साधना भक्ति का दैनिक अभ्यास
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भक्ति को परिपक्व करने के लिये के लिए, साधना भक्ति का नियमित (दैनिक) अभ्यास करना आवश्यक है। साधना के नियमित अभ्यास का उद्देश्य मन को बैठने के लिए अभ्यस्त करना है। इस दौरान हम ईश्वर को उनके साकार रूप में प्रेम से याद करते हैं। श्री महाराज जी कहते हैं कि इस प्रारंभिक मानसिक प्रशिक्षण के बिना हम भक्ति में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। भगवान के साकार रूप (या रूपध्यान) का प्रेमपूर्वक ध्यान करना साधना का प्राण है। रूपध्यान के बिना, सब भक्ति संबंधित कर्म - चाहे हम कुछ भी हो - मृत शरीर के समान है।

1. अपनी पसंद के अनुसार अपने अपने इष्ट देव की एक सुंदर तस्वीर या मूर्ति का चयन करें।
2. साधना का एक स्थान तैयार करें, जिसमें केवल श्री राधा कृष्ण और अपने गुरु की ही मनपसंद छवि रखें। मन लगाने में सफलता प्राप्त करने के लिये बेहतर है कि यह स्थान किसी घर के किसी शांत कोने में निर्धारित किया जाय ।
3. अपनी नियमित दैनिक साधना के लिए एक समय निर्धारित करें।
4. जब आप अपनी साधना शुरू करने के लिए बैठें, महसूस करें कि आपके भगवान जो अब तक चित्र में थे, धीरे-धीरे प्रत्यक्ष रूप में आपके सामने आ रहे हैं ।
5. अपनी आंखें बंद कर लें, अपने चुने हुए फोटो के आधार पर ईश्वर के सचल दिव्य रूप की कल्पना करें या महसूस करें कि आपके चित्र वाला भगवान का रूप धीरे-धीरे आपके सामने आ रहा है। उनकी उपस्थिति को महसूस करिये । उनके मोर पंख से सुसज्जित सुनहरे मुकुट की अवर्णनीय सुंदरता का आनंद लें, उनका माथा चमकदार तिलक से सुशोभित है, उनके चौड़े कंधे पर पीला रेशमी पीताम्बर लहरा रहा हैं, उनकी छाती अनेक झिलमिलाते हारों और वनमाला से सुसज्जित है, उनकी कमर में सुनहरे रंग का कमरबंध है, और उनके चरणकमल में सुंदर पायल हैं।
6. अपने प्यारे भगवान को पंखा करके, उनके चरण कमलों को धोकर, दबाकर या किसी अन्य प्रकार की प्रेममयी सेवा के माध्यम से उनकी प्रसन्नता के लिये उनकी सेवा करें। सब कुछ मन से कीजिये। यह मात्र कल्पना नहीं है। चूँकि वे पहले से ही आपके हृदय में विराजमान है तथा आपकी सभी भावनाओं को देख रहे हैं और उस भवना को कृपा करके सत्य मान लेते हैं । बार-बार संकल्प करिये कि वे ही मेरे हैं। साधना के दौरान मिलन व वियोग के रूपध्यान द्वारा भगवान का दिव्य चिन्मय रूप देखेने की व्याकुलता को बढ़ाएँ ।
7. साधना में मन को एकाग्र करने के लिए निम्न क्रियायें करें:
दैनिक साधना के इस अभ्यास को करने के बाद पूरे दिन भगवान की उपस्थिति को महसूस करने का प्रयास करें। हर समय भगवान और अपने गुरु के साथ रहें। इस दैनिक अभ्यास को शुरू करने के लिए आपको कुछ खास करने की आवश्यकता नहीं है। अब आप इस पृष्ठ उपर दिए गए आरती, भजनों, व भोग लिंक के माध्यम से अपनी साधना शुरू कर सकते हैं।
