भागवत महापुराण अजामिल का आख्यान है। इस कथा के कुछ भागों का उपयोग करते हुए, कई धार्मिक वक्ता यह सिद्ध करते हैं कि "जिह्वा से भगवन्नाम के जप से भगवद्प्राप्ति संभव है" तथापि उसी का प्रचार-प्रसार करते हैं । अर्थात भगवन्नाम में भगवद्द्भाव की आवश्यकता नहीं है"।
आइए हम इसकी गहराई से समीक्षा करें और इस आख्यान का पुनः मूल्यांकन करें।
अजामिल को शास्त्रों के गहन ज्ञान था और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण भी था । वह गृहस्थी था और अपने माता-पिता, पत्नी और बच्चों के साथ रहता था । एक दिन उसने एक वेश्या को किसी अन्य व्यक्ति के साथ संभोग करते देखा । यह दृष्य देखकर वह उस वेश्या में आसक्त हो गया ।
अपनी सारी संपत्ति लुटा दी, घर गृहस्थी बर्बाद कर दी, तथा आपने परिवार को त्याग कर उस वेश्या के घर जाकर रहने लगा । वह कई वर्षों तक उसके साथ रहा और उसके साथ अजामिल के 11 बच्चे भी हो गए । अजामिल ने सबसे छोटे बेटे का नाम, भगवान के प्रति दुर्भावना से, नारायण रखा । उसे नारायण से बहुत लगाव था। एक दिन नारायण अपने सखाओं के साथ खेल रहा था, खेलते खेलते वह कहीं दूर चला गया और अजामिल की आंखों से ओझल हो गया।
आइए हम इसकी गहराई से समीक्षा करें और इस आख्यान का पुनः मूल्यांकन करें।
अजामिल को शास्त्रों के गहन ज्ञान था और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण भी था । वह गृहस्थी था और अपने माता-पिता, पत्नी और बच्चों के साथ रहता था । एक दिन उसने एक वेश्या को किसी अन्य व्यक्ति के साथ संभोग करते देखा । यह दृष्य देखकर वह उस वेश्या में आसक्त हो गया ।
अपनी सारी संपत्ति लुटा दी, घर गृहस्थी बर्बाद कर दी, तथा आपने परिवार को त्याग कर उस वेश्या के घर जाकर रहने लगा । वह कई वर्षों तक उसके साथ रहा और उसके साथ अजामिल के 11 बच्चे भी हो गए । अजामिल ने सबसे छोटे बेटे का नाम, भगवान के प्रति दुर्भावना से, नारायण रखा । उसे नारायण से बहुत लगाव था। एक दिन नारायण अपने सखाओं के साथ खेल रहा था, खेलते खेलते वह कहीं दूर चला गया और अजामिल की आंखों से ओझल हो गया।
खोज में नारायण नारायण चलाता हुआ वाह इधर उधर दौड़ रहा था । इसी समय उसे एक बहुत ही प्रभावशाली अनुभव हुआ । उस अर्थ स्वप्नावस्था में देखा कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। और भगवान विष्णु के दूत, जिन्हें विष्णुदूत कहा जाता है, उसको लेने आए हैं वह मेरा और साथ ही यमराज के दूत, जिनको यमदूत कहते हैं, वह भी उसको ले जाने के लिए आए हैं । यमदूतों का तर्क था कि अजामिल ने वेश्या के साथ पापमय जीवन व्यतीत किया है अतः उसको नरक में दंड भोगना होगा । यमदूतों ने त्रिगुणात्मिका माया के फलों का नियम बताया ।
