प्रलय
सभी गतिविधियों को स्थगित होने को प्रलय कहा जाता है । संस्कृत शब्द प्रलय का अर्थ है विघटन या विनाश ।
प्रलय कई प्रकार की होती है ।
प्रलय कई प्रकार की होती है ।
वेद कहते हैं कि भगवान जीव का आलिंगन करते हैं । वह आलिंगन इतना आनंदप्रद होता है कि मन सहन नहीं कर पाता इसलिये मूर्छित हो जाता है । तब स्वप्नहीन गहरी नींद आती है । इसको सुषुप्ति अवस्था के नाम से जाना जाता है और उस समयावधि को नैत्यिक प्रलय के नाम से जाना जाता है।
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा क्दिए दिन को उत्तरायण तथा रात को दक्षिणायन कहते हैं । उत्तरायण के अंत में ब्रह्मा जी सो जाते हैं फिर दक्षिणायन अंत में जागते हैं। इसे दैनंदिन प्रलय कहा जाता है । इस समय ब्रह्माण्ड रहता है लेकिन ब्रह्माण्ड के अंदर सब कुछ नष्ट हो जाता है ।
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के जीवन के अंत में ब्रह्माण्ड नष्ट हो गया। ब्रह्माण्ड के सभी जीव परात्पर ब्रह्म में लीन हो जाते हैं । ब्रह्माण्ड के तीन-चौथाई हिस्से में जल भर जाता है और सृष्टिकर्ता ब्रह्मा परात्पर ब्रह्म के महोदर (कार्णार्णव) में लीन हो जाते हैं । इस प्रलय को प्राकृत प्रलय कहा जाता है ।
आत्यन्तिक का अर्थ है सदैव। जिस क्षण जीव मुक्ति प्राप्त करता है, जीव अनंत काल के लिये माया के चंगुल से मुक्त हो जाता है, इसे आत्यंतिक प्रलय कहा जाता है । ऐसे जीव को मृत्यु के बाद कोई शरीर-मन-बुद्धि नहीं मिलते । आत्मा परात्पर ब्रह्म में लीन रहती है ।
जब परात्पर ब्रह्म सुशुप्ति अवस्था में सोते हैं, तो उस समय समस्त मायिक जगत अपने कारण माया में लीन हो जाता है और सभी मायाबद्ध जीव निश्चेष्ट अवस्था में कार्णार्णव में लीन हो जाते हैं । इसे महाप्रलय कहा जाता है । असंख्य ब्रह्माण्ड हैं । प्रत्येक ब्रह्माण्ड के रचयिता एक ब्रह्मा हैं । तो असंख्य ब्रह्मा हुये । महाप्रलय माया तथा सभी ब्रह्मा परात्पर ब्रह्म में विलीन हो जाते हैं ।
खंड प्रलय या अंश प्रलय में सृष्टि के कुछ भाग प्राकृतिक आपदाओं जैसे बवंडर, ज्वालामुखी, भूकंप, सुनामी, तूफान आदि के कारण नष्ट हो जाते हैं । इसका कोई निश्चित समय नहीं है।
इन सभी प्रलय के दौरान केवल भौतिक संसार ही प्रभावित होता है। दिव्य जगत प्रलय के सभी रूपों से पूर्णतः अप्रभावित रहता है।
इन सभी प्रलय के दौरान केवल भौतिक संसार ही प्रभावित होता है। दिव्य जगत प्रलय के सभी रूपों से पूर्णतः अप्रभावित रहता है।
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