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Divya Ras Bindu

तामस कलाकारों को दूर से नमस्कार कीजिये

Read this article in English
आत्माओं का आवाहनतंत्र-मंत्र विद्या से मृत्युलोक से विगत आत्माओं का आवाहन करते हैं
कुछ लोग आत्माओं से सम्पर्क स्थापित करना चाहते हैं । संभवतः इस कृत्य के अनेक कारण हो सकते हैं । उदाहरणार्थ​ प्रियजनों के मृत्योपरांत आसक्तिवश, अपना भविष्य जानने हेतु अथवा किसी अप्रिय​ परिस्थिति से उबरने हेतु मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु, एसे भोले भाले लोग तामस कलाओं के व्यवसाय में रत​ जैसे ओझा, तांत्रिक​ अथवा पाखंडियों के चक्कर में पड़ जाते हैं । ये पाखंडी तंत्र मंत्र विद्या से मृत्युलोक से विगत आत्माओं का आवाहन करते हैं । ये आत्माओं के दलाल​ भगवान तक का आवाहन करने का दावा करते हैं ।

श्री महाराज जी की युवावस्था का एक संस्मरण बताना चाहूँगी जब वे प्रतापगढ़ में श्री महाबनी जी के घर में निवास करते थे । महाबनी जी के पड़ोस में दो युवा कन्यायें, आत्माओं का आवाहन लकड़ी के हृदयनुमा यंत्र पर​ करती थीं । वहाँ उपस्थित जन आत्माओं से प्रश्न करते थे । इस यंत्र में एक कागज़ पर पेंसिल लगी होती है जिससे आत्मा प्रश्नों के उत्तर लिख सकती है । लोग इन कन्यायों के पास जाकर अपने परलोक सिधारे हुए पारिवारिक सदस्यों और मित्रों से वार्तालाप करते थे।

आत्माओं का आवाहनआत्माओं का आवाहन करती हुई कन्या
कभी-कभी लोगों के अनुरोध पर वे "हनुमान जी" या "दुर्गा माता" का भी आवाहन करती थीं तदोपरांत​ उपस्थित जन अपने स्वास्थ्य​, धन, परिवार आदि समस्याओं के हल पूछा करते थे।

ये कन्यायें श्री महाबनी जी की पुत्री उषा जी की सखियाँ थीं । एक दिन उषा जी ने श्री महाराज जी से बड़े उत्साह पूर्वक कहा कि उनकी सखियाँ किसी भी परलोक सिधारी हुई आत्मा से बात करवाने की कला जानती है। महाराज जी ने इस बात को हंसी में उड़ा दिया ।


अपनी सहेलियों को सही सिद्ध करने के उद्देश्य से उषा जी ने उनको श्री महाराज जी के सामने प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित​ किया । उस दिन उन्होंने हनुमान जी का आवाहन किया । श्री महाराज जी पहले कुछ देर यह क्रियाकलाप​ देखते रहे ।

तत्पश्चात​ श्री महाराज जी ने “हनुमान जी” के छल को उजागर करने हेतु “हनुमान जी” से संस्कृत व्याकरण से संबंधित एक साधारण सा प्रश्न पूछा । आत्मा ने उत्तर देने के स्थान पर कहा कि “मैं उत्तर नहीं दूँगा”। श्री महाराज जी जोर से हंसे और उन लड़कियों से पूछा कि “हनुमान जी” उत्तर क्यों नहीं देंगे? “हनुमान जी” ने उत्तर दिया कि “मैं पलंग पर बैठे व्यक्ति से डर​ रहा हूँ” । श्री महाराज जी ने कहा "क्यों डर​ रहे हो, क्या मैं हउआ हूँ"?

इसके उत्तर में “हनुमान जी” उस यंत्र को छोड़कर चले गए !

हनुमान जी रावण की सभा मेंहनुमान जी लंका में महान योद्धाओं और भयंकर राक्षसों से सुसज्जित रावण की सभा के मध्य में अकेले ही निडरतापूर्वक​ चले गए थे
यह आख्यान पढ़ने पर​ बुद्धिजीवि मनुष्यों को निम्नलिखित बातों पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिये
  • भगवत प्राप्ति पर​ जीव कोटि की आत्माएं भी भगवत् ज्ञान युक्त हो जाती हैं । हनुमानजी तो भगवान श्रीराम के पार्षद, सनातन​ अंतरंग सेवक तथा भगवान के बराबर ज्ञान युक्त हैं । तो फिर उनको संस्कृत व्याकरण के छोटे से प्रश्न का उत्तर देने में क्या कठिनाई थी ?

  • इसके अलावा हनुमान जी लंका में महान योद्धाओं और भयंकर राक्षसों से सुसज्जित रावण की सभा के मध्य में अकेले ही निडरतापूर्वक​ चले गए थे तो फिर उन्हें श्री महाराज जी से डर क्यों लगा ?

  • हनुमान जी अपना सारा समय भगवान​ श्री राम की सेवा में व्यतीत करते हैं । तो वे हनुमानजी, अपने प्राणों से अधिक प्रिय, भगवान श्रीराम की सेवा छोड़ कर​ लोगों के मायिक धन दौलत स्वास्थ्य से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने हेतु आयेंगे क्या ?

