Why does the mind not take refuge at the lotus feel of Sadguru?
Though this world is insipid, yet my mind is very tempted. The cons in this world very cleverly dupe the mind hence the knowledge imparted by Guru is not appealing to me. My Guru is the ocean of compassion, He does not distinguish worthy from unworthy. He embraced everyone who approached Him. I have little intelligence, yet He imparted to me the knowledge of hundreds of scriptures. Arrogant mind got everything and callously lost it all. Oh Mind ! Don't lose any more time. Guru is standing with wide open arms to embrace you. O Mind ! How could you not fall at the lotus feet of the refuge of destitute My Sadguru?
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O my Brother, Krishn Kanhaiya!
I wish to tie a 'rakhi' on His tender wrist! I wish to apply a sandalwood 'tilak' on that Darling of Nand! I wish to feed Him butter with my own hands! O my Brother Krishn Kanhaiya! In this way, I wish to bind Kanhaiya with the thread of my love and dance with Him! O my Brother Krishn Kanhaiya! माता-पिता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए, भारत और कई अन्य देशों में भी लोग मदर्स डे, फादर्स डे आदि मनाते हैं। सभी शास्त्रों में एक मत से माता के महत्व को दर्शाया गया है। शास्त्र विदित है कि पुत्र कुपूत और कृतघ्नी भले ही हो लेकिन माँ सदा उदार होती है और आजीवन जिन कार्यों में अपनी संतान का कल्याण मानती है उन कार्यों में व्यस्त रहती है। वह अपने बच्चे के लिए जो त्याग करती है वह शब्दों से परे है। वह अपने बच्चे को तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन, सुंदर कपड़ों, सबसे मनोरंजक खिलौनों आदि से लाड़ करती है। फिर भी, कुछ अच्छाई सिखाते समय वह बहुत सख्त हो जाती है। कोई महत्वपूर्ण बात सिखाने की जब ज़रूरत होती है, वह मन को कठोर बना लेती है । और जब वह बच्चे में धीरे-धीरे बढ़ती हुई कुछ अनैतिक आदतों को सुधारने की आवश्यकता देखती है, तो वह अपने स्नेह और कोमल भावनाओं को छुपाती है। यहाँ तक कि अपने ही बच्चे को दंड भी देती है। इसलिए माँ को बच्चे का पहला 'गुरु' कहा जाता है। अपनी शारीरिक देख भाल करना माँ सिखाती है जैसे ढ़ंग से बात करना, पीना, खाना, बैठना, चलना, नहाना, कपड़े पहनना आदि। बच्चे का सत्चरित्र बनाने के लिए भी कई बातें माँ ही अपने बच्चे को सिखाती है। इसलिए, बच्चे को जीवन भर अपनी माँ का आभार मानना चाहिए । कई कृतघ्नी बच्चे उसके योगदान का अनादर करते हैं और यहाँ तक कि "यह तुम्हारा कर्तव्य था" जैसे शब्द भी अशिष्टता से कहते हैं। उन्होंने अपना कर्तव्य अवश्य निभाया, लेकिन उन कार्यों का आधार उनका प्यार व बच्चे का कल्याण था । नर्स और दाई भी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, लेकिन जब उन्हें एक दिन वेतन सहित छुट्टी दी जाए तो वे खुश होते हैं और अधिक दिनों की छुट्टी पाने की आशा करते हैं। लेकिन माँ अपने बच्चे को देखे बिना एक दिन भी नहीं रह सकती। वह अपने बच्चे के लिए सब कुछ स्वयं करने पर खुश होती है। एक अच्छी माँ सबसे अच्छी नर्स, सबसे अच्छी शिक्षक और एक सच्ची शुभचिंतक होती है, जो अपने बच्चे को उस रास्ते पर चलना सिखाती है, जो बच्चे को अनंत सुख की प्राप्ति की ओर ले जाए । इसलिए, वह सद्गुणों को विकसित करने की पूरी कोशिश करती है । मेरी वास्तविक माँ मेरी वास्तविक माँ मेरे पूज्य गुरु श्री महाराज जी (श्री कृपालु जी महाराज) हैं । क्योंकि मुझे उनमें सर्वश्रेष्ठ माँ के सभी गुण नज़र आते हैं।
इस प्रकार, वास्तविक माँ के सभी गुण उनमें स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं । उनके सभी प्यारे भक्तों की ओर से, मैं उनके चरण कमलों को उनके मातृ स्नेह के लिए बार-बार नमन करती हूँ। सद्गुरु के पादपद्मों की धूली का एक कण
