COVID- 19 आज पूरे विश्व में फैल गया है। यह श्वसन तंत्र में होने वाला एक अत्यधिक संक्रामक रोग है जो कोरोना वायरस की नई प्रजाति द्वारा फैलता है। यह वायरस सर्वप्रथम दिसंबर 2019 में चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में पहचाना गया। अप्रैल 2020 के अंत तक इस वायरस के संक्रमण से १८० देशों में ३० लाख लोगों प्रभावित हुये । लगभग ढाई लाख लोग इस वायरस के कारण मृत्यु की चपेट में आ चुके हैं। विश्व भर में मृतकों की बढ़ती संख्या के साथ, यह वायरस लोगों में अत्यधिक भय, दहशत, तनाव एवं व्याकुलता का कारण बन चुका है ।
हमारे शास्त्र, वेद "मृत्यु के भय" को जीव के कष्ट का कारण मानते हैं ।
यह पंचक्लेशों में से एक है जिसे अभिनिवेश कहते हैं । इस भय का मुख्य कारण है हमारी अज्ञानता तथा वास्तविक "मैं" के स्वरूप से अनभिज्ञ होना। "मैं" वेदों में आत्मा का सम्बोधन है । भगवान ने आत्मा को यह शरीर दिया है जिससे कि आत्मा अपने वास्तविक अंशी को प्राप्त कर अपने परमचरम लक्ष्य "परमानंद" को प्राप्त कर सके।
उपनिशदों के अनुसार
हमारे शास्त्र, वेद "मृत्यु के भय" को जीव के कष्ट का कारण मानते हैं ।
यह पंचक्लेशों में से एक है जिसे अभिनिवेश कहते हैं । इस भय का मुख्य कारण है हमारी अज्ञानता तथा वास्तविक "मैं" के स्वरूप से अनभिज्ञ होना। "मैं" वेदों में आत्मा का सम्बोधन है । भगवान ने आत्मा को यह शरीर दिया है जिससे कि आत्मा अपने वास्तविक अंशी को प्राप्त कर अपने परमचरम लक्ष्य "परमानंद" को प्राप्त कर सके।
उपनिशदों के अनुसार
आनंद एवाधस्तात् आनंद उपरिष्टात् आनंद: पुरस्तात् आनंद: पश्चात्
आनंद उत्तरतः आनंदो दक्षिणतः आनंद एवेद्ॅसर्वम्॥
आनंद उत्तरतः आनंदो दक्षिणतः आनंद एवेद्ॅसर्वम्॥
छांदोग्योपनिष्द
“उसके (भगवान) ऊपर-नीचे, दाएँ-बाँये, चारों ओर आनंद ही आनंद है ।”
यद्यपि जीव का लक्ष्य वह आनंद है परंतु अज्ञानता के कारण, यह जानने और मानने के बजाय कि "मैं" आत्मा हूँ, हम भौतिक शरीर को वास्तविक "मैं" मानते हैं । यदि यह मिथ्या सदा के लिए समाप्त हो जाय, तो हमें यह ज्ञान हो जाएगा कि "मैं" अजन्मा, अनादि है तथा अनन्तकाल तक जीवित रहेगा । अतः इससे मृत्यु की अवधारणा का विवाद ही समाप्त हो जाएगा ।
यद्यपि जीव का लक्ष्य वह आनंद है परंतु अज्ञानता के कारण, यह जानने और मानने के बजाय कि "मैं" आत्मा हूँ, हम भौतिक शरीर को वास्तविक "मैं" मानते हैं । यदि यह मिथ्या सदा के लिए समाप्त हो जाय, तो हमें यह ज्ञान हो जाएगा कि "मैं" अजन्मा, अनादि है तथा अनन्तकाल तक जीवित रहेगा । अतः इससे मृत्यु की अवधारणा का विवाद ही समाप्त हो जाएगा ।
हमारा शरीर क्षणभंगुर है एवं सदा बदलता रहता है जबकि आत्मा अजर एवं अमर है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही || 2.22|| "जिस प्रकार हम अपने फटे-पुराने वस्त्रों का त्याग करके नए वस्त्र धारण करते हैं, ऐसा करते समय "हम" नहीं बदलते, उसी प्रकार एक शरीर को त्याग कर दूसरे शरीर को धारण करने में आत्मा रूपी "मैं" नहीं बदलता ।"
न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूय: |
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 2.20|| “आत्मा न कभी पैदा होती है न कभी मरती है। इसका अस्तित्व न कभी प्रारंभ हुआ और ना ही अंत होगा ।आत्मा अजन्मा है, अनादि है, अजर है, अमर है । शरीर के समाप्त हो जाने पर भी आत्मा समाप्त नहीं होती।”
गीता की यह पंक्तियां बताती है कि हमारा शरीर क्षणभंगुर है परंतु आत्मा अनादि है। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: || 2.23|| "आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न पानी गीला कर सकता है और न वायु सुखा सकती है।"
|
हितोपदेश में यह लिखा है -
आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च। पंचैत्यान्यपि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ॥
हितोपदेश
“पांच चीजें हमारे प्रारब्ध में सुनिश्चित होती हैं आयु, व्यवसाय, धन, शिक्षा एवं मृत्यु।”
इसका तात्पर्य यह है कि हमारी मृत्यु पूर्व निर्धारित है । अतः जब शरीर को छोड़ने का समय आता है तो कोई बचा नहीं सकता और यदि मृत्यु का समय नहीं है तो कोई मार भी नहीं सकता । यहाँ तक की कोरोना वायरस भी नहीं । आपने देखा होगा कि दो रोगियों को समान रोग है उनका एक ही चिकित्सक उपचार करता है और दोनों को एक ही औषधि देता है परंतु एक स्वस्थ हो जाता है और दूसरा मृत्य को प्राप्त हो जाता है। वर्तमान परिस्थितियों में हम देख रहे हैं कि कोरोना पीड़ित कुछ लोगों का निधन अस्पताल में वेंटिलेटर पर हो जाता है परंतु इसके विपरीत कुछ लोगों में लक्षण भी प्रदर्शित नहीं होते ।
ऐसा क्यों?
