प्रश्न
मैं प्रतिदिन 45 मिनट से एक घंटा तक साधना में व्यतीत करता हूँ, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं पर्याप्त प्रगति कर रहा हूँ। मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर
साधना का अर्थ है "अभ्यास"। दिव्य प्रेम के पिपासु जीव को अपने मन को हरि-गुरु पर केंद्रित करने का अभ्यास करने की आवश्यकता है। साधना की गति बढ़ाने के लिए यह करना होगा -
जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं और साधना करने के लिए व्यावहारिक दिशानिर्देश दिए हैं।
1. अपनी दैनिक साधना एक ही समय और एक ही स्थान पर करने का दृढ़ निर्णय लें। सतर्क होकर बैठें । आलस्य में टएका लगा कर न बैठें ।
2. अपने मन्दिर में केवल श्री राधा-कृष्ण और अपने गुरु की तस्वीरें रखें । ध्यान दें मन्दिर में किसी अन्य देवई-देवता । भगवान्। संबन्धियों का चित्र नहीं होना चाहिए । कई चित्र आपके चंचल मन को और चंचल बना देंगे ।
3. अपनी साधना शुरू करने से पहले उस स्थान को इस भावना से साफ करें कि आप अपने गुरु के बैठने के स्थान को साफ कर रहे हैं।
4. अपनी आँखें बंद करके बैठें और अपने गुरु के रूप का ध्यान करें, उनसे अपने मन को नियंत्रित करने का अनुरोध करें, ताकि आप अपनी साधना पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
5. अपने गुरु की आरती करके साधना आरम्भ करें । जैसे-जैसे आप आरती की थाली को दक्षिणावर्त घुमाते हैं महसूस करें कि दीये से निकलने वाला प्रकाश उनके चेहरे पर, माथे पर पड़ रहा है और उनके चरण कमलों तक जा रही है ।
6. आरती करने के बाद उनके चरण कमलों में पुष्प अर्पित करें। आप अपने मन में यह भावना विकसित कर सकते हैं कि आप उनके चरण कमलों पर फूल चढ़ा रहे हैं और चंदन का लेप लगा रहे हैं।
7. अब प्रेम रस मदिरा के किसी पद या कीर्तन का वाणी से गान करके अपनी साधना शुरू करें। यदि आप एक घंटे तक एक ही कीर्तन करें तो बेहतर रहेगा। ऐसा करने से आपके हृदय में प्रेम की चिंगारी पैदा हो सकती है।
मैं प्रतिदिन 45 मिनट से एक घंटा तक साधना में व्यतीत करता हूँ, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं पर्याप्त प्रगति कर रहा हूँ। मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर
साधना का अर्थ है "अभ्यास"। दिव्य प्रेम के पिपासु जीव को अपने मन को हरि-गुरु पर केंद्रित करने का अभ्यास करने की आवश्यकता है। साधना की गति बढ़ाने के लिए यह करना होगा -
- दृढ़ निश्चय करो
- रूपध्यान करो अर्थात हरि-गुरु के दिव्य रूप पर धयान केंद्रिंत करो
जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं और साधना करने के लिए व्यावहारिक दिशानिर्देश दिए हैं।
1. अपनी दैनिक साधना एक ही समय और एक ही स्थान पर करने का दृढ़ निर्णय लें। सतर्क होकर बैठें । आलस्य में टएका लगा कर न बैठें ।
2. अपने मन्दिर में केवल श्री राधा-कृष्ण और अपने गुरु की तस्वीरें रखें । ध्यान दें मन्दिर में किसी अन्य देवई-देवता । भगवान्। संबन्धियों का चित्र नहीं होना चाहिए । कई चित्र आपके चंचल मन को और चंचल बना देंगे ।
