। यह श्री राधा के प्रेम की आदर्श है और गोपियाँ श्री राधा की परछाईं के समान हैं। वे युगलसरकार श्री राधा-कृष्ण की इच्छाओं को पूरा करने में हमेशा लगी रहती हैं।
निष्काम प्रेम गहराई को समझने के लिए एक गोपी की इस दिव्य प्रेम की कहानी को पढ़िए -
एक बार एक गोपी ने देखा कि श्रीकृष्ण उसे सफेद वस्त्र पहने देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं। इसलिए, उसने सफेद कपड़े पहने, सफेद गहनों और फूलों से श्रृंगार किया और श्री कृष्ण से मिलने के लिए निकल पड़ी। उस समय वे एक कुंज में सो रहे थे । उसने थोड़ी देर प्रतीक्षा की लेकिन फूल अधिक समय तक ताजे नहीं रहेंगे। इसलिए, उसने श्रीकृष्ण को जगाने का फैसला किया । लेकिन वह उन्हें चौंकाना नहीं चाहती थी । तो उसने एक कमल का फूल लिया और उनके चंद्रमुख पर दूर से हिलाया । उस गोपी का यह आशय था कि कमल का शीतल पराग जब उनके मुखचंद्र पर गिरेगा तो वे जग जायेंगे और रूप माधुरी का पान कर के आनंदित होंगे ।
तो, वह "प्रेम" क्या है जिसका हम अनुभव करते हैं? और क्या हम वास्तविक "प्रेम" प्राप्त कर सकते हैं?
जिस प्रेम का हम अनुभव करते हैं वह हमारे ही मन से बनाई हुई कल्पना मात्र है (1)। वह शुद्ध, निःस्वार्थ, शाश्वत प्रेम इस भौतिक संसार में है ही नहीं न कभी हो सकता है। अज्ञानवश "प्रेम" शब्द का प्रयोग भौतिक संदर्भों में किया जाता है।
वेद-शास्त्र के अनुसार "प्रेम" भगवान कृष्ण की एक दिव्य शक्ति है। "प्रेम" का साकार रूप श्री राधा के नाम से जाना जाता है। प्रेम की शक्ति इतनी प्रबल और विलक्ष्ण होती है कि वह शक्तिमान के वश में नहीं रहती। उल्टा, प्रेम सर्वशक्तिमान श्री कृष्ण को अपने वश में रखता है। गोपियाँ जो श्री कृष्ण से प्रेम करती हैं, उनसे कोई प्रतिफल प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखतीं क्योंकि प्रेम का मुख्य गुण पूर्ण निष्कामता है। वे केवल श्री कृष्ण को सुख देने के लिए उनकी सेवा करती हैं और ऐसे करने में उनको असीम सुख मिलता है। यदि उनकी कोई इच्छा है, तो वह केवल "श्यामा-श्याम का सुख" है। यदि उनका अपना सुख श्री कृष्ण को अप्रसन्न करता है, तो वे इसे महान पीड़ा का स्रोत मानती हैं। इसी प्रकार यदि उनकी अपनी पीड़ा से श्री कृष्ण को प्रसन्नता मिलती है तो वह पीड़ा उनके लिए सुख का स्रोत है। यह श्री राधा के प्रेम की आदर्श है और गोपियाँ श्री राधा की परछाईं के समान हैं। वे युगलसरकार श्री राधा-कृष्ण की इच्छाओं को पूरा करने में हमेशा लगी रहती हैं।
निष्काम प्रेम गहराई को समझने के लिए एक गोपी की इस दिव्य प्रेम की कहानी को पढ़िए -