ब्रज बनचरी When Banchary Didi visited Houston in Feb 2020 she conducted a 12-hour satsang. After the satsang several devotees were sitting in Didi Ji's room and enjoying the prasad when one of them requested Didi Ji to write 108 names of Shri Maharaj Ji. The very next day she flew to Toronto and in Toronto, on 19th Feb 2020, Didi Ji composed these 13 couplets which have 108 names of Shri Maharaj Ji. Watch Shri Kripalu Ashtottra Shat Naam where Didi Ji sings her composition. Lyrics and Translationजगद्गुरूत्तमं स्मृत्वा, पादकंजं गुरोः मम । अष्टोत्तरशत नामानि, वक्ष्यामि स्वभावतः ॥१॥ jagadgurūttamaṃ smṛtvā, pādakaṃjaṃ guroḥ mama । aṣṭottaraśata nāmāni, vakṣyāmi svabhāvataḥ ॥1॥ सद्गुरु जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु महाप्रभु के पादपद्मों का स्मरण करती हुई मैं (ब्रज बनचरी ), अपने भावानुसार उनके 108 नामों को लिपिबद्ध करने जा रही हूँ। I offer my humble obeisances to the lotus feet of my beloved Gurudev Jagadguruttam Shri Kripalu Ji Maharaj. According to my own sentiments, I (Braj Banchary) am about to compose his 108 names. क्षमस्व बुधजनाः पश्य इयं क्षुद्रता मम। प्रसीदगुरुचरणाभ्यां अर्पितभक्तमंडल ! ।।2।। kṣamasva budhajanāḥ paśya iyaṃ kṣudratā mama। prasīdagurucaraṇābhyāṃ arpitabhaktamaṃḍala ! ।।2।। हे विद्वज्जन ! मेरी इस क्षुद्रता को मुझे अबोध जानकर कृपया क्षमा करें। श्री महाराज जी के भोले चरणानुरागी, उनकी गुणावलि का रसपान कर प्रसन्न होंगे, ऐसी आशा करती हूं। O Learned scholars! Please consider me as an ignorant soul and forgive my audacity. I hope that reading the glories of Shri Maharaj Ji, will bring joy and delight to the souls who are innocent and surrendered to the lotus feet of Shri Maharaj Ji. पद्मापतिः लाल्तानंदनश्चापि भगवतिसुतः मातृपादानुरागी । मनगढ़ग्रामवासी हितैकाअभिलाषी, पीत-अंबर- लसित गौरवर्णः शुभांगी ।।3।। padmāpatiḥ lāltānaṃdanaścāpi bhagavatisutaḥ mātṛpādānurāgī । managaḍha़grāmavāsī hitaikāabhilāṣī, pīta-aṃbara- lasita gauravarṇaḥ śubhāṃgī ।।3।। (1. पद्मापतिः- जगज्जननी मां पद्मा के पति, 2. लाल्तानंदनः - श्री लाल्ताप्रसाद के पुत्र , 3. भगवति सुतः - मां भगवती के दुलारे पुत्र , 4. मातृपादानुरागी - मातृ चरणों के अद्भुत अनुरागी ,5. मनगढ़ग्रामवासी - मनगढ़ नामक ग्राम में अवतरित , 6. हितैकाअभिलाषी - सदा केवल जीव कल्याणार्थ तत्पर , 7. पीत अंबरलसित - पीतांबर से शोभायमान , 8. गौरवर्ण: - गोरे वर्ण वाले , 9. शुभांगी - शुभ लक्षणों से युक्त शरीर वाले ।) 1. padmāpatiḥ i: the husband of the universal Mother Padma. 2. lāltānaṃdanaḥ: the son of Mr. Lalta Prasad 3. bhagavatisutaḥ : the son of Mother Bhagavati 4. mātṛpādānurāgī : Has great reverence for his mother’s lotus feet 5. managaḍha़grāmavāsī : Resident in the village of Mangarh 6. hitaikāabhilāṣī : Always eager for the upliftment of the masses 7. pīta-aṃbara- lasita: Adorned in yellow clothes 8. gauravarṇaḥ : Fair complexioned 9. śubhāṃgī : Endowed with auspicious signs. कृपालुः दयालुः निराधाराधारः, कृपाशीलकरुणाकरः, गुरुवरश्च । सुशीलः, सुधीरः, सुभगसुंदरश्च, विनीतः, विनम्रः, विमलविप्रश्रेष्ठः ।।4।। kṛpāluḥ dayāluḥ nirādhārādhāraḥ, kṛpāśīlakaruṇākaraḥ, guruvaraśca । suśīlaḥ, sudhīraḥ, subhagasuṃdaraśca, vinītaḥ, vinamraḥ, vimalavipraśreṣṭhaḥ ।।4।। 10. कृपालु: - कृपावान् , 11. दयालु: - दयावान् , 12. निराधाराधारः - आधार विहीन का एकमात्र आधार, 13. कृपाशील- कृपा करने के स्वभाव से युक्त, 14. करुणाकर: - अकारणकरुण, 15. गुरुवरश्च - गुरुओं में श्रेष्ठ, 16. सुशील: - शीलवान, 17. सुधीर: - परम धैर्यवान, 18. सुभग- सौभाग्यशाली, 19. सुंदरश्च - अति सुंदर, 20. विनीत: - विनयपूर्ण, 21. विनम्र: - नम्र स्वभावयुक्त, 22. विमल - परम शुद्ध, 23. विप्रश्रेष्ठ: - ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ।) 10. kṛpāluḥ : Kind 11. dayāluḥ : Full of compassion 12. nirādhārādhāraḥ : Supports the destitute 13. kṛpāśīla : Bestower of grace 14. karuṇākaraḥ : Causelessly merciful 15. guruvaraśca : Best amongst all Gurus 16. suśīlaḥ : Well-manned 17. sudhīraḥ : Patient 18. subhaga : Exclusively providential auspicios 19. suṃdara: Handsome 20. vinītaḥ : Courteous 21. vinamraḥ : Polite 22. vimala : Free of all contaminations 23. vipraśreṣṭhaḥ : Supreme amongst all Brahmins विशाल: विशुद्ध: विरागी मनस्वी, गंभीर: जलधिवत् मधुरभावभावी । पतितपावनः दीनवत्सल गुणज्ञः, आनंदानंदस्य ज्ञानप्रकाशी ।।