3. अपनी साधना शुरू करने से पहले उस स्थान को इस भावना से साफ करें कि आप अपने गुरु के बैठने के स्थान को साफ कर रहे हैं।
4. अपनी आँखें बंद करके बैठें और अपने गुरु के रूप का ध्यान करें, उनसे अपने मन को नियंत्रित करने का अनुरोध करें, ताकि आप अपनी साधना पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
5. अपने गुरु की आरती करके साधना आरम्भ करें । जैसे-जैसे आप आरती की थाली को दक्षिणावर्त घुमाते हैं महसूस करें कि दीये से निकलने वाला प्रकाश उनके चेहरे पर, माथे पर पड़ रहा है और उनके चरण कमलों तक जा रही है ।
6. आरती करने के बाद उनके चरण कमलों में पुष्प अर्पित करें। आप अपने मन में यह भावना विकसित कर सकते हैं कि आप उनके चरण कमलों पर फूल चढ़ा रहे हैं और चंदन का लेप लगा रहे हैं।
7. अब प्रेम रस मदिरा के किसी पद या कीर्तन का वाणी से गान करके अपनी साधना शुरू करें। यदि आप एक घंटे तक एक ही कीर्तन करें तो बेहतर रहेगा। ऐसा करने से आपके हृदय में प्रेम की चिंगारी पैदा हो सकती है।
8. सुनिश्चित करें कि आपका मन श्री राधा कृष्ण के दिव्य स्वरूप पर केंद्रित है और आप अपने साथ अपने गुरु की उपस्थिति महसूस करते हैं।
9. यदि आपका मन अन्य सांसारी वस्तुओं की ओर भागता है, तो वहीं श्री महाराज जी के दर्शन करें और ऐसा महसूस करें जैसे वे आपके मन को चंचलता करने के लिए आपको डांट रहे हैं। वह आपकी मदद करेगा ।
10. हर किसी को अपने मन से संघर्ष करना पड़ता है। मन अत्यंत चंचल है । चिंता न करें, आपके मन को भगवान की ओर मोड़ने में मदद करने के लिए श्री महाराज जी हमेशा आपके साथ हैं। दृढ़ विश्वास रखें कि वह आपका साथ सदा देंगे।
11. प्रतिदिन आने वाली समस्याओं से निराश न हों । समस्याएँ भी छिपी हुई दैवीय कृपा हैं। अनुग्रह को सहर्ष स्वीकार करो ।
12. काम पर जब भी आपके पास कुछ मिनट हों, महसूस करें कि श्री महाराज जी आपके साथ हैं, वे प्रत्येक विचार और कार्य को देख रहे हैं। महसूस करें, "मुझे कुछ भी गलत नहीं करना चाहिए, अन्यथा वे प्रसन्न नहीं होंगे"।
इस प्रक्रिया के लगातार अभ्यास से आपकी भक्ति की गति बढ़ जाएगी।
9. यदि आपका मन अन्य सांसारी वस्तुओं की ओर भागता है, तो वहीं श्री महाराज जी के दर्शन करें और ऐसा महसूस करें जैसे वे आपके मन को चंचलता करने के लिए आपको डांट रहे हैं। वह आपकी मदद करेगा ।
10. हर किसी को अपने मन से संघर्ष करना पड़ता है। मन अत्यंत चंचल है । चिंता न करें, आपके मन को भगवान की ओर मोड़ने में मदद करने के लिए श्री महाराज जी हमेशा आपके साथ हैं। दृढ़ विश्वास रखें कि वह आपका साथ सदा देंगे।
11. प्रतिदिन आने वाली समस्याओं से निराश न हों । समस्याएँ भी छिपी हुई दैवीय कृपा हैं। अनुग्रह को सहर्ष स्वीकार करो ।
12. काम पर जब भी आपके पास कुछ मिनट हों, महसूस करें कि श्री महाराज जी आपके साथ हैं, वे प्रत्येक विचार और कार्य को देख रहे हैं। महसूस करें, "मुझे कुछ भी गलत नहीं करना चाहिए, अन्यथा वे प्रसन्न नहीं होंगे"।
इस प्रक्रिया के लगातार अभ्यास से आपकी भक्ति की गति बढ़ जाएगी।