दुर्गा पूजा का पावन पर्व निकट ही है । संभवतः अनेक भक्तगण हर्षोल्लास के साथ दुर्गा पूजा मनाने की तैयारी में जुटे होंगे ।
दुर्गा माता भगवान शंकर की ह्लादिनी शक्ति हैं। भगवान शंकर की शक्ति के नौ प्रमुख रूप हैं जिनको नवदुर्गा कहते हैं । दुर्गा माँ के प्रत्येक रूप में कोई विशेष योग्यता है। उनके उपासक एक रात्रि में एक रूप का पूजन करते हैं और इस प्रकार 9 दिन तक नव दुर्गा की पूजा होती है । इसीलिए इसे नवरात्रि भी कहते हैं । श्री दुर्गा के नौ रूप निम्नलिखित हैं -
1.शैलपुत्री 2.ब्रह्मचारिणी 3. चंद्रघंटा 4. स्कंदमाता 5. कुष्मांडा 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री।
प्रश्न यह उठता है कि दुर्गा माँ कौन हैं और हमें उनकी उपासना क्यों करनी चाहिए?
संक्षेप में श्री महाराज जी के शब्दों में “माँ दुर्गा भगवान शंकर का ही रूप हैं । जो भगवान शंकर कर सकते हैं वही दुर्गा माँ भी कर सकती हैं”।
जैसे भगवान (ब्रह्म का पुरुष स्वरूप) के अनेक रूप हैं, ठीक उसी प्रकार भगवती (ब्रह्म का स्त्री स्वरूप) के भी अनेक रूप हैं । उन्हीं स्त्री रूपों में से एक माँ दुर्गा भी हैं। वे समय-समय पर भिन्न-भिन्न राक्षसों यथा मधु ,कैटव ,शुंभ, निशुंभ ,रक्तबीज आदि को मारने के लिए भिन्न-भिन्न स्वरूपों में प्रकट हुई हैं ।
हमने शास्त्रों में लीलाएँ पढ़ीं हैं जिनमें देवी दुर्गा ने उन राक्षसों का संहार किया है जिनको भगवान शंकर तथा भगवान विष्णु न मार सके। अब श्री महाराज जी का यह कथन, "जो भगवान शंकर कर सकते हैं वही दुर्गा माँ भी कर सकती हैं" कैसे सही है ?
महाराज जी के इस कथन को समझने के लिए आइए एक लीला तथा उसके संदर्भ का अवलोकन कर इस दिव्य कथन पर विचार करते हैं ।
दुर्गा माता भगवान शंकर की ह्लादिनी शक्ति हैं। भगवान शंकर की शक्ति के नौ प्रमुख रूप हैं जिनको नवदुर्गा कहते हैं । दुर्गा माँ के प्रत्येक रूप में कोई विशेष योग्यता है। उनके उपासक एक रात्रि में एक रूप का पूजन करते हैं और इस प्रकार 9 दिन तक नव दुर्गा की पूजा होती है । इसीलिए इसे नवरात्रि भी कहते हैं । श्री दुर्गा के नौ रूप निम्नलिखित हैं -
1.शैलपुत्री 2.ब्रह्मचारिणी 3. चंद्रघंटा 4. स्कंदमाता 5. कुष्मांडा 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री।
प्रश्न यह उठता है कि दुर्गा माँ कौन हैं और हमें उनकी उपासना क्यों करनी चाहिए?
संक्षेप में श्री महाराज जी के शब्दों में “माँ दुर्गा भगवान शंकर का ही रूप हैं । जो भगवान शंकर कर सकते हैं वही दुर्गा माँ भी कर सकती हैं”।
जैसे भगवान (ब्रह्म का पुरुष स्वरूप) के अनेक रूप हैं, ठीक उसी प्रकार भगवती (ब्रह्म का स्त्री स्वरूप) के भी अनेक रूप हैं । उन्हीं स्त्री रूपों में से एक माँ दुर्गा भी हैं। वे समय-समय पर भिन्न-भिन्न राक्षसों यथा मधु ,कैटव ,शुंभ, निशुंभ ,रक्तबीज आदि को मारने के लिए भिन्न-भिन्न स्वरूपों में प्रकट हुई हैं ।
हमने शास्त्रों में लीलाएँ पढ़ीं हैं जिनमें देवी दुर्गा ने उन राक्षसों का संहार किया है जिनको भगवान शंकर तथा भगवान विष्णु न मार सके। अब श्री महाराज जी का यह कथन, "जो भगवान शंकर कर सकते हैं वही दुर्गा माँ भी कर सकती हैं" कैसे सही है ?