5।। viśālaḥ viśuddhaḥ virāgī manasvī, gaṃbhīraḥ jaladhivata madhurabhāvabhāvī । patitapāvanaḥ dīnavatsala guṇajñaḥ, ānaṃdānaṃdasya jñānaprakāśī ॥5॥ 24.विशाल: - महान् , 25. विशुद्धः - परम शुद्ध, 26. विरागी - अनासक्त , 27. मनस्वी - नियंत्रित मन वाला, 28. गंभीर: जलधिवत् - समुद्र के समान गंभीर , 29. मधुरभाव भावी - माधुर्य भाव से ओतप्रोत । 30. पतितपावनः - पतितों को पवित्र करने वाले, 31. दीनवत्सल - दीनप्रिय, 32. गुणज्ञः - सद्गुणी , 33. आनंदस्य आनंदः - आनंद को भी आनंदित करने वाले , 34. ज्ञानप्रकाशी- ज्ञान को उजागर करने वाले।) 24. viśālaḥ : Greatest personality 25. viśuddhaḥ : Completely pure 26. virāgī : Completely detached 27. manasvī : Deep thinker 28. gaṃbhīraḥ jaladhivat : Deep like the ocean 29. madhurabhāvabhāvī : Ever absorbed in Madhurya bhav 30. patitapāvanaḥ : Purifier of sinners. 31. dīnavatsala : Defender of humble souls. 32. guṇajñaḥ : Virtuous 33. ānaṃdānaṃdasya : Provides bliss to The bliss itself 34. jñānaprakāśī : Treasure House of knowledge नृत्यगानक्षमः काव्यरचनाप्रवीण:, मानदः मान्यवरदानवीरः नरेशः। विगतक्रोधनिर्मलचराचरप्रियोऽति, प्रमोदप्रियः अष्टभावानुगामी।।6।। nṛtyagānakṣamaḥ kāvyaracanāpravīṇa:, mānadaḥ mānyavaradānavīraḥ nareśaḥ। vigatakrodhanirmalacarācarapriyo'ti, pramodapriyaḥ aṣṭabhāvānugāmī।।6।। 35.नृत्यगानक्षम: - नृत्य व संगीत में दक्ष , 36.काव्यरचनाप्रवीण: - श्रेष्ठ कवि , 37. मानद: - सबको मान देने वाले, 38. मान्यवर - सम्माननीय, 39 . दानवीरः - दानप्रिय , 40. नरेशः - मनुष्यों में श्रेष्णतम् । 41. विगतक्रोध - क्रोधजित्, 42. निर्मल - विशुद्ध हृदय वाले, 43. चराचरप्रियोऽति - चराचर समस्त प्राणियों के अति प्रिय , 44 . प्रमोदप्रिय: - हास परिहास के प्रेमी, 45. अष्टभावानुगामी - आठों सात्विक भाव पर्यंत स्थिति वाले ।। 35. nṛtyagānakṣamaḥ : Proficient in dance and music 36. kāvyaracanāpravīṇa : Eloquent poet 37. mānadaḥ : Reverent to all 38. mānyavara : Worthy of respect 39. dānavīraḥ : Most Benevolent 40. nareśaḥ : Peerless personage 41. vigatakrodha : Conqueror of anger 42. nirmala : Pure-hearted 43. carācarapriyo'ti: Loved by all moving and nonmoving creatures 44. pramodapriyaḥ : Humorous 45. aṣṭabhāvānurāgī : Endowed with all 8 symptoms of love(Asht Sattvik Bhav). गुरुः सर्वश्रेष्ठश्च उत्तमजगद्गुरुः, नामावतारी स्वयंकृष्णश्रेष्ठः । श्रीराधावतारः चिन्मयः साधुश्रेष्ठः, नटवरवपुः सर्वश्रेष्ठो महाजनः ।।7।। guruḥ sarvaśreṣṭhaśca uttamajagadguruḥ, nāmāvatārī svayaṃkṛṣṇaśreṣṭhaḥ । śrīrādhāvatāraḥ cinmayaḥ sādhuśreṣṭhaḥ, naṭavaravapuḥ sarvaśreṣṭho mahājanaḥ ।।7।। 46. गुरुः सर्वश्रेष्ठः - समस्त ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों में श्रेष्ठ, 47. उत्तम जगद्गुरुः - समस्त जगद्गुरुओं में भी श्रेष्ठतम् , 48. नामावतारी स्वयंकृष्णश्रेष्ठः - अवतारी महाप्रभु चैतन्य के द्वितीय अवतार होने के कारण यह अवतारी स्वयं श्री कृष्णस्वरूप हैं । 49. श्रीराधावतारः चिन्मयः - श्री राधा के दिव्य अवतार, 50. साधु श्रेष्ठः - सज्जन पुरुषों में श्रेष्ठ, 51. नटवरवपु: - श्रीकृष्णस्वरूप , 52. सर्वश्रेष्ठोमहाजनः - सर्वश्रेष्ठ महापुरुष ।। 46. guruḥ sarvaśreṣṭhaśca : Crest jewel of all spiritual masters 47. uttamajagadguruḥ : Best of all jagadgurus 48. nāmāvatārī svayaṃkṛṣṇaśreṣṭhaḥ : Second descension of Mahaprabhu Chaitanya who is Shri Krishna Himself; the one who is the source of all descensions. 49. śrīrādhāvatāraḥ cinmayaḥ : Divine descension of Shri Radha 50. sādhuśreṣṭhaḥ : Best of all sages 51. naṭavaravapuḥ : Form of Shri Krishna 52. sarvaśreṣṭho mahājanaḥ : Best of all God-realized souls सिद्धसंकल्पकः सिद्धिदः सिद्धिसिंधुः, प्रसिद्धःप्रथितप्रेमरूपो वरेण्यः । अतीन्द्रोऽनघो मुक्त शाश्वतविजेता, संवृतः सत्कृतः विश्रुतः सत्यसारः ।।8।। siddhasaṃkalpakaḥ siddhidaḥ siddhisiṃdhuḥ, prasiddhaḥprathitapremarūpo vareṇyaḥ । atīndro'nagho mukta śāśvatavijetā, saṃvṛtaḥ satkṛtaḥ viśrutaḥ satya sāraḥ ।।8।। 