आध्यात्मिक जगत में ब्रज की गोपियों का स्थान सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु तथा संघारकर्ता शंकर से भी ऊँचा है। प्रत्येक ब्रह्मांड में ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तीन ब्रह्मांडनायक होते हैं। यह तीनों त्रिदेव शब्द से संबोधित किए जाते हैं तथा भगवान श्री कृष्ण के स्वांश हैं। परंतु गोपियों की इतनी महिमा है कि 60,000 वर्षों की तपस्या के उपरांत भी सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी गोपियों की चरण धूलि तक प्राप्त नहीं कर पाए।
गोपियों की पाँच प्रमुख विशेषताएँ हैं:
श्री कृष्ण गोपियों से कहते हैं –
गोपियों की पाँच प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- गोपियों को श्री कृष्ण का महात्म्य ज्ञान है फिर भी वे दर्शाती नहीं हैं।
- वे भगवान श्री कृष्ण को प्रियतम स्वरुप में प्रेम करती हैं।
- वे श्री कृष्ण को सर्वस्व (निज वस्तु यथा तन, मन, धन) के साथ साथ स्वयं (आत्मा) को भी समर्पित करती हैं। इस भावना का शास्त्रीय नाम आत्मनिवेदन है।
- उनके अंदर स्वसुख वासना लवलेश मात्र भी नहीं है।
- उनकी समस्त चेष्टाएँ प्रियतम को सुख देने के लिए ही होती हैं।
श्री कृष्ण गोपियों से कहते हैं –
न पारयेऽहं निरवद्यसंयुजां स्वसाधुकृत्यं विबुधायुषापि व: ।
या माभजन् दुर्जरगेह श्रृंखला: संवृश्च्य तद् व: प्रतियातु साधुना ॥
या माभजन् दुर्जरगेह श्रृंखला: संवृश्च्य तद् व: प्रतियातु साधुना ॥
“हे गोपियों ! तुमने समस्त लौकिक और वैदिक मर्यादाओं को तोड़ कर मेरे प्रीतयार्थ मेरी सेवा की है । अतः देवताओं के 1000 वर्षों तक प्रयत्न करके भी मैं तुम्हारे ऋण से उऋण नहीं हो सकता।”
देवताओं का एक दिन मृत्यु लोक के छः माह के बराबर होता है और उतनी ही अवधि की रात्रि होती है। इस हिसाब से देवताओं का एक दिन हमारे मृत्युलोक के 1 वर्ष के बराबर होता है ।
श्री राधा और चंद्रावली को नित्य प्रिया गोपी कहा जाता है। ब्रज की गोपियाँ भी नित्य प्रिया गोपियों के समान गुणों, भावों सौन्दर्य इत्यादि से युक्त हैं। उज्ज्वल नीलमणि के अनुसार:
हरैः साधारणगुणैरुपेतास्तस्य वल्लभाः ।
पृथुप्रेम्णा सुमाधुर्य सम्पदाञ्चाग्रिमाश्रयाः ॥
पृथुप्रेम्णा सुमाधुर्य सम्पदाञ्चाग्रिमाश्रयाः ॥
"गोपियाँ श्री कृष्ण के समान सभी गुणों, दक्षताओं तथा सौंदर्य से परिपूर्ण हैं। वे माधुर्य और कला की पराकाष्ठा हैं।"
राधाचन्द्रावलीमुख्याः प्रोक्ता नित्यप्रिया ब्रजे ।
कृष्णवन्नित्यसौंदर्यवैदग्ध्यादिगुणाश्रयाः ॥
कृष्णवन्नित्यसौंदर्यवैदग्ध्यादिगुणाश्रयाः ॥
जब भगवान श्रीकृष्ण प्रेमावतार के रूप में धराधाम पर, मुक्त हस्त से अधिकारी जीवात्माओं को प्रेम लुटाने के लिए, अवतरित होते हैं तब गोलोक वासिनी गोपियाँ नित्य प्रिया गोपियों की सखी बनकर अवतरित होती हैं। सखियों के माता-पिता भी दिव्य होते हैं। श्री राधा तथा चंद्रावली नित्य प्रिया गोपियों में अग्रगण्य हैं।
तयोरुभयोर्मध्ये राधिका सर्वथाधिका ।