एक बार एक गोपी ने देखा कि श्रीकृष्ण उसे सफेद वस्त्र पहने देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं। इसलिए, उसने सफेद कपड़े पहने, सफेद गहनों और फूलों से श्रृंगार किया और श्री कृष्ण से मिलने के लिए निकल पड़ी। उस समय वे एक कुंज में सो रहे थे । उसने थोड़ी देर प्रतीक्षा की लेकिन फूल अधिक समय तक ताजे नहीं रहेंगे। इसलिए, उसने श्रीकृष्ण को जगाने का फैसला किया । लेकिन वह उन्हें चौंकाना नहीं चाहती थी । तो उसने एक कमल का फूल लिया और उनके चंद्रमुख पर दूर से हिलाया । उस गोपी का यह आशय था कि कमल का शीतल पराग जब उनके मुखचंद्र पर गिरेगा तो वे जग जायेंगे और रूप माधुरी का पान कर के आनंदित होंगे ।
![Love means to please your beloved](/uploads/1/9/8/0/19801241/39840854074_orig.png)
श्री राधा रानी वहाँ से जा रही थीं और उन्होंने देखकर पूछा कि गोपी तुम क्या कर रही हो । गोपी ने बताया कि वह श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना चाहती है इसलिए उसने सफेद कपड़े पहने हैं। अब, फूलों के मुरझाने से पहले वह चाहती थी कि वे जागें और इस दृश्य का आनंद लें।
राधा रानी मुस्कुराईं और बोलीं, ''सखी! प्यारे श्याम सुंदर इस समय नींद का आनंद ले रहे हैं। जगाने से उनके वर्तमान आनंद में विघ्न पहुँचेगा। यह निःस्वार्थता नहीं है ”। गोपी ने समझाया, “हे स्वामिनी जू! मैं केवल उनके सुख के लिए सब कुछ कर रही हूँ । मैं अपने श्वेत श्रंगार से उन्हें प्रसन्न करना चाहती हूँ ।
श्री राधा ने उस गोपी को आगे प्यार से समझाया, “सखी! जब तक वे एक आनंद ले रहे हैं तब तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर । जब एक आनंद ले चुकें तब उन्हें आनंद लेने के लिए अगली वस्तु दे ।”
"लेकिन फूल मुरझा जाएँगे और थोड़ी देर बाद अपनी मोहक सुंदरता खो देंगे!"
श्री राधा ने कहा “बार-बार श्रृंगार कर, जब तक वे इसका रस लेने के लिए तैयार न हो जाएँ । उन्हें प्रसन्न करने के लिये यदि लाखों बार प्रयत्न करना पड़े तो प्रसन्नतापूर्वक कर "। निष्काम प्रेम का यही अर्थ है।
निष्काम दिव्य प्रेम का रहस्य जानकर गोपी प्रसन्न हुई।
चूँकि यह सच्चा प्रेम दैवीय है इसलिए यह किसी भी मायाबध जीव में नहीं पाया जा सकता है। जैसे शेरनी का दूध केवल सोने के पात्र में ताजा रह सकता है, वैसे ही दिव्य प्रेम केवल दिव्य अंतःकरण में रह सकता है।
उस दिव्य प्रेमानंद को पाने के लिए
1. रसिक संत (2) के मार्गदर्शन में भगवान राधा-कृष्ण की साधना भक्ति करनी होगी (3) । यह साधना मन से मलिनता (4) को दूर करेगी ।
2. सभी भौतिक आसक्तियों के हटने के बाद, गुरु हृदय को दिव्य बना देंगे।
3. इस प्रकार, संत कृपापूर्वक दिव्य अंतःकरण में दिव्य प्रेम प्रदान करेंगे।
उसके स्थिति में पहुँचने से पहले, यद्यपि सभी दिव्य प्रेम से रहित हैं, अज्ञानतावश हम एक दूसरे से प्रेम पाने की आशा में प्रेम का अभिनय करते हैं। हम स्वाभाविक रूप से उस "प्रेम" की इच्छा रखते हैं क्योंकि हम श्रीकृष्ण के अंश हैं, जो प्रेम के अवतार हैं। चूंकि हर अंश पूर्ण होना चाहता है, अनंत काल से हम स्वाभाविक रूप से प्रेमानंद खोज रहे हैं । प्रेमानंद अनंत मात्रा का प्रतिक्षण वर्धमान, नित्य-नवायमान (नवीन) होता है। लेकिन अज्ञानता के कारण हम उसे इस माया के संसार में खोज रहे हैं ।