53. सिद्धसंकल्पकः - सत्य संकल्प वाले, 54 . सिद्धिदः - समस्त सिद्धियों के प्रदाता, 55 . सिद्धिसिंधु: - सिद्धियों का समुद्र , 56. प्रसिद्धः - कीर्तिवान् , 57. प्रथितः - पूज्यनीय , 58 . प्रेमरूपो - प्रेमस्वरूप , 59. वरेण्य: - आदरणीय, 60, 61. अतीन्द्रोऽनघो - इंद्रिय विषयों से परे, व सर्व पापों से परे, 62. मुक्त - सर्व बंधनों से परे, 63. शाश्वतविजेता - सदा विजयी, 64. संवृतः - नियंत्रित, 65. सत्कृतः - सत्य कार्य का कर्ता, 66. विश्रुतः - विशेष कीर्तिवान् , 67. सत्यसार: - सत्य का सार तत्व।। 53. siddhasaṃkalpakaḥ : The one whose every resolution comes to fruition. 54. siddhidaḥ : Patron of all powers. 55. siddhisiṃdhuḥ : Ocean of all siddhis 56. prasiddhiḥ : Legendary 57. prathita : Revered 58. premarūpo : Embodiment of love 59. vareṇyaḥ : Exceedingly adorable. 60. 61. atīndro'nagho : without sensual cravings and sins. 62. mukta : Unconventional 63. śāśvatavijetā : Eternal winner 64. saṃvṛtaḥ : Entirely in-control 65. satkṛtaḥ : Executor of good deeds 66. viśrutaḥ : Known with unprecedented fame. 67. satya sāraḥ : Essence of veracity मनहारिणो मोहनो मोहहर्ता, सुखदस्वापनः सर्वव्यापी सुभर्ता । श्रीनिधिः श्रीकरः श्रीमतांवरः श्री, कृपालुः परं निग्रही प्रग्रही वा ।।9।। Manahāriṇo mohano mohahartā, sukhadasvapnaḥ sarvavyāpī subhartā । śrīnidhiḥ śrīkarāḥ śrīmatāṃvaraḥ śrī, kṛpāluḥ paraṃ nigrahī pragrahī vā ।।9।। 68. मनहारिणो- मन हरने वाला , 69. मोहनो - मोहक, 70 . मोहहर्ता - अज्ञान विदारक, 71. सुखदः - सुखी करने वाले, 72. स्वापनः - स्वतंत्र , 73. सर्वव्यापी - सर्वत्र उपस्थित, 74 . सुभर्ता - सुखद स्वामी , 75 . श्रीनिधि: - सर्वशोभाधाम ,76. श्रीकरः - सर्वलक्ष्मीदायक , 77 . श्रीमतांवरः - ऐश्वर्यवानों में श्रेष्ठ हैं श्री कृपालु महाप्रभु , 78 . परं निग्रही - घोर संयमी, 79. प्रग्रही - सर्वग्राही हैं। 68. manahāriṇo: Fascinating 69. mohano : Charming 70. mohahartā : Annihilator of ignorance 71. sukhada : Most amicable 72. svapnaḥ : Totally independent 73. sarvavyāpī : Omnipresent 74. subhartā : A good master. 75. Śrīnidhiḥ : Abode of all majesty. 76. śrīkarāḥ : Benefactor of all wealth. 77. śrīmatāṃvaraḥ : Best of all sovereign personalities 78. paraṃ nigrahī : Epitome of sobriety. 79. pragrahī : All accomplishing मुनीन्द्रः मनीन्द्रः सरसरासवर्षी, आराधकः राधिकाराधितोऽयम् । गोपेश्वरो ,गोपिकावल्लभोऽयम् पद्मेशपद्मारमणपालकोऽयम् ।।10।। munīndraḥ manīndraḥ sarasarāsavarṣī, ārādhakaḥ rādhikārādhitoyam। gopeśvaro gopikāvallabho'yam padmeśapadmāramaṇapālako'yam ।।10।। 80. मुनीन्द्रः - मुनियों में श्रेष्ठ, 81. मनीन्द्रः मनो विजयी, 82. सरसरासवर्षी - सरस रास की वर्षा करने वाले, 83. आराधकः - राधा के आराधक , 84.राधिकाराधितोऽयम्- राधा द्वारा आराधित। 85. गोपेश्वरो - गोप ग्वालों के स्वामी , 86. गोपिकावल्लभोऽयम्- गोपियों के प्रियतम, 87. पद्मेश - श्रीमती पद्मा के पति, 88. पद्मारमण - मां पद्मा के साथ विहार करने वाले, 89. पालकोयम् - जगत का पालन करने वाले ।। 80. munīndraḥ : Greatest Muni. 81. manīndraḥ : one who has control over his mind 82. sarasarāsavarṣī : Showers the sweetest nectar of raas 83. ārādhakaḥ : Worshiper of Shri Radha 84. rādhikārādhitoyam : One who is adored by Shri Radha 85. gopeśvaro : Master of all cowherd boys 86. gopikāvallabho'yam : Cherished by milk-maidens of Braj. 87. padmeśa : Husband of Padma Devi 88. padmāramaṇa : one who frolics with Mother Padma 89. pālako'yam: Defender of the world कृष्णानुरागी, सकललोकत्यागी, राधिकातत्त्वज्ञाता सकललोकख्यातः । भावमयभावदः भावनृत्यप्रियः , कृष्णभक्तप्रियः नामनामी प्रियश्च ।।11।। kṛṣṇānurāgī, sakalalokatyāgī, rādhikātattvajñātā sakalalokakhyātaḥ । bhāvamayabhāvadaḥ bhāvanṛtyapriyaḥ kṛṣṇabhaktapriyaḥ nāmanāmī priyaśca ।।11।। 90. कृष्णानुरागी - केवल राधाकृष्ण के अनुरागी , 91. सकललोकत्यागी - शेष सब त्याग देने वाले , 92. राधिकातत्त्वज्ञाता - राधा तत्त्व के सम्यक् ज्ञाता, 93. सकललोकख्यातः - सारे लोक में प्रख्यात, 94, 95. भावमयभावदः - सदा प्रेम भावों में उल्लसित व प्रेम भाव के प्रदाता, 96. भावनृत्यप्रियः - भाव में अति सुंदर नृत्य करने वाले, 97. कृष्णभक्तप्रिय: - श्री कृष्ण भक्तों से प्रेम करने वाले, 98. नामनामी प्रियः - भगवन्नाम व नामी में समान निष्ठा रखने वाले।। 