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Divya Ras Bindu

​​क्या वैदिक ग्रंथ मात्र कल्पना हैं?

यह अर्टिक्ल हिन्दी में पढ़ें
क्या वैदिक ग्रंथ मात्र कल्पना हैं?क्या वैदिक ग्रंथ मात्र कल्पना हैं?
प्रश्न

हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत सी असंभव घटनाओं का वर्णन किया गया है । उदाहरण के लिए

  • मनुष्य के शरीर पर​ पशु का शीश संयुक्त करना - जैसे दक्ष प्रजापति के
    शरीर पर बकरे का सिर जोड़ कर उन को पुनः जीवित किया गया था जबकी आज किसी दूसरे मनुष्य से रक्तदान​ लेना हो तो रक्तवर्ग​ तक​ एक होना चाहिए।
  • अघासुर 8 मील लंबा अजगर था - आज कोई भी अजगर आठ मील लंबा नहीं है।
  • पूतना 12 मील लंबी थी जिसके अनुसार उसका सर समताप मंडल में होना चाहिए जहां ऑक्सीजन की मात्रा न्यूनतम होती है और तापमान -60℃ होता है। जहाँ किसी मनुष्य का जीवित रहना असंभव है ।
  • लिंग बदल लेना - यक्ष और शिखंडी ने बिना शल्य चिकित्सा के अपने लिंग परस्पर​ बदल​ लिए ।
  • 8 माह के भ्रूण का स्थानांतरण करना - जेल में देवकी के गर्भ में 8 माह के बलराम को बिना शल्य चिकित्सा के रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया ।

आज आधुनिक युग में विज्ञान और चिकित्सा ने अभूतपूर्व प्रगति की है परंतु उपर्युक्त उदाहरणों में से एक​ भी आज सुनने में नहीं आता। अतः यह सब आज अतिशयोक्ति या किसी कवि की कल्पना के समान प्रतीत होता हैं । यह सभी घटनाएँ हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित हैं । हम न तो इन ग्रन्थों में व्याप्त ज्ञान के भंडार पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाना चाहते हैं, न ही संशय अपने मन में नहीं रखना चाहते हैं इसलिये प्रश्न कर रहे हैं ।​

इन ग्रंथों में लिखी बातें काल्पनिक कहानियाँ हैं जिन पर विश्वास करना चलचित्रों के काल्पनिक चरित्रों जैसे  हैरी पॉटर या स्टार वॉर्स के नायकों पर विश्वास करने के समान होगा । तो क्या वैदिक ग्रंथ मात्र कल्पना हैं?

महाराणा प्रताप महाराणा प्रताप 300 किलोग्राम वजन की तलवार, भाला तथा कवच पहनकर घोड़े पर सवार होकर​ युद्ध किया करते थे।
उत्तर -

हाँ यह सही है कि आज विज्ञान एवं तकनीकी के द्वारा उपर्युक्त कही गई बातें असंभव हैं । आज संसार में झूठ व आडम्बर का बोलबाला है, अतः बुद्धि का प्रयोग कर के सत्य को ही ग्रहण करने की आवश्यकता है । साथ ही यह भी जानना आवश्यक है कि जो परिस्थितियाँ हमारे प्रत्यक्ष व अनुमान प्रमाण के परे होती हैं वे हमें असम्भव प्रतीत होती हैं।

वैदिक शास्त्रों को मिथ्या मानने से पहले आइये संसार का दिग्दर्शन करें । उन्हीं शास्त्रों के अनुसार अभी कलियुग चल रहा है जिसमें, अन्य युगों की तुलना में, शारीरिक शक्ति न्यूनतम स्तर पर होती है । तब भी भारत में कुछ लड़कियाँ हैं जो नंगे हाथों से चलती हुई ट्रेन को रोकने की क्षमता रखती हैं । “बर्फीले मनुष्य” के नाम से मशहूर विम होफ एक साहसी व्यक्ति ने -20 डिग्री फॉरेनहाइट (-29℃) में आर्कटिक वृत्त की मैराथन दौड़ नंगे (उघाड़े) बदन​ पूरी की। अतः आज भी कुछ मानवों में अतिमानवीय गुण मिलते हैं परंतु वे मानव दुर्लभ हैं । आज आधुनिक युग में वेट लिफ़टर तकरीबन​ 260 किलोग्राम वजन उठा सकते हैं परंतु सोलहवीं शताब्दी में भारतीय योद्धा महाराणा प्रताप 7 फीट 5 इंच लंबे थे। वे 300 किलोग्राम वजन की तलवार, भाला तथा कवच पहनकर घोड़े पर सवार होकर​ युद्ध किया करते थे।

tamas siddhiकलियुग में कुछ लोग तामसी शक्तियां प्राप्त कर लेते हैं।
यह संसार परिवर्तनशील है । सतयुग में मनुष्यों में अधिकतम आध्यात्मिक तथा शारीरिक शक्तियां थी, जो कि समय के साथ-साथ धीरे-धीरे घटती जाती हैं और कलियुग के अंत में न्यूनतम स्तर पर होती हैं । अतः हमारे वेदों शास्त्रों में वर्णित पूर्व युगों में घटित वृतांत आज हमें अविश्वसनीय तथा असंभव लगते हैं ।