2. साधना का एक स्थान तैयार करें, जिसमें केवल श्री राधा कृष्ण और अपने गुरु की ही मनपसंद छवि रखें। मन लगाने में सफलता प्राप्त करने के लिये बेहतर है कि यह स्थान किसी घर के किसी शांत कोने में निर्धारित किया जाय ।
3. अपनी नियमित दैनिक साधना के लिए एक समय निर्धारित करें।
4. जब आप अपनी साधना शुरू करने के लिए बैठें, महसूस करें कि आपके भगवान जो अब तक चित्र में थे, धीरे-धीरे प्रत्यक्ष रूप में आपके सामने आ रहे हैं ।
5. अपनी आंखें बंद कर लें, अपने चुने हुए फोटो के आधार पर ईश्वर के सचल दिव्य रूप की कल्पना करें या महसूस करें कि आपके चित्र वाला भगवान का रूप धीरे-धीरे आपके सामने आ रहा है। उनकी उपस्थिति को महसूस करिये । उनके मोर पंख से सुसज्जित सुनहरे मुकुट की अवर्णनीय सुंदरता का आनंद लें, उनका माथा चमकदार तिलक से सुशोभित है, उनके चौड़े कंधे पर पीला रेशमी पीताम्बर लहरा रहा हैं, उनकी छाती अनेक झिलमिलाते हारों और वनमाला से सुसज्जित है, उनकी कमर में सुनहरे रंग का कमरबंध है, और उनके चरणकमल में सुंदर पायल हैं।
6. अपने प्यारे भगवान को पंखा करके, उनके चरण कमलों को धोकर, दबाकर या किसी अन्य प्रकार की प्रेममयी सेवा के माध्यम से उनकी प्रसन्नता के लिये उनकी सेवा करें। सब कुछ मन से कीजिये। यह मात्र कल्पना नहीं है। चूँकि वे पहले से ही आपके हृदय में विराजमान है तथा आपकी सभी भावनाओं को देख रहे हैं और उस भवना को कृपा करके सत्य मान लेते हैं । बार-बार संकल्प करिये कि वे ही मेरे हैं। साधना के दौरान मिलन व वियोग के रूपध्यान द्वारा भगवान का दिव्य चिन्मय रूप देखेने की व्याकुलता को बढ़ाएँ ।
7. साधना में मन को एकाग्र करने के लिए निम्न क्रियायें करें:
- श्री महाराज जी द्वारा रचित दैनिक प्रार्थना को मन से भावना बनाकर बोलें (तज्जप: तदर्थभावनं) और भक्तिपूर्ण दीन भावना को विकसित करें;
- गुरु के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा को बढ़ाने के लिए और उनकी कृपा के लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनकी गुरु आरती करें;
- एक या दो भजन गाएँ ताकि आप उन भजनों के अर्थ की सहायता से रूपध्यान का अभ्यास कर सकें जो श्री राधा कृष्ण के रूप, नाम, गुण, लीला और धाम का वर्णन करते हैं;
- श्री राधा कृष्ण को बिल्कुल अपने समीप प्रत्यक्ष मानकर श्री राधा कृष्ण आरती करें;
- आरती के बाद, भगवान और गुरु को भोग (हल्का और सात्विक भोजन) लगायें । यह भोजन बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण करें । भोग लगाते समय यह कल्पना करने की कोशिश करें कि भगवान या गुरु आपके सामने हैं और आपने जो बनाया है उसे खा रहे हैं।
दैनिक साधना के इस अभ्यास को करने के बाद पूरे दिन भगवान की उपस्थिति को महसूस करने का प्रयास करें। हर समय भगवान और अपने गुरु के साथ रहें। इस दैनिक अभ्यास को शुरू करने के लिए आपको कुछ खास करने की आवश्यकता नहीं है। अब आप इस पृष्ठ उपर दिए गए आरती, भजनों, व भोग लिंक के माध्यम से अपनी साधना शुरू कर सकते हैं।