90. kṛṣṇānurāgī: Worshiper of Shri Radha Krishna 91. sakalalokatyāgī: Renouncer of rest of the world 92. rādhikātattvajñātā : Understands Shri Radha Rani 93. sakalalokakhyātaḥ : Renowned in the whole world 94. 95. bhāvamayabhāvadaḥ : Always rejoices in love and bestows that love upon others 96. bhāvanṛtyapriyaḥ : one who dances beautifully in bhav 97. kṛṣṇabhaktapriyaḥ : one who loves those who love Shri Krishna 98. nāmanāmī priyaśca: one who has equal faith in the name of God and God राधिकाजनप्रियः राधालीलाप्रियः राधाभावप्रियः श्री कृपालुं नमामि। संकीर्तनाचार्यसंराधकश्च, प्रतिष्ठापको मार्गवेदस्य ते नमः ।।12।। rādhikājanapriyaḥ rādhālīlāpriyaḥ rādhābhāvapriyaḥ śrī kṛpāluṃ namāmi। saṃkīrtanācāryasaṃrādhakaśca, pratiṣṭhāpako mārgavedasya te namaḥ ।।12।। 99.राधिकाजनप्रिय: - राधा रानी के भक्तों के प्रिय भक्त, 100. राधालीलाप्रिय: - श्री राधा लीला में प्रियता रखने वाले,101. राधाभावप्रियः - राधारानी के प्रेम भाव के महान् प्रशंसक 102. संकीर्तनाचार्य - संकीर्तन के गूढ़तम तत्त्वों का उद्घाटन करने वाले संकीर्तन के परमाचार्य , 103. संराधकश्च - श्रेष्ठतम् समन्वयकर्ता, 104. प्रतिष्ठापको मार्गवेदस्य: - वेदविहित धर्म के पुनर्स्थापक , आप को शत-शत प्रणाम ।। 99. rādhikājanapriyaḥ : Loved by the devotees of Radha Rani 100. rādhālīlāpriyaḥ : Admirer of the leelas of Shri Radha 101. rādhābhāvapriyaḥ : Great admirer of Shri Radha Rani’s mode of love 102. saṃkīrtanācārya: Profound professor of spiritual hymnsl 103. saṃrādhakaśca: The best reconciler 104. pratiṣṭhāpako mārgavedaḥ : Re-establisher of Vedic-dharm योगेश्वरः भक्तियोगप्रकाशी, महाभावस्थितअमितप्रेमराशिः । ब्रजबनचरीऽहं कृपैकाभिलाषी, नमामि अहं तं नमामि नमामि ।।13।। yogeśvaraḥ bhaktiyogaprakāśī, mahābhāvasthitaamitapremarāśiḥ । brajabanacarī'haṃ kṛpaikābhilāṣī, namāmi ahaṃ taṃ namāmi namāmi ।।13।। 105. योगेश्वरः - योगियों में सर्वश्रेष्ठ, किन्तु 106. भक्तियोगप्रकाशी - भक्तियोग रहस्यों के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशक, 107. महाभावस्थित - सदा महा भाव में स्थित व 108. अमितप्रेमराशि: - अनंत प्रेम की निधि को, गुरुदेव की ही कृपा से जीवित, मैं अकिंचन ब्रज बनचरी बारंबार प्रणाम करती हूं ।। 105. yogeśvaraḥ : Best among the yogis 106. bhaktiyogaprakāśī: Best revealer of bhakti yog 107. mahābhāvasthita: One who is always in the state of Mahabhav 108. amitapremarāśiḥ: One who is the ocean of unending love I, Braj Banchary, who owes my very existence to your unlimited grace, offer my countless obeisances to your lotus feet. ।। वृन्दारकवृन्दवंद्यकमलकोमलसद्गुरुचरणाभ्यां नमः ।। vṛndārakavṛndavaṃdyakamalakomalasadgurucaraṇābhyāṃ namaḥ ।। I worship my Gurudev’s lotus feet, which are worshiped even by the devatas. - A particle of dust of His lotus feet
Braj Banchary
हैपी न्यु इयर टु यू पापा, हैपी न्यु इयर टू यू ।
आई लव यू पापा लव यू पापा, आई लव यू लव यू ॥ haipī nyu iyara ṭu yū pāpā, haipī nyu iyara ṭū yū । āī lava yū pāpā lava yū pāpā, āī lava yū lava yū ॥ Papa! I wish you are very happy new year. Papa! I love you, I love you. तेरे भक्त यहाँ आए हैं, प्यार भरा दिल संग लाए हैं, हाय स्वीटू स्वीटू, हैपी न्यु इयर टू यू ॥ tere bhakta yahām̐ āe haiṃ, pyāra bharā dila saṃga lāe haiṃ, hāya svīṭū svīṭū, haipī nyu iyara ṭū yū ॥ All of your devotees have gathered here and their hearts are overflowing with love for you. O my dear! a very happy new year to you. यू आर सो ब्यूटिफुल पापा, तुम पर न्यौछावर है लाइफ़ पापा, ओ माई छबीले हनी ड्यू, हैपी न्यु इयर टू यू ॥ yū āra so byūṭiphula pāpā, tuma para nyauchāvara hai lāiफ़ pāpā, o māī chabīle hanī ḍyū, haipī nyu iyara ṭū yū ॥ O Papa! you are so good-looking. I sacrifice my all on you. O my matchless honey! A very happy new year to you. एव्रीवन हियर डिलाइटेड है, समथिंग तो रियलि वान्टेड है, विशिंग टु डान्स विद यू, हैपी न्यु इयर टू यू ॥ evrīvana deyara ḍilāiṭeḍa hai, hiyara bhī samathiṃga vānṭeḍa hai, viśiṃga ṭu ḍānsa vida yū, haipī nyu iyara ṭū yū ॥ Everyone here is delighting in your presence and desire to dance with you. A very happy new year to you. वी आर तो हपी हैं, थिंक लाइक यूँ, अवर बेस्ट गिफ़ट है, लाइफ़ की तू, मिलियन्स आफ़ थैंकस टु यू, हैपी न्यु इयर टू यू ॥ vī āra to hapī haiṃ, thiṃka lāika yūm̐, āvara besṭa giफ़ṭa hai, lāipha kī tū, miliyansa oफ़ thaiṃkasa ṭu yū, haipī nyu iyara ṭū yū ॥ You are the best gift I have ever received in my life. You make me extremely happy. Millions of thanks to you and a very happy new year to you.
