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त्रिशरीर

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मायाबद्ध​ सभी जीवों के पास त्रिशरीर या 3 शरीर हैं। ये तीनों शरीर माया द्वारा निर्मित हैं इसलिए भौतिक हैं।

स्थूल शरीर

पंच महाभूत से बना यह शरीर स्थूल शरीर कहलाता है । यह मायिक​ शरीर है जिसे हम देख सकते हैं।  इसमें कर्मेन्द्रियाँ होती हैं । मृत्यु के समय जीव को यह शरीर छोड़ना पड़ता है।

सूक्ष्म शरीर

सूक्ष्म शरीर को देखा नहीं जा सकता। इस शरीर में पंच प्राण, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। स्वप्न में आप अपने सभी कार्य इसी शरीर से करते हैं। मृत्यु के समय यह शरीर जीव के साथ चला जाता है ।

कारण शरीर

कारण शरीर को देखा नहीं जा सकता । यह व्यक्ति की इच्छाओं द्वारा निर्मित शरीर है। मृत्यु के समय यह भी जीव के साथ चला जाता है। महाप्रलय के दौरान, जीव गहरी नींद की अवस्था में कार्णार्णव (भगवान के महोदर​) में डूबा रहता है। उस समय जीव अन्य दो शरीरों से मुक्त हो जाता है लेकिन यह शरीर अभी भी जीव के साथ रहता है।

उपरोक्त तीन शरीर सदैव जीव के साथ जुड़े रहे हैं, लेकिन ईश्वर-प्राप्ति पर जीव माया से मुक्त हो जाएगा। अत: जीव इन सभी भौतिक शरीरों से भी मुक्त हो जाता है।

​ईश्वर-प्राप्ति के क्षण से जीव को एक दिव्य शरीर दिया जाता है जो हमेशा के लिए रहता है। शास्त्रों में इस शरीर के कई नाम हैं जैसे दिव्य देह, चिन्मय देह, गुणातीत देह या भगवद् देह।

शास्त्रों में कुछ अन्य प्रकार के शरीरों का भी उल्लेख है। ये त्रिशरीर में शामिल नहीं हैं।

आतिवाहिक शरीर

आतिवाहिक शरीर वायु से बना होता है। मृत्यु के बाद आतिवाहिक शरीर जीव को, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के साथ, यमलोक आदि तक ले जाता है। फिर कर्मों के अनुसार जीव को माँ के गर्भ​ में स्थापित करता है। इसे भोग शरीर भी कहा जाता है। आतिवाहिक शरीर से जीव लाखों मानव वर्षों तक नरक की असह्य यातनाएँ भोगने पर भी जीवित रहता है।

भाव देह

भक्ति करने से भक्ति संबंधी भाव देह  बनता तथा परिपक्व होता है । भगवान ने जीव को किसी भी भाव (दास्य, सख्य, वात्सल्य, माधुर्य) से उपासना करने की स्वतंत्रता दी है। भक्ति साधना करने में​ जीव जिस भाव को सबसे अधिक अपनाता है वही भाव भाव-देह में प्रमुख हो जाता है। 
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