दूसरी ओर विष्णुदूत ने एक अलग तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले सर्वोच्च भगवान नारायण को बुलाया था, इसलिए उन्हें उनके साथ बैकुंठ जाना चाहिए। यमदूत और विष्णुदूत के बीच हुए संवाद को सुनकर अजामिल को पुराना शास्त्र ज्ञान पुनः याद आ गया । उसे पता लगा कि उसके वर्तमान के आचरण का क्या परिणाम आगे उसे भोगना होगा । जब वह होश में आया तो वह ज्ञान उसके मस्तिष्क में रहा ।
उन्होंने याद किया कि कैसे भगवान की भक्ति का अभ्यास व्यक्ति को लौकिक बंधन से मुक्त करता है, जबकि वह, एक महान ज्ञानी, भौतिक सुखों की खोज में इतने निम्न स्तर तक गिर गया था।
दूसरी ओर विष्णुदूत ने एक अलग तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले सर्वोच्च भगवान नारायण को बुलाया था, इसलिए उन्हें उनके साथ बैकुंठ जाना चाहिए। यमदूत और विष्णुदूत के बीच हुए संवाद को सुनकर अजामिल को पुराना शास्त्र ज्ञान पुनः याद आ गया । उसे पता लगा कि उसके वर्तमान के आचरण का क्या परिणाम आगे उसे भोगना होगा । जब वह होश में आया तो वह ज्ञान उसके मस्तिष्क में रहा ।
उन्होंने याद किया कि कैसे भगवान की भक्ति का अभ्यास व्यक्ति को लौकिक बंधन से मुक्त करता है, जबकि वह, एक महान ज्ञानी, भौतिक सुखों की खोज में इतने निम्न स्तर तक गिर गया था।
अजामिलोऽप्पथाकर्ण्य दूतानां यम कृष्णयोः ।
धर्मं भागवतां शुद्धं त्रैविद्यं च गुणाश्रयम् ॥ भा. ६.२.२४
धर्मं भागवतां शुद्धं त्रैविद्यं च गुणाश्रयम् ॥ भा. ६.२.२४
पश्चाताप की ज्वाला में उसने उस स्त्री तथा उन बच्चों को छोड़कर पुनः भगवत भक्ति का विचार किया और हरिद्वार में जाकर 1 भागवत के ये श्लोक स्पष्ट करते हैं कि अजामिल दिव्य निवास के लिए ठीक बाद में नहीं गए थे अपने पुत्र नारायण के नाम का उच्चारण करते हुए। बल्कि श्री कृष्ण की अत्यधिक कृपा से,
न मे भक्तः प्रणश्यति
भगवान ने उसे जगाने का सपना दिया। अजामिल ने संसार को त्याग दिया, हरद्वार गए (भाग 6/2/39)। वहाँ वर्ष तक, गंगा नदी के पानी को पीकर जीवित रह, तथा एकमात्र भक्ति ही की ।
फिर माया से मुक्त होने के बाद, उन्होंने एक दिव्य शरीर प्राप्त किया और पुष्पक विमान में बैकुंठ के लिए प्रस्थान किया। इस बार यमदूत नहीं आए।
इतिजातसुनिर्वेदः क्षणसङ्गेन साधुषु ।
गङ्गाद्वारमुपेयाय मुक्तसर्वानुबन्धनः । भा. ६.२.३९ हित्वा कलेवरं तीर्थे गङ्गायां दर्शनादनु । सद्यः स्वरूपं जगृहे भगवत्पार्श्वर्तिनाम् ॥ भा.६.२.४३ साकं विहायसा विप्रो महापुरुष किङ्करैः । हैमं विमानमारुमारुह्य ययौ यात्रा श्रियः पतिः ॥ भा.६.२.४४ |
इन सभी श्लोकों से स्पष्ट है कि ईश्वर के प्रति मन से भक्ति करना ही ईश्वर को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है। मन कर्ता है। अगर मन पूरी तरह से ईश्वर के विचारों में लीन नहीं है, तो वह किसी न किसी के बारे में सोचेगा। चूँकि ईश्वर के अलावा सब कुछ भौतिक है, भौतिक वस्तुओं के बारे में सोचना आपको ईश्वर से और दूर ले जाएगा। इसलिए, इस भ्रम में न रहें कि केवल भगवान के नाम का उच्चारण करने से हमें मुक्ति मिल जाएगी।
भक्ति करते समय मन को लगाना पड़ता है।
भक्ति करते समय मन को लगाना पड़ता है।