हमारे शास्त्र वेद स्वास्थ्य की इन परिस्थितियों के तीन कारण बताते हैं
1. दैविक- स्वास्थ्य समस्याएँ जो कि वातावरण के कारण होती हैं जैसे प्रदूषणजनित समस्याएं। औषधियाँ इन व्याधियों के निवारण में सहायक हो सकती हैं।
2- दोषज- स्वास्थ्य की यह समस्याएँ आलस्य, पौष्टिक खानपान के अभाव के कारण होती हैं । औषधियाँ इन व्याधियों के निवारण में भी सहायक हो सकती हैं।
3- कर्मज - स्वास्थ्य की यह समस्याएँ हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का फल हैंं जिन्हें प्रारब्ध कहते हैं। कोई भी औषधि या वैद्य इनका उपचार नहीं कर सकता। भगवान पूर्व कर्मों के आधार पर फल देते हैं जिसके फलस्वरूप हम स्वास्थ्य की समस्याओं का भोग पूर्व निर्धारित काल तक करते हैं । भोग के पश्चात ये स्वतः समाप्त हो जाती हैं।
महाभारत का युद्ध के पूर्व ही भगवान श्री कृष्ण को यह ज्ञात था की युद्ध में कौन मृत्य को प्राप्त होगा और श्री कृष्ण ने युद्ध के पूर्व ही अर्जुन को इस तथ्य से अवगत करा दिया था । अतः यह सिद्ध होता है कि शरीर नश्वर है और पूर्व निर्धारित समय पर यह नष्ट हो जाएगा ।
हम अपने सीमित ज्ञान के आधार पर स्वास्थ्य सबंधी समस्यायों के वास्तविक कारणों को नहीं जान सकते । अतः स्वास्थ्य को हानिकारक तत्वों से बचने के लिये पथ्य का पालन करते हुए उचित औषधि का पान करना चाहिये ।
इसका तात्पर्य यह है कि हमारी मृत्यु पूर्व निर्धारित है । अतः जब शरीर को छोड़ने का समय आता है तो कोई बचा नहीं सकता और यदि मृत्यु का समय नहीं है तो कोई मार भी नहीं सकता । यहाँ तक की कोरोना वायरस भी नहीं । आपने देखा होगा कि दो रोगियों को समान रोग है उनका एक ही चिकित्सक उपचार करता है और दोनों को एक ही औषधि देता है परंतु एक स्वस्थ हो जाता है और दूसरा मृत्य को प्राप्त हो जाता है। वर्तमान परिस्थितियों में हम देख रहे हैं कि कोरोना पीड़ित कुछ लोगों का निधन अस्पताल में वेंटिलेटर पर हो जाता है परंतु इसके विपरीत कुछ लोगों में लक्षण भी प्रदर्शित नहीं होते ।
ऐसा क्यों?
