Siddhi
सिद्धि संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ पूर्णता है । ये बड़ी-बड़ी शक्तियों होती हैं । इन पर स्वामित्व प्रप्त कर लेने को सिद्धि प्राप्त करना कहते हैं । सिद्धियाँ कई प्रकार की होती हैं । मनुष्य द्वारा प्राप्य सभी सिद्धियों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है -
माया के तामस गुण से अत्यधिक प्रभावित लोगों में राक्षसी प्रवृत्ति होती है और वे तामस सिद्धि का अभ्यास करते हैं।आधी रातके बाद श्मशान में ध्यान करने से प्राप्त होते हैं। इस सिद्धि का प्रयोग दूसरों को कष्ट देकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया जाता है। इन सिद्धियों का उपयोग करके दूसरों को दुःख पहुँचाने वालों को मृत्यु के बाद पापों का प्रायश्चित करने के लिए नरक भेजा जाता है ।
शास्त्रों का उद्घोष है कि राजस सिद्धि मुक्ति का विज्ञान है। माँ काली की कृपा से तंत्र विद्या का परिणाम प्राप्त होना राजस सिद्धि है ।
तंत्र संघिता में तंत्र शब्द का अर्थ बताया है । यह शब्द तनोति और त्रायते की संधि से बना है । इसका अर्थ है आध्यात्मिक ज्ञान के विकास तथा मुक्ति का विज्ञान । चूँकि यह राजस गुण से प्रभावित है, वास्तव में यह बुरी नहीं है। कुछ स्वार्थी पाप-बुद्धि-युक्त जीव इन शक्तियों को प्राप्त कर लेते हैं । फिर इन शक्तियों को आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयोग न करके वासनाओं की पूर्ति हेतु सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति करके इनका दुरुपयोग करते हैं ।
फिर भी राजसी सिद्धियाँ तामसी सिद्धियों से उच्च श्रेणी की हैं ।
तंत्र संघिता में तंत्र शब्द का अर्थ बताया है । यह शब्द तनोति और त्रायते की संधि से बना है । इसका अर्थ है आध्यात्मिक ज्ञान के विकास तथा मुक्ति का विज्ञान । चूँकि यह राजस गुण से प्रभावित है, वास्तव में यह बुरी नहीं है। कुछ स्वार्थी पाप-बुद्धि-युक्त जीव इन शक्तियों को प्राप्त कर लेते हैं । फिर इन शक्तियों को आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयोग न करके वासनाओं की पूर्ति हेतु सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति करके इनका दुरुपयोग करते हैं ।
फिर भी राजसी सिद्धियाँ तामसी सिद्धियों से उच्च श्रेणी की हैं ।
योग मार्ग की साधना करने से सात्विक सिद्धि स्वर्ग के देवताओं द्वारा प्रदान की जाती है। सात्विक सिद्धियाँ आठ प्रकार की होती हैं
1. अणिमा सिद्धि अपने स्वामी को सबसे छोटे कण से भी छोटा बनने में सक्षम बनाती है ।
2. लघिमा सिद्धि अपने स्वामी को रुई से भी हल्का बनाने में सक्षम बनाती है ।
3. महिमा सिद्धि अपने स्वामी को पर्वत से भी भारी बनने में सक्षम बनाती है ।
4. प्राप्ति सिद्धि अपने स्वामी को पूरे ब्रह्मांड में कहीं से भी कुछ भी प्राप्त करने में सक्षम बनाती है ।
5. ईशित्व सिद्धि भौतिक संसार के भीतर असंभव को संभव बनाने की क्षमता प्रदान करती है। इस शक्ति का स्वामी नये स्वर्ग की रचना भी कर सकता है ।
6. वशित्व सिद्धि अपने स्वामी को संसार में किसी भी चल तथा अचल वस्तु को नियंत्रित करने में सक्षम बनाती है।
7. प्राकाम्य सिद्धि इसके स्वामी को उनकी सभी भौतिक इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम बनाती है ।
8. कामवशायिता सिद्धि प्राप्त जीव अपने संकल्पों को तुरंत पूरा कर लेता है ।
इन सब सिद्धियों के चमत्कार दिव्य लगते हैं , लेकिन ये चमत्कार करने वाले तथा दर्शक दोनों के लिए हानिकारक हैं ।
चमत्कार करने वालों के लिए निम्नलिखित खतरे हैं -
1. अंतःकरण में इन शक्तियों का प्राकट्य सिद्ध योगियों के मनों को भी वचलित कर देता है ।
2. इन शक्तियों की सिद्धि अहंकार को बढ़ाती है, जिससे अंततः साधक का आध्यात्मिक पतन हो जाता है। भगवान् को दीनता पसंद है अहंकार नहीं ।
3. सिद्धि का उपयोग करने से सिद्धि घटती जाती है और अंततः क्षीण हो जाती है ।
ये सिद्धियाँ दर्शकों के लिए भी उतनी ही हानिकारक हैं जितना चमत्कार का प्रदर्शन करने वालों के लिये ।
जब जीव इन सिद्धियों के चमत्कार देखते हैं, तो वे योगी (अर्थात इन सिद्धियों के स्वामी) को भगवान् से कम नहीं मानते । चमत्कार के आधार पर योगी में श्रद्धा कर बैठते हैं । परंतु मायिक जीव का अनुसरण करने के कारण अंततः साधक का आध्यात्मिक पतन हो जाता है।
इस प्रकार, आप समझ लीजिये कि सात्विक गुण भी मायिक हैं, और ये सभी सात्विक सिद्धियाँ मायिक हैं । अतः इन से आध्यात्मिक उत्थान कदापि नहीं हो सकता है ।
चमत्कार करने वालों के लिए निम्नलिखित खतरे हैं -
1. अंतःकरण में इन शक्तियों का प्राकट्य सिद्ध योगियों के मनों को भी वचलित कर देता है ।
2. इन शक्तियों की सिद्धि अहंकार को बढ़ाती है, जिससे अंततः साधक का आध्यात्मिक पतन हो जाता है। भगवान् को दीनता पसंद है अहंकार नहीं ।
3. सिद्धि का उपयोग करने से सिद्धि घटती जाती है और अंततः क्षीण हो जाती है ।
ये सिद्धियाँ दर्शकों के लिए भी उतनी ही हानिकारक हैं जितना चमत्कार का प्रदर्शन करने वालों के लिये ।
जब जीव इन सिद्धियों के चमत्कार देखते हैं, तो वे योगी (अर्थात इन सिद्धियों के स्वामी) को भगवान् से कम नहीं मानते । चमत्कार के आधार पर योगी में श्रद्धा कर बैठते हैं । परंतु मायिक जीव का अनुसरण करने के कारण अंततः साधक का आध्यात्मिक पतन हो जाता है।
इस प्रकार, आप समझ लीजिये कि सात्विक गुण भी मायिक हैं, और ये सभी सात्विक सिद्धियाँ मायिक हैं । अतः इन से आध्यात्मिक उत्थान कदापि नहीं हो सकता है ।
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