सात्विक​ शक्तियों की अपेक्षा कलियुग में कुछ लोग तामसी सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं। उन लोगों को तांत्रिक कहते हैं  और​ इन की प्रवृत्ति राक्षसी  होती है । अतः ये लोग भूत प्रेतों को प्रसन्न करके दूसरों को सताने हेतु इन राक्षसी शक्तियों का प्रयोग करते हैं। ये तामसी शक्तियों द्वारा दूसरों पर जादू टोना करके प्रताड़ित करते हैं, उनका चलना-फिरना दूभर कर देते हैं, उनको खून की उल्टियां होने लगती हैं, उनको भयंकर रूप से बीमार कर देते हैं या दुर्घटना का शिकार बना देते हैं । (पढ़ें तामसी कलाकारों को दूर से नमस्कार करो)

अर्जुन ने पाशुपतास्त्र प्राप्त कियाअर्जुन ने शिव जी को प्रसन्न करके पाशुपतास्त्र प्राप्त कर लिया ।
जबकि पूर्व युगों में, मुख्यतः सतयुग में, सत्व गुणों की प्रधानता थी अतः तब​ के लोग देवी देवताओं को प्रसन्न कर के दिव्य शक्तियों को व सात्विक सिद्धियों को प्राप्त कर लेते थे तथापि उनका मनमाना उपयोग करते थे। उदाहरणार्थ सतयुग में हिरण्यकश्यपु ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करके विष्णु जी को ही समाप्त करने की इच्छा कर ली। अर्जुन ने शिव जी को प्रसन्न करके पाशुपतास्त्र प्राप्त कर लिया ।

महान वैज्ञानिक जैसे जॉर्ज स्टीफनसन, न्यूटन, आइंस्टीन आदि ने अपने सिद्धांतों को प्रतिपादित किया। उनके बाद आने वाले वैज्ञानिकों ने उनके सिद्धांतों को सत्य मानकर उससे आगे नए प्रयोग किए और नए आविष्कार कर दिए। यदि वे पूर्व के वैज्ञानिकों के सिद्धांत को नींव न मानकर प्रारंभ से सिद्धांत की खोज करते तो नए आविष्कार कभी नहीं हो पाते ।

उसी प्रकार​, हमारे शास्त्र वेद प्रामाणिक हैं तथा इनका प्राकट्य​ भगवत प्राप्त संतो के द्वारा हुआ है । संत त्रिकालदर्शी थे अर्थात​ किसी के भी भूत वर्तमान तथा भविष्य को जान सकते थे । उनके आशीर्वाद तथा श्राप फलित​ होते थे, उनके पास ऐसी शक्ति थी कि वे जो भी निश्चय करते थे वह तुरंत हो जाता था । हम अपने वर्तमान आध्यात्मिक स्तर से उस स्तर की आध्यात्मिक शक्ति एवं ज्ञान की कल्पना तक करने में सम्भवतः असक्षम हैं । अतः उन​ ऋषि-मुनियों द्वारा प्रणीत ग्रंथों का अनुभवात्मक ज्ञान​ बिना साधना किये वर्तमान में हमें कैसे हो सकता है ? फिर भी अनंत लोगों ने इन शास्त्रों वेदों की बात मानकर उन्हीं के अनुसार साधना करके अपने परम चरम लक्ष्य को प्राप्त किया। (पढ़ें What if I naturally do not have faith?)

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यद्यपि आपको उपरोक्त घटनाएँ असंभव प्रतीत होती हैं तथापि आपने यह तो सुना ही होगा कि वेद सर्वशक्तिमान भगवान की अकाट्य वाणी हैं । वेदों में एक मात्रा तक की त्रुटि नहीं है । वे दिव्य अपरिमेय अपौरुषेय ग्रंथ हैं । ज्योतिष विज्ञान, अंक विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, गणित, व्याकरण यहां तक की राजनैतिक विज्ञान सभी का स्रोत​ हमारे भारतीय धर्म ग्रंथ ही हैं ।

यदि आप उस​ परमानंद की प्राप्ति करना चाहते हैं जिस पर कभी दुख का अधिकार न हो तो इन पौराणिक कथाओं पर अविश्वास को उठा कर ताक पर रख दीजिये और​ सर्वप्रथम शास्त्रों वेदों में वर्णित भक्ति साधना का अभ्यास कर के तो देखिये । शनैः-शनैः भक्ति से आपकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती जाएगी और​ आपको उन कथाओं की सत्यता का ज्ञान स्वतः होता जाएगा । अंततः एक दिन जब भगवत प्राप्ति होगी तो कर्तुं अकर्तुं अन्यथाकर्तुं समर्थ भगवान अपनी सारी शक्तियां आपको दे देंगे । ज​ब​ वे सब कार्य आपके भी करतलगत हो जायेंगे तब आपके संशय भी स्वतः समाप्त हो जायेंगे ।


अनेकानेक शास्त्रों, वेदों, पुराणों एवं अन्यान्य धर्मग्रन्थों को पढ़ना भी कुसंग है । चौंको नहीं, बात समझो! कारण यह है कि वे महापुरुष के प्रणीत ग्रन्थ हैं अतएव उन्हें हम भगवत्प्रणीत ग्रंथ भी कह सकते हैं । उनका वास्तविक तत्व अनुभवी महापुरुष ही जानते हैं । तुम उन्हें पढ़कर अनन्तानन्त प्रश्न पैदा कर बैठोगे, जिनका कि समाधान अनुभव के बिना सम्भव नहीं । यदि किसी मात्रा में सम्भव भी है तो वह एकमात्र महापुरुष के द्वारा ही ।
- जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
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