इसलिए हमारे वैलेंटाइन डे (कृपालु महाप्रभु के भक्तों के बीच गोपी प्रेम दिवस (5) के रूप में जाना जाता है) को सफल बनाने के लिए, हमें गोपी प्रेम से युक्तसंत के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए और रागानुगा भक्ति (6) का अवलंब लेकर राधा कृष्ण निःस्वार्थ भक्ति की साधना करनी होगी ।
एक व्यक्ति की तीन मनोवृत्तियों में से एक हो सकती है
1. केवल लेने की प्रवृत्ति - आत्म-सुख के लिए लेने की प्रवृत्ति कामना कहलाती है। यह प्रेम की श्रेणी में नहीं आता।
2. देने और लेने की प्रवृत्ति - बदले में अधिक पाने के लिए देने या समझौता करने की प्रवृत्ति को व्यवसाय कहते हैं।
3. केवल देने की प्रवृत्ति - केवल देने की प्रवृत्ति ही प्रेम है।
हमें दिव्य प्रेम प्राप्त करने के लिए सब कुछ देना सीखना होगा। ''सब कुछ'' इन 3 चीजों से मिलकर बना है -
1. भुक्ति - का अर्थ है ब्रह्मा के धाम तक की भौतिक सुख
2. मुक्ति - माया के चंगुल से मुक्ति ।
3. बैकुंठ लोक का दिव्य आनंद - श्री कृष्ण के सर्वशक्तिमान रूप महाविष्णु के लोक में नित्य निवास।
भक्त प्रेम तभी प्राप्त करता है जब वह सभी इच्छाओं से मुक्त होता है और युगल सरकार को प्रसन्न करने हेतु से भगवान के विशुद्ध प्रेम को प्राप्त करना चाहता है।
राधा रानी मुस्कुराईं और बोलीं, ''सखी! प्यारे श्याम सुंदर इस समय नींद का आनंद ले रहे हैं। जगाने से उनके वर्तमान आनंद में विघ्न पहुँचेगा। यह निःस्वार्थता नहीं है ”। गोपी ने समझाया, “हे स्वामिनी जू! मैं केवल उनके सुख के लिए सब कुछ कर रही हूँ । मैं अपने श्वेत श्रंगार से उन्हें प्रसन्न करना चाहती हूँ ।
श्री राधा ने उस गोपी को आगे प्यार से समझाया, “सखी! जब तक वे एक आनंद ले रहे हैं तब तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर । जब एक आनंद ले चुकें तब उन्हें आनंद लेने के लिए अगली वस्तु दे ।”
"लेकिन फूल मुरझा जाएँगे और थोड़ी देर बाद अपनी मोहक सुंदरता खो देंगे!"
श्री राधा ने कहा “बार-बार श्रृंगार कर, जब तक वे इसका रस लेने के लिए तैयार न हो जाएँ । उन्हें प्रसन्न करने के लिये यदि लाखों बार प्रयत्न करना पड़े तो प्रसन्नतापूर्वक कर "। निष्काम प्रेम का यही अर्थ है।
निष्काम दिव्य प्रेम का रहस्य जानकर गोपी प्रसन्न हुई।
चूँकि यह सच्चा प्रेम दैवीय है इसलिए यह किसी भी मायाबध जीव में नहीं पाया जा सकता है। जैसे शेरनी का दूध केवल सोने के पात्र में ताजा रह सकता है, वैसे ही दिव्य प्रेम केवल दिव्य अंतःकरण में रह सकता है।
उस दिव्य प्रेमानंद को पाने के लिए
1. रसिक संत (2) के मार्गदर्शन में भगवान राधा-कृष्ण की साधना भक्ति करनी होगी (3) । यह साधना मन से मलिनता (4) को दूर करेगी ।
2. सभी भौतिक आसक्तियों के हटने के बाद, गुरु हृदय को दिव्य बना देंगे।
3. इस प्रकार, संत कृपापूर्वक दिव्य अंतःकरण में दिव्य प्रेम प्रदान करेंगे।
