साधना भक्ति का दैनिक अभ्यास |
भक्ति को परिपक्व करने के लिये के लिए सर्वप्रथम साधना भक्ति की जाती है । कर्म योग तथा कर्म सन्यास दोनों की साधना का प्रतिदिन अभ्यास करना अत्यावश्यक है ।
साधना के नियमित अभ्यास का उद्देश्य मन को साधना के लिए बैठने के लिए अभ्यस्त करना है। इस समय ईश्वर को साकार रूप में प्रेम से स्मरण करना होता है । श्री महाराज जी कहते हैं कि इस प्रारंभिक मानसिक प्रशिक्षण के बिना हम भक्ति में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। भगवान के साकार रूप का प्रेमपूर्वक ध्यान करना (जिसे रूपध्यान कहते हैं) साधना का प्राण है। रूपध्यान के बिना, सब भक्ति संबंधित कर्म - चाहे हम कुछ भी हो - मृत शरीर के समान है ।
साधना के नियमित अभ्यास का उद्देश्य मन को साधना के लिए बैठने के लिए अभ्यस्त करना है। इस समय ईश्वर को साकार रूप में प्रेम से स्मरण करना होता है । श्री महाराज जी कहते हैं कि इस प्रारंभिक मानसिक प्रशिक्षण के बिना हम भक्ति में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। भगवान के साकार रूप का प्रेमपूर्वक ध्यान करना (जिसे रूपध्यान कहते हैं) साधना का प्राण है। रूपध्यान के बिना, सब भक्ति संबंधित कर्म - चाहे हम कुछ भी हो - मृत शरीर के समान है ।
1. अपनी पसंद के अनुसार अपने अपने इष्ट देव की एक सुंदर तस्वीर या मूर्ति का चयन करें।
2. साधना का एक स्थान तैयार करें, जिसमें केवल श्री राधा कृष्ण और अपने गुरु की ही मनपसंद छवि रखें। मन लगाने में सफलता प्राप्त करने के लिये बेहतर है कि यह स्थान किसी घर के किसी शांत कोने में निर्धारित किया जाय ।
3. अपनी नियमित दैनिक साधना के लिए एक समय निर्धारित करें।
4. जब आप अपनी साधना शुरू करने के लिए बैठें, महसूस करें कि आपके भगवान जो अब तक चित्र में थे, धीरे-धीरे प्रत्यक्ष रूप में आपके सामने आ रहे हैं ।
5. अपनी आंखें बंद कर लें, अपने चुने हुए फोटो के आधार पर ईश्वर के सचल साकार दिव्य रूप का ध्यान करने का अभ्यास करें कि आपके चित्र वाले भगवान का रूप धीरे-धीरे आपके सामने आ रहा है। उनकी उपस्थिति को महसूस करिये । उनके मोर पंख से सुसज्जित सुनहरे मुकुट की अवर्णनीय सुंदरता का आनंद लें, उनका माथा चमकदार तिलक से सुशोभित है, उनके चौड़े कंधे पर पीला रेशमी पीताम्बर लहरा रहा हैं, उनकी छाती अनेक झिलमिलाते हारों और वनमाला से सुसज्जित है, उनकी कमर में सुनहरे रंग का कमरबंध है, और उनके चरणकमल में सुंदर पायल हैं।
6. अपने प्यारे भगवान को पंखा करके, उनके चरण कमलों को धोकर, दबाकर या किसी अन्य प्रकार की प्रेममयी सेवा के माध्यम से उनकी प्रसन्नता के लिये उनकी सेवा करें। सब कुछ मन से कीजिये। यह मात्र कल्पना नहीं है। चूँकि वे पहले से ही आपके हृदय में विराजमान है तथा आपकी सभी भावनाओं को देख रहे हैं और उस भवना को कृपा करके सत्य मान लेते हैं । बार-बार संकल्प करिये कि वे ही मेरे हैं। साधना के दौरान मिलन व वियोग के रूपध्यान द्वारा भगवान का दिव्य चिन्मय रूप देखेने की व्याकुलता को बढ़ाएँ ।
7. साधना में मन को एकाग्र करने के लिए निम्न क्रियायें करें:
दैनिक साधना के इस अभ्यास [1] को करने के साथ साथ पूरे दिन भगवान की उपस्थिति को महसूस करने का प्रयास करें । इसको कर्म योग की साधना कहते हैं । हर समय भगवान और अपने गुरु को निरीक्षक के रूप में अपने साथ मानें । इस दैनिक अभ्यास को शुरू करने के लिए आपको कुछ खास करने की आवश्यकता नहीं है। अब आप इस पृष्ठ उपर दिए गए आरती, भजनों, व भोग के लिंक के माध्यम से अपनी साधना शुरू कर सकते हैं ।