हे दया सिंधु गुरुवर! मेरी भी सुधि लेना,
पद रज की कणिका सम, निज चरनन रख लेना । he dayā siṃdhu guruvara! merī bhī sudhi lenā, pada raja kī kaṇikā sama, nija caranana rakha lenā । O Gurudev! The Ocean of mercy! I request you to check on my well-being too. I urge you to offer me a place under your lotus feet, just like a speck of dust. अति मलिन हृदय है मेरा, जहाँ झूठ कपट का डेरा, लखि पाप पुण्य मेरे, मुख मोड़ न तुम लेना । ati malina hṛdaya hai merā, jahām̐ jhūṭha kapaṭa kā ḍerā, lakhi pāpa puṇya mere, mukha moड़ na tuma lenā । My mind is extremely impure. It is the living abode of lies and deceit. I urge you not to turn your face away from me, seeing my numerous shortcomings and flaws. करते अपराध सदा हम, जाने अनजाने में, भटके हुये इस मन को, प्रभु चरण शरण देना । karate aparādha sadā hama, jāne anajāne meṃ, bhaṭake huye isa mana ko, prabhu caraṇa śaraṇa denā । I ceaselessly continue to commit sins, knowingly or unknowingly. Please take this misguided mind of mine, under the shelter of your lotus feet. मैं हूँ अयोग्य इसके भी, जो चरण शरण पाऊँ, करुणा करि के सेवा का, कुछ भाव जगा देना । maiṃ hūm̐ ayogya isake bhī, jo caraṇa śaraṇa pāūm̐, karuṇā kari ke sevā kā, kucha bhāva jagā denā । I know that I am not worthy of getting shelter under your lotus feet. But, out of your kind mercy, I request you to please develop a desire to serve you. तुम ही एक मेरे हो, ये जान सकूँ गुरुवर, मन भवन बना अपना, निज विरद निभा देना । tuma hī eka mere ho, ye jāna sakūm̐ guruvara, mana bhavana banā apanā, nija virada nibhā denā । To help me realize the fact that you alone are mine, please come and permanently reside within my heart, thereby upholding your reputation. या मुझ जैसे पतितों का, तुम बिन यदि कोई हो, जहाँ करुणा लुटती हो, वह द्वार बता देना । yā mujha jaise patitoṃ kā, tuma bina yadi koī ho, jahām̐ karuṇā luṭatī ho, vaha dvāra batā denā । Or, if there is someone else, who showers grace and mercy in abundance on fallen sinners like me, please direct me to his abode. On the auspicious occasion of 61st Jagadguruttam Divas, a humble offering of poetic flowers at the lotus feet of my Gurudev, Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj. Please click on the little triangle below to listen to this poetry. For the words and their meaning in Hindi and English, please scroll down. कृपाल्वाष्टकम्
कृपा की साक्षात मूर्ति, नरश्रेष्ठ श्री कृपालु महाप्रभु उच्च कुलीन विप्र परिवार के सौभाग्य का वर्धन करते हुए ज्ञान के प्रचंड सूर्यवत् कलियुग में अवतरित हुए। In the age of Kaliyug, Jagadguruttam Shri Kripalu Ji Maharaj, the very embodiment of divine grace and sovereign personage, further enhanced the honor of a respectable Brahmin family, by descending in that house. In Kaliyug (see Kaal-Time), an age of ignorance, he is a dazzling sun of unlimited knowledge.
विद्वज्जन समुदाय के द्वारा श्री काशी नगरी में इनका अभूतपूर्व अभिनंदन हुआ और काशीस्थ विद्वानों ने जगद्गुरूत्तम पद से इनकी अभ्यर्चना की। He was immensely cherished by the group of highly qualified spiritual scholars in Kashi in 1957. They glorified him with a composition of 7 Sanskrit verses, called padyaprasoonopahar (a gift of poetic flowers), and honored him by conferring the unprecedented title of Jagadguruttam, which means greatest of all Jagadgurus.
