SHRI KRIPALU KUNJ ASHRAM
  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog
Picture
Picture
Picture

हम कामनाएँ क्यों बनाते हैं ?

Read this article in English
प्रत्येक जीव की कामना आनंद प्राप्ति हैचींटी से लेकर ब्रह्मा तक प्रत्येक जीव की कामना केवल आनंद प्राप्ति है
गहराई से चिंतन करने पर यह समझ में आता है कि चींटी से लेकर ब्रह्मा तक प्रत्येक जीव की एकमात्र कामना आनंद प्राप्ति ही है । और यह अभ्यास द्वारा व्यवहार में लाई हुई बात नहीं है । बल्कि यह हर​ जीव का स्वभाव है । हम हर क्षण अपने प्रत्येक कर्म के द्वारा आनंद की खोज में हैं, कर्म चाहे परस्पर विरोधी ही क्यों न हों।

यह स्वाभाविक कामना प्रतिक्षण है लेकिन जीव वास्तिवक आनंद की परिभाषा नहीं जानता ।  तो जब आनंद की परिभाषा ही नहीं जानते तो इसमें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि असली आनंद प्राप्ति का मार्ग  भी नहीं जानते । इस महत्वपूर्ण तत्त्व ज्ञान के अभाव में मन सांसारिक विषयों की अनंत कामनाएँ बना लेता है ताकि किसी तरह उसे वह वास्तविक आनंद मिल जाये। कुछ कामनाएँ​ पूरी हो जाती हैं और कुछ नहीं होतीं, लेकिन अतृप्ति, अपूर्णता, अशांति ज्यों की त्यों बनी रहती है ।

​चलिए तीन सवालों पर गहन विचार करते हैं -
  • जीव क्या चाहता है?
  • क्यों चाहता है ? और 
  • ​उसको कैसे प्राप्त कर सकता है?

समस्त कामनाओं को पाँच श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, क्योंकि हमारे पास सिर्फ पाँच ज्ञानेंद्रियाँ हैं जिनसे हम आनंद की पूर्ति कर सकें, अर्थात् आँख, कान, नासिका, जिह्वा एवं त्वचा। कुछ लोगों का तर्क होता है की हमें तो पद, प्रतिष्ठा, दूसरों पर शासन, स्वतंत्रता, अनंत ज्ञान, अनंत आनंद चाहिये । तो समझ लेना चाहिये की इन सब का भोग भी पाँचों इंद्रियों द्वारा ही होता है जैसे अधिक ऐश्वर्य में रहेंगे, और लोग तारीफ़ करेंगे इत्यादि। 

लेकिन चाहे जितना भी सामान इन इन्द्रियों को दिया जाय, और अधिक प्राप्त करने की इच्छा कभी समाप्त ही नहीं होती। उदाहरण के लिये, आँखें सबसे अच्छी चीज़ देखना चाहती हैं जिससे उन्हें देखने का सुख मिले। जिह्वा स्वादिष्ट पकवान चखना चाहती है जिससे उसे स्वाद का सुख मिले। इसी तरह बाकी इन्द्रियाँ अपने-अपने​ विषयों की कामना बनाती हैं जिससे उन्हें वह अनंत अपरिमेय परमानंद मिल जाय, जो इतना बड़ा हो कि उसके आगे बाकी सब सुख न के बराबर (नगण्य​) लगें । क्योंकि इन्द्रियाँ प्राकृतिक हैं 

गो गोचर जहँ लगि मन जाई । सो सब माया जानेहु भाई ॥
“इन्द्रिय, मन एवं बुद्धि की पहुँच प्राकृतिक जगत् तक ही सीमित है”। वे सांसारिक विषयों के अतिरिक्त कुछ ग्रहण ही नहीं कर सकतीं ।