महाभावस्वरूपेयं गुणैरतिवरियसी ॥ "श्री राधा रानी और चंद्रावली की तुलना में श्री राधा रानी का स्थान उच्च है क्योंकि वो ह्लादिनी शक्ति के सारभूत तत्व - मादनाख्य महाभाव - का साकार स्वरूप हैं। वो अतुलनीय, अनिर्वचनीय सौंदर्य, गुणों इत्यादि का अगाध अपरिमेय समुद्र हैं ।"
अतः ब्रह्म गौतमीय तंत्र कहता है- राधा कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परदेवता ।
सर्व लक्ष्मीमयी सर्वकान्ति सम्मोहिनी परा ॥ “श्री राधा के सगुण साकार स्वरुप ही श्री कृष्ण हैं। अनंत महालक्ष्मी श्री राधा से प्रकट होती हैं। उन सभी अनंत महालक्ष्मी का सौंदर्य इकट्ठा कर दिया जाए तो वह श्री राधा रानी के सौंदर्य की एक बूँद के समान भी न होगा।”
|
श्री कृष्ण भगवान की सभी शक्तियों का साकार स्वरुप है। उन सभी शक्तियों की अधिष्ठात्री शक्ति ह्लादिनी शक्ति है। उस ह्लादिनी शक्ति का सार है मादन महाभाव और उसी मादन महाभाव का साकार स्वरूप हैं श्री राधा।तंत्र संहिता कहती है,
ह्लादिनी या महाशक्तिः सर्वशक्तिवरीयसी ।
तत्सारभूतरूपेयमिति तन्त्र प्रतिष्ठिता ॥
तत्सारभूतरूपेयमिति तन्त्र प्रतिष्ठिता ॥
“सर्वशक्तिमान भगवान श्री कृष्ण की सबसे प्रमुख शक्ति है ह्लादिनी और ह्लादिनी शक्ति का सार है मादन महाभाव और उसी मादन महाभाव की सगुण साकार स्वरुप हैं श्री राधा।” श्री राधा रानी की आठ अनादि अंतरंग सखियाँ हैं जिनको अष्ट महासखी कहा जाता है। ये सदैव श्री राधा रानी के साथ विहार करती हैं और योगमाया की संचालिकाएँ हैं ।
ये करोड़ों ब्रजांगनाओं की नेता हैं तथा श्री राधा रानी के प्रति निष्काम सेवा भाव होने के कारण उनके निकट रहकर उनकी सदैव सेवा करती हैं। श्री राधा रानी के प्रति उनका प्रेम अतुलनीय है तथा वे सदैव उनकी सेवा के लिए स्वेच्छा से उनकी सखी बनना चाहती हैं । इन गोपियों का जीवन युगल सरकार की सेवा है। अष्ट महासखियों के निर्देशन में अन्य गोपियों को युगल सरकार की सेवा का अवसर प्राप्त होता है।
यह अष्ट महासखियाँ युगल सरकार के सुख का इतना ध्यान रखती हैं कि उनकी इच्छाओं को भाँप लेती हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि अष्ट महासखियाँ युगल सरकार के मन में सदैव निवास करती हैं। श्री राधा का प्रेम अज्ञेय है। गोपियों की सेवा भावना को ध्यान से देखने पर श्री राधा के प्रेम का किंचित मात्र आभास हो सकता है। इसीलिए अष्ट महासखियों को श्री राधा की कायव्यूह स्वरुपा कहा गया है।
इन्हीं अष्ट महासखियों के दिशा निर्देशन में करोड़ों गोपियाँ युगल सरकार की विभिन्न रुप से अष्टयामी सेवा करती हैं। संसारी जीवों की भाँति गोपियाँ गोष्ठी नहीं करती है फिर भी उनकी प्रत्येक सेवा में सामंजस्य तथा उत्कृष्टता होती है। उदाहरण के लिए गोपियों का एक समूह परिधान तैयार करता है तथा दूसरा समूह श्रृंगार सामग्री व आभूषण तैयार करता है । पूर्व में रंगादि बिना तय किये ही परिधान व आभूषणों में तारतम्य होता है । इसी प्रकार गायन वादन बिना किसी अभ्यास के तालमेल के साथ अत्यंत मधुर होता है।