प्रतिदिन नियम से गुरु के आदेशानुसार कर्म योग तथा कर्म सन्यास की साधना करने से धीरे-धीरे मन भगवान में लगने लगेगा ।
2. साधना का एक स्थान तैयार करें, जिसमें केवल श्री राधा कृष्ण और अपने गुरु की ही मनपसंद छवि रखें। मन लगाने में सफलता प्राप्त करने के लिये बेहतर है कि यह स्थान किसी घर के किसी शांत कोने में निर्धारित किया जाय ।
3. अपनी नियमित दैनिक साधना के लिए एक समय निर्धारित करें।
4. जब आप अपनी साधना शुरू करने के लिए बैठें, महसूस करें कि आपके भगवान जो अब तक चित्र में थे, धीरे-धीरे प्रत्यक्ष रूप में आपके सामने आ रहे हैं ।
5. अपनी आंखें बंद कर लें, अपने चुने हुए फोटो के आधार पर ईश्वर के सचल साकार दिव्य रूप का ध्यान करने का अभ्यास करें कि आपके चित्र वाले भगवान का रूप धीरे-धीरे आपके सामने आ रहा है। उनकी उपस्थिति को महसूस करिये । उनके मोर पंख से सुसज्जित सुनहरे मुकुट की अवर्णनीय सुंदरता का आनंद लें, उनका माथा चमकदार तिलक से सुशोभित है, उनके चौड़े कंधे पर पीला रेशमी पीताम्बर लहरा रहा हैं, उनकी छाती अनेक झिलमिलाते हारों और वनमाला से सुसज्जित है, उनकी कमर में सुनहरे रंग का कमरबंध है, और उनके चरणकमल में सुंदर पायल हैं।
6. अपने प्यारे भगवान को पंखा करके, उनके चरण कमलों को धोकर, दबाकर या किसी अन्य प्रकार की प्रेममयी सेवा के माध्यम से उनकी प्रसन्नता के लिये उनकी सेवा करें। सब कुछ मन से कीजिये। यह मात्र कल्पना नहीं है। चूँकि वे पहले से ही आपके हृदय में विराजमान है तथा आपकी सभी भावनाओं को देख रहे हैं और उस भवना को कृपा करके सत्य मान लेते हैं । बार-बार संकल्प करिये कि वे ही मेरे हैं। साधना के दौरान मिलन व वियोग के रूपध्यान द्वारा भगवान का दिव्य चिन्मय रूप देखेने की व्याकुलता को बढ़ाएँ ।
7. साधना में मन को एकाग्र करने के लिए निम्न क्रियायें करें:
- श्री महाराज जी द्वारा रचित दैनिक प्रार्थना को मन से भावना बनाकर बोलें (तज्जप: तदर्थभावनं) और भक्तिपूर्ण दीन भावना को विकसित करें;
- गुरु के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा को बढ़ाने के लिए और उनकी कृपा के लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनकी गुरु आरती करें;
- एक या दो भजन गाएँ ताकि आप उन भजनों के अर्थ की सहायता से रूपध्यान का अभ्यास कर सकें जो श्री राधा कृष्ण के रूप, नाम, गुण, लीला और धाम का वर्णन करते हैं;
- प्रत्यक्ष श्री राधा कृष्ण को अपने बिल्कुल समीप मानकर श्री राधा कृष्ण आरती करें;
- आरती के बाद, भगवान और गुरु को भोग (हल्का और सात्विक भोजन) लगायें । यह भोजन बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण करें । भोग लगाते समय यह माननें का अभ्यास करें कि हरि गुरु आपके सामने हैं और आपने जो बनाया है उसे खा रहे हैं।
दैनिक साधना के इस अभ्यास [1] को करने के साथ साथ पूरे दिन भगवान की उपस्थिति को महसूस करने का प्रयास करें । इसको कर्म योग की साधना कहते हैं । हर समय भगवान और अपने गुरु को निरीक्षक के रूप में अपने साथ मानें । इस दैनिक अभ्यास को शुरू करने के लिए आपको कुछ खास करने की आवश्यकता नहीं है। अब आप इस पृष्ठ उपर दिए गए आरती, भजनों, व भोग के लिंक के माध्यम से अपनी साधना शुरू कर सकते हैं ।
प्रतिदिन नियम से गुरु के आदेशानुसार कर्म योग तथा कर्म सन्यास की साधना करने से धीरे-धीरे मन भगवान में लगने लगेगा ।
[1] How to surrender
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