एक बार का आख्यान है शनि देव हनुमान जी के पास गए और बोले, "अब आपके ऊपर मेरे कुप्रभाव का समय आ गया है।" हनुमान जी ने कहा, " मैं अभी अपने इष्ट देव की सेवा में व्यस्त हूँ, कृपया आप बाद में आएँ।" परन्तु शनि देव अटल थे अतः हनुमानजी ने उनको टालने के लिये अपने सिर पर स्थित होने की अनुमति दे दी ।

उस समय समुद्र पार लंका जाने हेतु रामसेतु का निर्माण कार्य पूरे जोरों पर था । हनुमानजी पुल बनाने हेतु अपने सिर पर बड़े बड़े पत्थर और पेड़ ढ़ो कर समुद्र में फेंक​ रहे थे । शनिदेव हनुमानजी के सिर पर विराजमान थे अतः वे पत्थरों के नीचे कुचल गए।

शनिदेव ने हनुमान जी से क्षमा याचना की तथा वचन दिया कि मैं आपके भक्तों पर कभी भी अपनी कुदृष्टि नहीं डालूँगा।

अतः तुलसीदास जी ने कहा है
को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो ।
शनिदेव जी - हनुमान जी
शनिदेव जी ने हनुमान जी से क्षमा याचना की तथा वचन दिया कि मैं आपके भक्तों पर कभी भी अपनी कुदृष्टि नहीं डालूँगा।
“हे कपीश​ ! इस संसार में कौन नहीं जानता है कि तुम सभी समस्याओं का निवार्ण करने में सक्षम हो।”

हनुमान जी को संकट मोचन कहा जाता है । आज भी धर्मकर्म के कार्यों में सर्व प्रथम गणेश जी का और उसके बाद, पूजादि को निर्विघ्न सम्पन्न करने के लिये, हनुमान जी का आवाहन किया जाता है। मनुष्य शनिदेव के प्रभाव से बचने के लिये हनुमान जी से रक्षा करने की प्रर्थना करते हैं । हनुमान जी शनिदेव की अवहेलना कर अपने इष्ट देव की नित्यसेवा में रत रहते हैं । अतः विचारणीय है कि हनुमान जी अपने इष्ट देव की नित्यसेवा छोड़कर मायिक मनुष्यों के मायिक प्रश्नों के उत्तर देने के लिए आएँगे ?

तो वह कौन है जो अपने आप को हनुमान जी बता कर प्रश्नों का उत्तर देने के लिये प्रस्तुत हुआ है?

श्री महाराज जी ने बाद में "आत्माओं से वार्तालाप" के ऊपर प्रकाश डाला । सिद्धांततः जीवात्मा अपने से कम आध्यात्मिक शक्ति वाली आत्मा को बुला सकता है। अपने से अधिक आध्यात्मिक शक्ति वाली आत्मा को आने के लिये कोई विवश नहीं कर सकता । यदि ऐसा संभव होता तो सभी भगवान को न बुला लेते ?

साधक सतत प्रयत्न द्वारा भगवान से प्रेम बढ़ाने का अभ्यास करता है और जिस क्षण​ भगवान से प्रगाढ़ प्रेम हो जाता है, भगवान अपनी सभी दिव्य शक्तियाँ प्रदान कर​ उस जीवत्मा को अपने बराबर बना देता है ।

जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ॥
 भक्त सूरदास  भगवान श्री कृष्ण भक्त सूरदास के भजन सुनते हुये भगवान श्री कृष्ण
“जो तुमको जान लेता है वह तुम्हारे जैसा हो जाता है।”

भगवत प्राप्ति के उपरांत​ भगवान अपने भक्तों के प्रेम के आधीन हो जाते हैं अतः नग्ण्य जीव के आमंत्रित करने पर​ भगवान को अपने वचनानुसार​ आना पड़ता है।

वातावरण में अनेक आत्माएँ बिना स्थूल शरीर के विचरण करती हैं जो की आत्मा के लिए बहुत ही निकृष्ट तथा दयनीय अवस्था होती है । अतः जब उनको कोई बुलाता है तो वे सहर्ष आकर यंत्र को चैतन्यता प्रदान करती हैं । जब उनसे प्रश्न पूछे जाते हैं तो वे अपने ज्ञान तथा अनुभव के आधार पर उत्तर देतीं हैं। जिस प्रकार मनुष्य सर्वज्ञ नहीं है उसी प्रकार यह विचरण करती हुई आत्माएँ भी सर्वज्ञ नहीं हैं । तथापि सम्मान पाने की इच्छा से प्रेरित होकर भगवान होने का ढ़ोंग रचाती हैं । मायिक पदार्थों की प्राप्ति के लोभ में स्वार्थी मनुष्य, इस ढ़ोंग से अन्भिज्ञ, इन तामसी कलाकारों का भला करते हैं । साथ ही ये कुआत्मायें क्षणिक पूजा व सम्मान पाकर प्रसन्न हो जातीं है । यदा कदा दुष्टात्माएँ भी आजाती हैं जो जजमान को सताती हैं । 

इन तामसी कलाकारों के तंत्र-मंत्र को दूर से नमस्कार कर उस परात्पर ब्रह्म की उपासना चार भावों से कीजिये । और यदि ये लोग रुष्ट हो भी जायें तो उसकी चिंता भी न करें । जब सर्वशक्तिमान ब्रह्म आपका संरक्षक है तो ओझा, तांत्रिक​ और अन्य तामसी विद्या वाले आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं ।



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सारे देवी-देवताओं को राधा रानी में अध्यस्त करके राधा रानी की उपासना करो । फिर चाहें कोई हो तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
- Jagadguruttam Shri Kripalu Maharaj

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