हमारे शास्त्र वेद स्वास्थ्य की इन परिस्थितियों के तीन कारण बताते हैं
1. दैविक- स्वास्थ्य समस्याएँ जो कि वातावरण के कारण होती हैं जैसे प्रदूषणजनित समस्याएं। औषधियाँ इन व्याधियों के निवारण में सहायक हो सकती हैं।
2- दोषज- स्वास्थ्य की यह समस्याएँ आलस्य, पौष्टिक खानपान के अभाव के कारण होती हैं । औषधियाँ इन व्याधियों के निवारण में भी सहायक हो सकती हैं।
3- कर्मज - स्वास्थ्य की यह समस्याएँ हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का फल हैंं जिन्हें प्रारब्ध कहते हैं। कोई भी औषधि या वैद्य इनका उपचार नहीं कर सकता। भगवान पूर्व कर्मों के आधार पर फल देते हैं जिसके फलस्वरूप हम स्वास्थ्य की समस्याओं का भोग पूर्व निर्धारित काल तक करते हैं । भोग के पश्चात ये स्वतः समाप्त हो जाती हैं।
महाभारत का युद्ध के पूर्व ही भगवान श्री कृष्ण को यह ज्ञात था की युद्ध में कौन मृत्य को प्राप्त होगा और श्री कृष्ण ने युद्ध के पूर्व ही अर्जुन को इस तथ्य से अवगत करा दिया था । अतः यह सिद्ध होता है कि शरीर नश्वर है और पूर्व निर्धारित समय पर यह नष्ट हो जाएगा ।
हम अपने सीमित ज्ञान के आधार पर स्वास्थ्य सबंधी समस्यायों के वास्तविक कारणों को नहीं जान सकते । अतः स्वास्थ्य को हानिकारक तत्वों से बचने के लिये पथ्य का पालन करते हुए उचित औषधि का पान करना चाहिये ।
चिकित्सकों के शोध के अनुसार इस वायरस से बचने का उत्तम उपाय शारीरिक दूरी बनाए रखना है । इसके अतिरिक्त कुछ सावधानियाँ भी बरतनी होंगी, जैसे
पथ्य से रहने से दोषज व्याधियों से बच सकते हैं ।
महाभारत युद्ध में अर्जुन के बाण हजारों योद्धाओं की मृत्यु का कारण बने । भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता को आदेश दिया,"(यद्यपि उनकी मृत्यु पूर्व निर्धारित है) अधर्मात्माओं की मृत्यु का कारण बनने के लिए उद्यत हो जाओ"। वर्तमान काल में कोरोना वायरस उनहिं की मृत्यु का कारण बनेगा जिनकी मृत्यु का समय आ गया है।
अवश्यम्भावि को कोई नहीं टाल सकता है । जैसा कि अर्जुन गीता में कहते हैं कि
- सरकार के द्वारा बनाए गए 'लाॅकडाउन' नियम का पूर्णतया पालन करते हुए घर में ही रहना,
- स्वच्छता का पालन करना - जैसे हाथों को धोना, मास्क पहनना, हाथों से नाक-मुँह न छूना
- पौष्टिक भोजन करना जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
पथ्य से रहने से दोषज व्याधियों से बच सकते हैं ।
महाभारत युद्ध में अर्जुन के बाण हजारों योद्धाओं की मृत्यु का कारण बने । भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता को आदेश दिया,"(यद्यपि उनकी मृत्यु पूर्व निर्धारित है) अधर्मात्माओं की मृत्यु का कारण बनने के लिए उद्यत हो जाओ"। वर्तमान काल में कोरोना वायरस उनहिं की मृत्यु का कारण बनेगा जिनकी मृत्यु का समय आ गया है।
अवश्यम्भावि को कोई नहीं टाल सकता है । जैसा कि अर्जुन गीता में कहते हैं कि
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा: समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति |
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति || 11.28||
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति || 11.28||
"जिस प्रकार नदियां तेजी से बह कर समुद्र में समा जाती हैं उसी प्रकार हजारों योद्धा आपके ज्वलंत मुख में समाते जा रहे हैं"।
अतः चाहे यह कोरोना वायरस हो या कुछ और, बुद्धिमान मनुष्य उससे कभी भी विचलित नहीं होता।
मृत्यु की संभावना की आशंका वर्तमान में आपकी चिंताजनक हो सकती है, परन्तु भविष्य में कोई लाभ नहीं होगा। इसके विपरीत आपको वर्तमान क्षण में मृत्यु की बढ़ती संभावना को जानते हुए कुछ ऐसा करने का निश्चय करना लाभकारी होगा जो भविष्य में आपके लिए सहायक सिद्ध हो । अपने नियंत्रण से परे की स्थितियों के बारे में चिंतित होने के विपरीत स्थायी समाधान एवं एक प्रामाणिक उपाय के अन्वेषण के लिए प्रयत्नशील होना (पढ़ें Overcome Fear of Death) क्या यह समझदारी नहीं है?
अतः चाहे यह कोरोना वायरस हो या कुछ और, बुद्धिमान मनुष्य उससे कभी भी विचलित नहीं होता।
मृत्यु की संभावना की आशंका वर्तमान में आपकी चिंताजनक हो सकती है, परन्तु भविष्य में कोई लाभ नहीं होगा। इसके विपरीत आपको वर्तमान क्षण में मृत्यु की बढ़ती संभावना को जानते हुए कुछ ऐसा करने का निश्चय करना लाभकारी होगा जो भविष्य में आपके लिए सहायक सिद्ध हो । अपने नियंत्रण से परे की स्थितियों के बारे में चिंतित होने के विपरीत स्थायी समाधान एवं एक प्रामाणिक उपाय के अन्वेषण के लिए प्रयत्नशील होना (पढ़ें Overcome Fear of Death) क्या यह समझदारी नहीं है?