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मातृ स्नेह की गरिमा

5/14/2023

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माता-पिता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए, भारत और कई अन्य देशों में भी लोग मदर्स डे, फादर्स डे आदि मनाते हैं।

सभी शास्त्रों में एक मत से माता के महत्व को दर्शाया गया है। शास्त्र विदित​ है कि पुत्र कुपूत और कृतघ्नी भले ही हो लेकिन माँ सदा उदार होती है और आजीवन जिन कार्यों में अपनी संतान का कल्याण मानती है उन कार्यों में व्यस्त रहती है। 

वह अपने बच्चे के लिए जो त्याग करती है वह शब्दों से परे है। वह अपने बच्चे को तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन, सुंदर कपड़ों, सबसे मनोरंजक खिलौनों आदि से लाड़ करती है। फिर भी, कुछ अच्छाई सिखाते समय वह बहुत सख्त हो जाती है। कोई महत्वपूर्ण बात सिखाने की जब ज़रूरत होती है, वह मन को कठोर बना लेती है । और जब वह बच्चे में धीरे-धीरे बढ़ती हुई कुछ अनैतिक आदतों को सुधारने की आवश्यकता देखती है, तो वह अपने स्नेह और कोमल भावनाओं को छुपाती है। यहाँ तक कि अपने ही बच्चे को दंड भी देती है। इसलिए माँ को बच्चे का पहला 'गुरु' कहा जाता है। अपनी शारीरिक देख भाल करना माँ सिखाती है जैसे ढ़ंग​ से​ बात करना, पीना, खाना, बैठना, चलना, नहाना, कपड़े पहनना आदि। बच्चे का सत्चरित्र बनाने के लिए भी कई बातें माँ ही अपने बच्चे को सिखाती है।  

इसलिए, बच्चे को जीवन भर अपनी माँ का आभार मानना चाहिए । कई कृतघ्नी बच्चे उसके योगदान का अनादर करते हैं और यहाँ तक कि "यह तुम्हारा कर्तव्य था" जैसे शब्द भी अशिष्टता से कहते हैं। उन्होंने अपना कर्तव्य अवश्य निभाया, लेकिन उन कार्यों का आधार उनका प्यार व​ बच्चे का कल्याण था । नर्स और दाई भी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, लेकिन जब उन्हें एक दिन वेतन सहित छुट्टी दी जाए तो वे खुश होते हैं और अधिक दिनों की छुट्टी पाने की आशा करते हैं। लेकिन माँ अपने बच्चे को देखे बिना एक दिन भी नहीं रह सकती। वह अपने बच्चे के लिए सब कुछ स्वयं करने पर खुश होती है। एक अच्छी माँ सबसे अच्छी नर्स, सबसे अच्छी शिक्षक और एक सच्ची शुभचिंतक होती है, जो अपने बच्चे को उस रास्ते पर चलना सिखाती है, जो बच्चे को अनंत सुख की प्राप्ति की ओर ले जाए । इसलिए, वह सद्गुणों को विकसित करने की पूरी कोशिश करती है ।

मेरी वास्तविक माँ

मेरी वास्तविक माँ मेरे पूज्य गुरु श्री महाराज जी (श्री कृपालु जी महाराज) हैं । क्‍योंकि मुझे उनमें सर्वश्रेष्‍ठ माँ के सभी गुण नज़र आते हैं।

  1. उन्होंने हमारी आंखें खोलकर, हमें ईश्वर की ओर मोड़कर हमें एक नया जन्म दिया।
  2. वे हमें प्रवचन रूपी आध्यात्मिक भोजन से पोषित करते हैं और हमें रसमय​ कीर्तन का पान कराते हैं।
  3. वे अपने भक्तों से इतना प्यार करते हैं कि कई वृद्ध-भक्तजन महाराज जी से छोटे बच्चों की भाँति​ तुतलाकर बात करने लगते हैं। वे कभी भी जगद्गुरु या गुरु के रूप में अपना वेद शास्त्र के ज्ञाता होने का कौशल नहीं दिखाते। वे हमारे साथ आत्मीय​ परिवार-जन की भाँति ही रहते हैं। वे अपना प्रत्येक क्षण अपने भक्तजनों के संग उनके उत्थान के लिए ही व्यतीत करते हैं ।
  4. लेकिन, जब हम साधना में लापरवाही करते हैं, गलती करने की सीमा को पार कर जाते हैं या कोई अन्य अपराध करते हैं, जिससे हमारी आध्यात्मिक प्रगति बाधित हो तो वो कोप करके अथवा दंड दे कर डराते भी हैं । उस समय उनके सामने कोई मुँह खोलने की हिम्मत नहीं करता।
  5. उनकी दिनचर्या अतीव नियमित तथा अनुशासित है, जो हमें जीवन को अनुशासन में बांधने की प्रेरणा देती है। वे कहते हैं कि स्वयं को कुछ नियमों में बांधे बिना जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं होती ।
  6. उनका भोजन सादा और पौष्टिक होता है, जो हमें भी उसी तरह का खाना खाने के लिए प्रेरित करता है। ऐसा खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और उसको बनाने में भी कम समय लगता है। वे कभी भी आश्रम के भोजन में मिर्च का प्रयोग नहीं करने देते।
  7. वे हमें हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए अत्यंत चिन्तित रहते हैं। यहाँ तक कि वे प्रातः 2.00 बजे ही उठ जाते हैं ताकि वे अपने नित्यकर्म से निवृत होकर सुबह 4.00 बजे से ही वे अपने भक्तों के साथ समय बिताएँ। मानव जीवन क्षणभंगुर है, इसलिए वे सदा हमें याद दिलाते हैं कि राधा-कृष्ण के प्रति निष्काम प्रेम को बढ़ाने के लिए हमें हर पल का उपयोग करना चाहिए । और, वे स्वयं भी हमें इसे प्रैक्टिकल तौर पर करके दिखाते हैं। 
  8. वे सगी माँ से भी अधिक उदार और करुणामय हैं कि वे किसी के शारीरिक कष्ट को सहन नहीं कर पाते । जब कोई भक्त अपराध करता तो उसे कुछ घंटों के लिए खड़े रहने या भोजन न करने का आदेश देकर दंडित करते थे । लेकिन 15-20 मिनट के बाद ही अपने कमरे के अंदर जाकर संदेश भेजते हैं कि, "उसे जाने या खाने के लिए कह दो"। वे इतने दयामय हैं !!
  9. वे अपनी बीमारी में भी लोकहितार्थ प्रवचन देते रहते हैं। वे हमारा तत्वज्ञान इतना प्रगाढ़​ करना चाहते हैं कि संसार के कुसंग का हम पर तनिक भी प्रभाव न पड़े और हम द्रुतगति से  इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति कर सकें।

इस प्रकार, वास्तविक माँ के सभी गुण उनमें स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं । उनके सभी प्यारे भक्तों की ओर से, मैं उनके चरण कमलों को उनके मातृ स्नेह के लिए बार-बार नमन करती हूँ।
सद्गुरु के पाद​पद्मों की धूली का एक कण​
​ब्रज बनचरी
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