यह समन्वयाचार्य हैं। हमारे श्री कृपालु गुरुदेव ने समस्त जगद्गुरुओं के मतों की सार्थकता को सिद्ध करते हुए उनका समन्वय किया व अपना मत भी प्रस्तुत किया । पूर्ववर्ती चारों जगद्गुरुओं के मत में प्रतिलक्षित गहन मतभेद के होते हुए उनको परम चरम राद्धांत का ही साधन बताया व उन सब मतों की उपादेयता को आश्चर्यजनक रूप से सिद्ध किया। इसी कारण से यह सर्वश्रेष्ठ जगद्गुरु घोषित हुए। इनको काशी विद्वद् परिषत् द्वारा पद (व्याकरण), मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, योग व सांख्य षड् दर्शनों में पारावारीण घोषित किया गया। Shri Kripalu Ji Maharaj reconciled philosophies of all four prior Jagadgurus. Jagadguru Shankaracharya propounded Dwait vad or non-Dualism, Jagadguru Nimbarkacharya propounded Dwaita-Dwait vad dualism and non-dualism. Jagadguru Vallabhacharya propagated Vishuddh Advait vad, or Pure Non-dualism. Jagadguru Madhavacharya propounded Dwait vad, or Dualism. Shri Maharaj Ji established the importance of the philosophies of all Jagadgurus. While reconciling all of them, Shri Maharaj Ji propounded his own philosophy. Shri Maharaj Ji established that even though the philosophies of prior Jagadgurus seem contradictory, yet they are paths of reaching the absolute truth. Therefore, he was pronounced the best of all the past Jagadgurus.
ये समस्त शास्त्रों के रहस्यों को सरलतम शब्दों में उद्घाटित करने में प्रवर, प्रकृष्ट प्रवचनकर्ता हैं। भक्ति के मूल अंड़्गों व उनके गूढ़तम् रहस्यों को प्रकाशित करते हुए उनको प्रयोगात्मक जीवन में उतारने के विज्ञान को बता कर इन्होंने संपूर्ण विश्व में बाह्याडंबरों से शून्य वास्तविक भक्ति का अभूतपूर्व प्रचार किया है। परम निष्काम अनन्य प्रेम की आचार्या, महाभावस्वरूपा श्री राधारानी की कायव्यूहरूपा ब्रजांड़्गनाओं के प्रेम के ये श्रेष्ठतम् मर्मज्ञ हैं। इनमें गोपी भाव संबद्धसात्विक भावों के उद्रेक का प्रायः प्रादुर्भाव होता था। इन्होंने श्री राधाकृष्ण की भक्ति का विश्वव्यापी प्रचार किया। Kashi Vivad Parishat proclaimed him to be "beyond perfection" in all 6 schools of philosophy namely Vyakaran, Mimansa, Nyay, Vaisheshik, Yoga and Sankhya. Vyakaran was promoted by saint Panini, Poorva Mimansa by Jaimini, Vaisheshik by Saint Kanad, Nyay by Gautam, Sankhya by Kapil and Vedanta by Ved Vyas. All of these personalities are the undisputed masters of their own scriptures. But, Shri Maharaj Ji is the source of all these scriptures and is beyond perfection. This is what the scholars of Kashi proclaimed to the world! He is a proficient speaker capable of revealing the secrets of all scriptures in a very simple language. He is also skilled at unveiling the utmost depths of devotion and the science of its implementation in daily life. Thus, he put pure devotion in the spotlight. The maidens of Braj are the embodiment of Shri Radha Rani’s ideology of unadulterated selfless love. He is intimately familiar with enigma of that love. All the 8 symptoms of love are often exhibited in his body. Not only that, some of those symptoms can be seen in the bodies of his devotees as well. All over the world, He propagated true devotion to Shri Radha and Krishna.
भगवती पुत्र श्री कृपालु महाप्रभु उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ नगर के मनगढ़ ग्राम के में अवतरित हुए । और 16 वर्ष की अवस्था से ही जन कल्याण के महायज्ञ में आहर्निश संलग्न हो गए । Kripalu Mahaprabhu, son of Mother Bhagawati appeared in a Mangarh, a small village in the state of Utter Pradesh in India. At the tender age of 16 years He took up the herculean task of welfare of humankind.
ये महाकवि हैं, महान् गायक हैं, साधन हीन दीन जनों की सहायता करते ये अघाते ही नहीं थे। His poetic prowess is unparalleled. He captivates the audience with his melodious voice. Above all He never shuns away from uplifting the down-trodden.
वही जो सर्वगुण संपन्न हैं, महान् संतों, विद्वानों आदि द्वारा भी वंदनीय हैं। जिनका व्यक्तित्व सबके मन को बरबस मोह लेने वाला है। जिनका दर्शन सुख राशि की वर्षा करता है । एवं जो विनोद प्रिय हैं । My Guru is one who is endowed with all virtues, one who is revered by great saints and scholars, whose personality naturally besots everyone’s mind, beholding whose vision showers endless bliss, who has a jovial nature.