उसके स्थिति में पहुँचने से पहले, यद्यपि सभी दिव्य प्रेम से रहित हैं, अज्ञानतावश हम एक दूसरे से प्रेम पाने की आशा में प्रेम का अभिनय करते हैं। हम स्वाभाविक रूप से उस "प्रेम" की इच्छा रखते हैं क्योंकि हम श्रीकृष्ण के अंश हैं, जो प्रेम के अवतार हैं। चूंकि हर अंश पूर्ण होना चाहता है, अनंत काल से हम स्वाभाविक रूप से प्रेमानंद खोज रहे हैं । प्रेमानंद अनंत मात्रा का प्रतिक्षण वर्धमान, नित्य-नवायमान (नवीन) होता है। लेकिन अज्ञानता के कारण हम उसे इस माया के संसार में खोज रहे हैं ।
इसलिए हमारे वैलेंटाइन डे (कृपालु महाप्रभु के भक्तों के बीच गोपी प्रेम दिवस (5) के रूप में जाना जाता है) को सफल बनाने के लिए, हमें गोपी प्रेम से युक्तसंत के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए और रागानुगा भक्ति (6) का अवलंब लेकर राधा कृष्ण निःस्वार्थ भक्ति की साधना करनी होगी ।
एक व्यक्ति की तीन मनोवृत्तियों में से एक हो सकती है
1. केवल लेने की प्रवृत्ति - आत्म-सुख के लिए लेने की प्रवृत्ति कामना कहलाती है। यह प्रेम की श्रेणी में नहीं आता।
2. देने और लेने की प्रवृत्ति - बदले में अधिक पाने के लिए देने या समझौता करने की प्रवृत्ति को व्यवसाय कहते हैं।
3. केवल देने की प्रवृत्ति - केवल देने की प्रवृत्ति ही प्रेम है।
हमें दिव्य प्रेम प्राप्त करने के लिए सब कुछ देना सीखना होगा। ''सब कुछ'' इन 3 चीजों से मिलकर बना है -
1. भुक्ति - का अर्थ है ब्रह्मा के धाम तक की भौतिक सुख
2. मुक्ति - माया के चंगुल से मुक्ति ।
3. बैकुंठ लोक का दिव्य आनंद - श्री कृष्ण के सर्वशक्तिमान रूप महाविष्णु के लोक में नित्य निवास।
भक्त प्रेम तभी प्राप्त करता है जब वह सभी इच्छाओं से मुक्त होता है और युगल सरकार को प्रसन्न करने हेतु से भगवान के विशुद्ध प्रेम को प्राप्त करना चाहता है।
लेना देना सीखा सदा गोविंद राधे । देना देना पाठ अब मन को बता दे ॥
"अनंत काल से हमने सौदेबाजी करना सीखा है। अब हमें लगातार देने का पाठ सीखना होगा ।"
हम सभी को इस तरह के शुद्ध दिव्य प्रेम को प्राप्त करने के लिए वेलेंटाइन डे (गोपी प्रेम दिवस) पर संकल्प करना चाहिए।
हमारे जीवन को सुधारने के लिए आध्यात्मिक उत्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि हम अनंत काल से अपनी अनन्य इच्छा को प्राप्त कर सकें। इसलिए, वैलेंटाइन डे मनाने का उद्देश्य प्रेम पाने से अधिक होना चाहिए। दिव्य प्रेम आनंद प्राप्त करने के उद्देश्य से इन त्योहारों को मनाएँ ।
हम सभी को इस तरह के शुद्ध दिव्य प्रेम को प्राप्त करने के लिए वेलेंटाइन डे (गोपी प्रेम दिवस) पर संकल्प करना चाहिए।
हमारे जीवन को सुधारने के लिए आध्यात्मिक उत्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि हम अनंत काल से अपनी अनन्य इच्छा को प्राप्त कर सकें। इसलिए, वैलेंटाइन डे मनाने का उद्देश्य प्रेम पाने से अधिक होना चाहिए। दिव्य प्रेम आनंद प्राप्त करने के उद्देश्य से इन त्योहारों को मनाएँ ।
गोपी प्रेम दिवस की शुभकामनाएँ