अंत में, गोपियों के आदर्श का अनुसरण करते हुए हम सभी को साधना भक्ति में श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम तथा श्री राधारानी को अपनी स्वामिनी मानकर युगल सरकार की पूर्ण निष्काम सेवा करनी है। अपने हृदय में स्वसुख वासना लेश मात्र भी नहीं रखनी है। प्रारंभ में निष्काम भावना पूर्ण रुप से संभव नहीं होगी परंतु हमारी मंशा सदैव निष्काम ही होनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान हमारी मंशा नोट करते हैं इंद्रियों की क्रियाओं को नहीं। धीरे-धीरे मन का मालिन्य कम होता जाएगा और हरि-गुरू मंशा को देखकर निष्काम भगवत् प्रेम जागृत कर देंगे। एक दिन भावभक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँचने पर मन का मालिन्य समाप्त हो जायेगा और अंतःकरण पूर्णतया शुद्ध हो जाएगा। उसी क्षण गुरू कृपा से अंतःकरण दिव्य हो जायेगा । यदि आप के गुरू रसिक संत हैं,जैसे हमारे श्री महाराज जी, तो उनकी कृपा से भक्ति की सर्वोच्च कक्षा में पहुंचकर गोपी बन सकते हैं। उस क्षण से अनादिकाल तक वह भाग्यशाली जीव अष्ट महासखियों के निर्देशन में युगल सरकार की सेवा करेंगे।
यह अष्ट महासखियाँ युगल सरकार के सुख का इतना ध्यान रखती हैं कि उनकी इच्छाओं को भाँप लेती हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि अष्ट महासखियाँ युगल सरकार के मन में सदैव निवास करती हैं। श्री राधा का प्रेम अज्ञेय है। गोपियों की सेवा भावना को ध्यान से देखने पर श्री राधा के प्रेम का किंचित मात्र आभास हो सकता है। इसीलिए अष्ट महासखियों को श्री राधा की कायव्यूह स्वरुपा कहा गया है।
इन्हीं अष्ट महासखियों के दिशा निर्देशन में करोड़ों गोपियाँ युगल सरकार की विभिन्न रुप से अष्टयामी सेवा करती हैं। संसारी जीवों की भाँति गोपियाँ गोष्ठी नहीं करती है फिर भी उनकी प्रत्येक सेवा में सामंजस्य तथा उत्कृष्टता होती है। उदाहरण के लिए गोपियों का एक समूह परिधान तैयार करता है तथा दूसरा समूह श्रृंगार सामग्री व आभूषण तैयार करता है । पूर्व में रंगादि बिना तय किये ही परिधान व आभूषणों में तारतम्य होता है । इसी प्रकार गायन वादन बिना किसी अभ्यास के तालमेल के साथ अत्यंत मधुर होता है।
अंत में, गोपियों के आदर्श का अनुसरण करते हुए हम सभी को साधना भक्ति में श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम तथा श्री राधारानी को अपनी स्वामिनी मानकर युगल सरकार की पूर्ण निष्काम सेवा करनी है। अपने हृदय में स्वसुख वासना लेश मात्र भी नहीं रखनी है। प्रारंभ में निष्काम भावना पूर्ण रुप से संभव नहीं होगी परंतु हमारी मंशा सदैव निष्काम ही होनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान हमारी मंशा नोट करते हैं इंद्रियों की क्रियाओं को नहीं। धीरे-धीरे मन का मालिन्य कम होता जाएगा और हरि-गुरू मंशा को देखकर निष्काम भगवत् प्रेम जागृत कर देंगे। एक दिन भावभक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँचने पर मन का मालिन्य समाप्त हो जायेगा और अंतःकरण पूर्णतया शुद्ध हो जाएगा। उसी क्षण गुरू कृपा से अंतःकरण दिव्य हो जायेगा । यदि आप के गुरू रसिक संत हैं,जैसे हमारे श्री महाराज जी, तो उनकी कृपा से भक्ति की सर्वोच्च कक्षा में पहुंचकर गोपी बन सकते हैं। उस क्षण से अनादिकाल तक वह भाग्यशाली जीव अष्ट महासखियों के निर्देशन में युगल सरकार की सेवा करेंगे।