अब हम इस बात पर विचार करते हैं कि ये इंद्रियाँ इतना परिश्रम करती क्यों हैं ? 
इन इन्द्रियों का स्वामी कौन है ? किसको ये इन्द्रियाँ प्रसन्न करना चाहती हैं ?
पुन:, क्योंकि यह विषय मन-बुद्धि से परे है, इसलिए इसके स्पष्टीकरण के लिए हमें शास्त्रों का अवलंब लेना होगा। आपने कई बार सुना है कि भगवान् ही आनंद हैं और जीव आनंद का ही दिव्य एवं सनातन अंश है। यह अकाट्य सनातन नियम है कि प्रत्येक अंश अपने अंशी को स्वभावतः चाहता है।  ब्रह्म का अंश होने के कारण जीव परिपूर्ण होना चाहता है, इसलिए वह भगवान् को ही ढूंढता है। ये इन्द्रिय, मन और बुद्धि जीव के नित्य दास हैं, इसलिए वे जीव को प्रसन्न करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं। क्योंकि जीव दिव्य है इसलिए सांसारिक विषय उसको कभी प्रसन्न नहीं कर पाए और न ही भविष्य में कर पाएंगे ।  इसीलिए अनादिकाल से अनंत प्राकृतिक विषयों का अनुभव पाकर भी आनंद की खोज आज भी जारी है ।
Picture
वेदव्यास जी ने भागवत में कहा है –
यत्पृथिव्यां व्रीहि यवं हिरण्यं पशवस्त्रियः।
नालमेकस्य पर्याप्तं तस्मात्तृष्णां परित्यजेत्  ।।
भागवत​​
चूने के पानी को मथनाचूने के पानी को मथने से मक्खन नहीं निकलता है
"यदि विश्व के समस्त पदार्थ एक व्यक्ति को सहज में प्राप्त हो जायें तो भी वासनाओं का रोग उत्तरोत्तर बढ़ता ही जायगा”

​जीव दिव्यानंद प्राप्त करना चाहता है। उसे प्राकृतिक विषयों से आनंद का लवलेश भी नहीं मिलता । बुद्धि को यह समझना होगा कि जड़ संसार से आनंद पाने की योजना बनाना, चूने के पानी से मक्खन​ निकालने की योजना बनाने के समान है। अनुत्पादक श्रम करने में बहुमूल्य समय की बर्बादी  के अलावा और कुछ हाथ नहीं लगेगा  ।

बुद्धि प्राकृतिक विषयों की प्राप्ति तथा संचय की योजना इसलिये बनाती है क्योंकि उसने पुनः-पुनः चिंतन करके उन वस्तुओं में आसक्ति पैदा कर ली है। अतः अब उन्हीं विषयों में सुख मानती है । परंतु क्योंकि सुख मिलता नहीं है इसलिए वस्तु मिलने का घातक परिणाम यह है कि इच्छित वस्तु के प्राप्त होते ही तत्क्षण लोभ उत्पन्न हो जाता है, और दूसरी इच्छा पैदा हो जाती है। यदि इच्छा की पूर्ति न हुई तो क्रोध उत्पन्न होता है। इच्छा की पूर्ति या अपूर्ति दोनों परिस्थियों में बाकी मानसिक रोग जैसे मद, शत्रुता, घृणा आदि उत्पन्न होते हैं। जितनी जल्दी बुद्धि में यह बात बैठ जाय, उतनी ही जल्दी मायिक विषयों का संग्रह करने की आपाधापी समाप्त हो जाएगी।

गीता मैं श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा -
ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते |
​सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ 2.62॥

"जिस विषय का हम बार-बार चिन्तन करते हैं, उसी में हमारी आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से कामना पैदा होती हैं और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।” मन निरंतर प्राकृतिक विषयों का चिंतन करता रहता है, इसलिये उसी को पाने की इच्छा उत्पन्न होती है। 
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम: |
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || 2.63||

“क्रोध से मन विक्षिप्त हो जाता है जिससे बुद्धि भ्रमित हो जाती है तथापि बुद्धि का नाश हो जाता है। बुद्धि का नाश होते ही आत्मा का महान पतन हो जाता है।”
इन्द्रियों का स्वामी
इन्द्रियों की विषयों से अतृप्ति के कारण प्रत्येक इन्द्रिय की अनंत कामनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं । 
कुरङ्ग मातङ्ग पतङ्ग भृङ्ग. मीनाः हताः पंचभिरेव पञ्च। 
एकःप्रमादी स कथं न हन्यते यः सेवते पंचभिरेव पञ्च॥