जो सबके पूज्य हैं ,महादानी हैं, सुख देने वाले व दीनप्रिय हैं ।वही मेरे पूज्य गुरुदेव हैं। मेरा उनको कोटि-कोटि प्रणाम है। He is revered by all, and is the greatest philanthropist. I offer uncountable obeisances to such an astounding personality who is my Gurudev. - A particle of dust of His Lotus Feet
Braj Banchary
हे पिता सकल जग जके, हम शीश नवाते हैं, खिल जाते हृदय सुमन, दर्शन जब पाते हैं । he pita sakal jag jake, ham sheesh navaate hain, khil jaate hrday suman, darshan jab paate hain . तुम झूम झूम आते जब, कितना सुख पाते हैं, हम सब की कौन कहे, तरु भी झुक जाते हैं । tum jhoom jhoom aate jab, kitana sukh paate hain, ham sab kee kaun kahe, taru bhee jhuk jaate hain . तव प्यार भरी चितवन लखि, हम बलि बलि जाते हैं, अपनेपन का सागर, तव दृग छलकाते हैं । tav pyaar bharee chitavan lakhi, ham bali bali jaate hain, apanepan ka saagar, tav drg chhalakaate hain . अगणित गुण प्रभु तेरे, अति याद दिलते हैं, दृग नीर बहा मन को, कुछ समझा पाते हैं । aganit gun prabhu tere, ati yaad dilate hain, drganeer baha man ko, kuchh samajha paate hain . तुम्हरे शिशु हे पापा ! तव जय जय गाते हैं, नहिं पितु पटतर तुम्हरे, इस जग में पाते हैं । tumhare shishu he paapa ! tav jay jay gaate hain, nahin pitu patatar tumhare, is jag mein paate hain . स्वीकारो शत वन्दन, पितु दिवस मनाते हैं, नहिं भूलूँ इक पल भी, यह कृपा मनाते हैं । sveekaaro shat vandan, pitu divas manaate hain, nahin bhooloon ik pal bhee, yah krpa manaate hain O father of this Universe! I bow my head to you in reverence. Our hearts blossoms like a beautiful flower, upon getting a glimpse of your magnificent personality. Words cannot express the joy that we experience in watching your beautiful swaying gait. Your magnificence is such that not just humans, but even the trees bow down in reverence. Seeing the loving affection in your eyes, I am ready to sacrifice everything upon you. I am enthused seeing the loving kinship in your eyes. Your countless virtues, keep your memories always fresh in my mind. Tears are the only support that help calm me down. O Papa! Your children sing your glories. None is this world is as benevolent a father as you. Please accept by millions of obeisance on this Father’s Day. Please grace me so I don’t forget you even for a moment. A Particle of His Foot Dust
Braj Banchary To show their gratitude towards mother and father, people in India and many other countries as well, celebrate Mothers day, fathers day and so on. Importance of a mother is depicted in all the scriptures unanimously. Scriptures show that a son could be bad and ungrateful but a mother is always generous and caring towards her child, regardless of his age. Sacrifices she makes for her child are beyond words. She pampers her child with scrumptious food-varieties, beautiful clothes and most entertaining toys and so on. Yet, she is very strict at the time of teaching something good. She is stern when she need to teach something important. And when she sees the need to rectify some gradually growing unethical habits in the child, she hides her affection and tender feelings, and even punishes her own child. That’s why a mother is called to be the first ‘Guru’ of a child. There are many basic life skills that a mother teaches viz. talking, drinking, eating, sitting, walking, bathing, dressing up etc. Hence, a sincere child must be obliged to her throughout the life. Many ungrateful children disrespect her contribution and even rudely say words like, “It was your duty”. Of course, she did her duty too, but her love behind those duties has always been unfathomable. A nurse and a baby sitter also perform their respective duties, but when they are given a paid day off, they are joyous and wish to get more days off. But a mother can not live even a day without seeing her child. She is happy to do everything herself for her child. A good mother is a best nurse, best teacher and a real well-wisher, who teaches her child to follow the path, which can lead you towards attainment of eternal happiness. So, she tries her best to develop the virtues accordingly. My real mother My real mother is my revered master Shri Maharaj Ji (Shri Kripalu Ji Maharaj). Because, I find all the qualities of a best mother inherent in Him. 1. He gave new birth to us by opening our eyes and turning us towards God only. 2. He nourishes us with the spiritual food of inspiring discourses and drowning us with breath-taking chanting. 3. He loves His devotees so much that many old-age-devotees start talking to Him in lisping tone like a child. He never shows His prowess as a Jagadguru or Guru. He lives with us like a family. He is accessible to His devotees all the time. 4. But, when we become careless in our Sadhana or whenever we cross the limit of modesty or commit any other mistake, which hampers our spiritual progress, His attitude becomes scary. Nobody dares open his mouth in front of Him at that time. 5. He is extremely punctual, which forces us to be punctual in life. He says without binding yourself in some rules and punctuality, you can never be successful in any sphere of life. 6. His food is simple and nutritious. That also inspires us to eat the same kind of food. It is healthy and less time consuming. He never allows chili to be used in Ashram food. 7. He is so much concerned to deliver us that He gets up at 2.00a.m. to finish His morning routine and be with the devotees by 4.00 a.m. Since the life is so transient, He always reminds us, we must utilize each and every moment to enhance spiritual love for Radha Krishna. And, He practically does the same to make us follow this teaching. 8. He is so generous and sympathetic like a real mother, that he can not bear even physical suffering of anyone. Sometimes He would punish a devotee for some wrong doing by ordering him to stand for couple of hours or to skip a meal. But after 15-20 minutes, after going inside His room, sends message, “tell him to go or to eat”. So much mercy!! 9. He keeps delivering discourses for our benefit even in His sickness. All because He so deeply wants to infuse the philosophy in our mind so that we can realize God soon in this life itself. Thus, all the attributes of a real mother are naturally found in Him. On behalf of all His loving devotees, I bow down to His lotus feet again and again for His motherly affection. Countless Salutations to my real Mother. - Didi Braj Banchary Ji
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