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2015 शरद​  पूर्णिमा​

सार गर्भित सिद्धांत​​
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अनेक में एकता

सार गर्भित सिद्धान्त

अनेक में एकता

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सीता राम दोनों  एक, दो हैं नाम । चाहे सीता भजो चाहे भजो राम ।।
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वेद के अनुसार ईश्वर इस संसार का रचयिता हैं और संहारक भी हैं। संसार के प्राकट्य और प्रलय का चक्र अनादि है । जैसे मकड़ी अपने जाला उगलती है और उसे वापस निगल लेती है, उसी तरह भगवान भी संसार को प्रकट करते हैं और फिर प्रलय कर देते हैं फिर पुनः प्रकट करते हैं। 

प्रलय के समय, पूरा संसार भगवान के महोदर में लीन हो जाता है, और सृष्टि के समय पहले की तरह प्रकट हो जाता है । संसार में केवल तीन तत्व हैं -

1. चेतन जीव
सभी जीवों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, चर और अचर। पशु-पक्षी, मनुष्य आदि चल सकते हैं। जबकि पेड़ नहीं चल सकते । फिर भी पेड़ों में जीवन होता है, जैसे बीज अंकुरित होता है, एक वृक्ष के रूप में विकसित होता है और फलता-फूलता है, फिर अंत में मर जाता है। इसी तरह हमें माँ के गर्भ में शरीर मिलता है, फिर हम जन्म लेते हैं, फिर जीवन के विभिन्न चरणों से गुजरते हैं- बचपन, यौवन, अधेड़, बुढ़ापा, और फिर अंत में मर जाते हैं।

अब तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि पेड़-पौधे में भी जीवन होता है । दुनिया के कई हिस्सों में, खेतों में संगीत बजाया जाता है ताकि पौधे खुश रह सकें और अधिक उपज पैदा कर सकें।

ईश्वर ही इस सारी सृष्टि का स्रोत है।

2. जड़ तत्व​
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश अचेतन तत्वों के उदाहरण हैं। ब्रह्म की जड़ शक्ति माया की अभिव्यक्तियाँ हैं।

सृष्टि के समय इस क्रम में ईश्वर से निम्नलिखित तत्व निकलते हैं - आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। प्रलय के समय ये सब अपने कारण में विलीन हो जाते हैं। पृथ्वी वापस जल में विलीन हो जाती है, जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में, आकाश अहंकार में, अहंकार महान में, महान प्रकृति में और अंत में प्रकृति भगवान में विलीन हो जाती है।

3. भगवान
भगवान इस ब्रह्मांड के एक-एक कण में, चेतन और जड़ में समान रूप से व्यापक है। हर जीव के अंदर भी भगवान का वास है।

दूसरे शब्दों में, यह संसार तीनों तत्वों का संयोजन है। प्रलय के समय अन्य दो तत्व अपने कारण में विलीन हो जाते हैं। यह भगवान की इच्छा से होता है। यद्यपि भगवान को देखा नहीं जा सकता है, फिर भी भगवान ही ये सारेअद्भुत काम  करते हैं। आज के वैज्ञानिक​ जानते हैं कि कई आकाशगंगाएँ हैं, और प्रत्येक आकाशगंगा में लाखों सूर्य हैं। खगोलविद और वैज्ञानिक इस सृष्टि के आकार का निर्धारण नहीं कर पाए हैं, जिसे ईश्वर बनाता है और फिर अपने महोदर में लीन कर लेता है।

ये सब चमत्कार भगवान की सत्य संकल्प शक्ति से संभव होते हैं । सत्य संकल्प का अर्थ है जो भी कामना हो उसे पूर्ण करने की शक्ति । भगवान को कुछ कहने या करने नहीं पड़ता है। उन्होंने बस सोचा और वैसा हो गया। इस तरह सृष्टि होती है ।

महाप्रलय के बाद, अकारण-करुण भगवान अपने भीतर अचेत पड़े जीवों पर कृपा कर के फिर से सृष्टि करते हैं​।

सोऽकामयत । बहुस्यां प्रजायेयेति । स तपोऽतप्यत । स तपस्तप्त्वा । इदꣳसर्वमसृजत । यदिदं किञ्च ।
तत्सृष्ट्वा । तदेवानुप्राविशत् । तदनु प्रविश्य । सच्च त्यच्चाभवत् । निरुक्तं चानिरुक्तं च । निलयनं चानिलयनं च ।
विज्ञानं चाविज्ञानं च । सत्यं चानृतं च सत्यमभवत् । यदिदं किञ्च । तत्सत्यमित्याचक्षते । तदप्येष श्लोको भवति ॥
तैत्. उ १॥
इममेवात्मानं द्वेधा पातयत्तत: पतिश्च पत्नी चाभवताम्।
बृह० १/४/
ईश्वर संसार का प्राकट्य करते हैं ताकि जीव अपने परम-चरम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास कर सकें। लेकिन दुनिया में सभी जीवों को प्रकट करने से पहले, भगवान खुद को दो रूपों में प्रकट करते हैं - पति और पत्नी। वही भगवान समय-समय पर पृथ्वी पर अवतीर्ण​ होकर आते हैं। त्रेता युग में वही भगवान दो अलग-अलग रूपों में पृथ्वी पर प्रकट हुए, राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र राम और राजा जनक की बेटी के रूप में सीता । जीवों पर कृपा करके उन्होंने अनेकों लीलाएँ कीं यथा उन्होंने एक-दूसरे से शादी की । भोले लोग राम और सीता का अलग असतित्व मानते हैं, लेकिन तत्वज्ञ जानते हैं कि राम और सीता दो अलग-अलग रूपों में एक ही हैं।

अत: केवल राम या केवल सीता या दोनों की एक साथ पूजा करने का फल एक ही है - दिव्य आनंद ।
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