“हिरण को संगीत से प्रेम है, हाथी स्पर्श से आसक्त है, पतंगा प्रकाश से आकर्षित होता है, भंवरा कमल की सुगन्धि में आसक्त है एवं मछली रसास्वादन के वश में है। यह सब उद्धरण मात्र एक ही इन्द्रिय के विषय में आसक्ति के कारण मृत्यु* को प्राप्त हुए । तनिक विचार कीजिए, मनुष्य का क्या हाल होता होगा जिसकी पाँचों इंद्रियाँ अपने-अपने सुख के लिए अनंत कामनाएँ बनाती हैं।”
*  ​शिकारी संगीत सुनाकर हिरण को आकर्षित कर लेता है, पतंगा आग में जलकर मर जाता है, भँवरा सुगंध से आकर्षित होकर कमल पर बैठ जाता है और हाथी आकर उस फूल को खा लेता है, मछली स्वाद के लालच में मछुआरे के फंदे में फंस कर मर जाती है, हाथी को फंसाने के लिए शिकारी हथिनी को गड्ढे में डाल देता है। स्पर्श के प्रलोभन में हाथी गड्ढे में गिर जाता है और शिकारी उसे मार देता है।
निष्कर्ष
​
किसी भी प्राकृत वस्तु के बार-बार चिंतन से उसमें आसक्ति पैदा हो जाती है। उस वस्तु को प्राप्त करने की कामना से मन की सुख-शांति समाप्त हो जाती है । वस्तु की प्राप्ति पर लोभ उत्पन्न होता है और उसी की अप्राप्ति में क्रोध उत्पन्न होता है । अतः कुल मिलाकर कामना बनने से सर्वथा दुःख ही दुःख मिलता है।
​
तो फिर आनंद प्राप्त करने का उपाय क्या है ? कामनाओं को ही समाप्त कर दें ? लेकिन यह तो स्वभाव के विरुध्द है ! तो क्या करना चाहिए?

​इसका उत्तर अगले अंक में बताया जायेगा।
abandon desire
क्या आनंद प्राप्ति का उपाय कामनाओं को समाप्त करना है?
​हम कामना न करें तो बात बन जाएगी ? हाँ । लेकिन कामना करनी पड़ेगी । क्यों? क्योंकि हम आनंद ब्रह्म के अंश हैं ।
- जगद्गुरुत्तम स्वामि श्री कृपालु जी महाराज​
​(वास्तविक भक्ति - प्रवचन श्रृंखला)
Jagadguruttam Swami Shri Kripalu Ji Maharaj
जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
यदि आपको यह लेख लाभप्रद लगा तो संभवतः निम्नलिखित लेख भी लाभप्रद लगेगें
जानिए आपको किस प्रकार के आनंद की खोज है
निराशादि का समाधान​
माया का जीव पर अधिकार कैसे और क्यों?

यह लेख​ पसंद आया​ !

उल्लिखित कतिपय अन्य प्रकाशन आस्वादन के लिये प्रस्तुत हैं
Picture

सिद्धान्त, लीलादि

इन त्योहारों पर प्रकाशित होता है जगद्गुरुत्तम दिवस, होली, गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा
Picture

सिद्धांत गर्भित लघु लेख​

प्रति माह आपके मेलबो‍क्स में भेजा जायेगा​
Picture

सिद्धांत को गहराई से समझने हेतु पढ़े

वेद​-शास्त्रों के शब्दों का सही अर्थ जानिये
हम आपकी प्रतिक्रिया जानने के इच्छुक हैं । कृप्या contact us द्वारा
  • अपनी प्रतिक्रिया हमें email करें
  • आने वाले संस्करणों में उत्तर पाने के लिये प्रश्न भेजें
  • या फिर केवल पत्राचार हेतु ही लिखें

Subscribe to our e-list

* indicates required
नये संस्करण की सूचना प्राप्त करने हेतु subscribe करें 
Shri Kripalu Kunj Ashram
Shri Kripalu Kunj Ashram
2710 Ashford Trail Dr., Houston TX 77082
+1 (713) 376-4635

Lend Your Support
Social Media Icons made by Pixel perfect from www.flaticon.com"
Picture

Worldwide Headquarters

Affiliated Centers of JKP

Resources

  • Home
  • About
    • Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj
    • Braj Banchary Devi
    • What We Teach >
      • तत्त्वज्ञान​ >
        • Our Mission
    • Our Locations
    • Humanitarian Projects >
      • JKP Education
      • JKP Hospitals
      • JKP India Charitable Events
  • Our Philosophy
    • Search for Happiness >
      • आनंद की खोज
    • Who is a True Guru >
      • गुरु कौन है​
    • What is Bhakti
    • Radha Krishna - The Divine Couple
    • Recorded Lectures >
      • Shri Maharaj ji's Video Lectures
      • Audio Lecture Downloads
      • Didi ji's Video Lectures
      • Didi ji's Video Kirtans
    • Spiritual Terms
  • Practice
    • Sadhana - Daily Devotion
    • Roopadhyan - Devotional Remembrance
    • Importance of Kirtan
    • Kirtan Downloads
    • Religious Festivals (When, What, Why)
  • Publications
    • Divya Sandesh
    • Divya Ras Bindu
  • Shop
  • Donate
  • Events
  • Contact
  • Blog