महाराज जी के इस कथन को समझने के लिए आइए एक लीला तथा उसके संदर्भ का अवलोकन कर इस दिव्य कथन पर विचार करते हैं ।
लीला सन्दर्भदेवी भागवत पुराण के अनुसार दैत्य मधु और कैटभ दोनों भगवान विष्णु के कान के मल से पैदा हुए । उन दोनों ने घोर तपस्या करके देवी भगवती से अपराजेय एवं इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त किया ।
वरदान के अहंकार में चूर होकर उन्होंने सृष्टिकर्ता ब्रह्मा पर आक्रमण कर दिया ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास मदद के लिए गए। परंतु भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन थे । तब ब्रह्मा जी ने माता भगवती से भगवान विष्णु को जगाने के लिए प्रार्थना की । तत्पश्चात "भगवान विष्णु ने दोनों राक्षसों के साथ 10,000 वर्ष तक युद्ध किया। |
दशवर्ष सहस्राणि बाहुप्रहरणो विभुः।
संभवतः इस वृतांत को पढ़कर आप विचार कर रहे होंगे कि यदि 10,000 वर्षों तक युद्ध चला तो व्यक्ति की आयु कितनी होगी ।आप भूले ना होंगे कि सतयुग में मनुष्यों की आयु हजारों वर्षों की हुआ करती थी । कलियुग में मनुष्यों की आयु अधिकतम 100 वर्ष निर्धारित की गई है । इने-गिने भाग्यशाली लोग ही 100 वर्ष की आयु को पार कर पाते हैं ।
लीला में, भगवती माँ की परामर्श पर भगवान विष्णु ने दोनों राक्षसों के साथ एक चाल चली। भगवान विष्णु ने दोनों की युद्ध नीति की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन दोनों को वरदान मांगने को कहा। परंतु भगवान विष्णु को परास्त करने के मद में चूर उन अहंकारी दैत्यों ने भगवान विष्णु से वरदान मांगने को कहा । भगवान विष्णु ने चतुराई से मधु-कैटव के जीवन को माँग लिया । अंततोगत्वा माँ भगवती की सहायता से दोनों राक्षसों का वध संभव हुआ । यस्या स्वभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्माहरश्च नहि वक्तुं अलं बलं च।
“माँ काली की महिमा अपरंपार है जिसे स्वयं भगवान विष्णु भी नहीं समझ सकते” ।
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ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान विष्णु जिन राक्षसों का वध न कर सके उनका वध माँ काली ने कर दिया । अतः माँ काली भगवान विष्णु से अधिक शक्तिशाली हैं?
विचार कीजिए यह देवी कौन हैं ? भगवान ही स्वयं देवी का रूप धारण करते हैं । भगवती भगवान की शक्ति हैं । वस्तुतः दोनों एक ही है। इसलिए यह कहना हास्यास्पद होगा की देवी की शक्ति भगवान की शक्ति से अधिक है । यह मात्र लीला है ।
विचार कीजिए यह देवी कौन हैं ? भगवान ही स्वयं देवी का रूप धारण करते हैं । भगवती भगवान की शक्ति हैं । वस्तुतः दोनों एक ही है। इसलिए यह कहना हास्यास्पद होगा की देवी की शक्ति भगवान की शक्ति से अधिक है । यह मात्र लीला है ।
लीला संबंधी तत्व ज्ञान
हम यह भली-भाँति जानते हैं कि भगवान परात्पर ब्रह्म श्री कृष्ण सर्वेश्वर हैं -
योऽसै परब्रह्म गोपालः ।
भगवान के विभिन्न अवतार उनकी किसी विशेष शक्ति का रूप हैं । दूसरे शब्दों में कहें तो श्री कृष्ण अवतारी अर्थात सभी अवतारों के मूल हैं और सभी भगवान श्री कृष्ण के पुरुष अवतार हैं यथा ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, राम आदि (1) । मूल अवतारी भगवान श्री कृष्ण की शक्ति से सभी अवतार शक्तिमान बनते हैं। सभी अवतार योगमाया नियंत्रक होते हैं ।
जिस प्रकार भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु ,भगवान शंकर श्री कृष्ण के स्वांश हैं ठीक उसी प्रकार माता ब्रह्माणी, माता लक्ष्मी तथा माता पार्वती श्री राधा रानी के बाँए अंग से प्रकट हुई हैं। यह देवियाँ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की ह्लादिनी शक्ति हैं।
तस्या वामांशभागेन कोटि लक्ष्मीः प्रकीर्तिताः।
यह सभी देवियाँ श्री राधारानी की स्वांश है अर्थात ये जीव की कोटि में नहीं है । चूंकि राधा रानी उनकी शक्तियों का स्रोत है अतः यह राधा रानी के आधीन है।
लीला क्षेत्र में पुरुष अवतारों का विवाह अपनी-अपनी ह्लादिनी शक्ति के साथ संपन्न होता है । लीला के उद्देश्य से ही देवी दुर्गा और उनके अन्य स्वरूप माता पार्वती से प्रकट हुए इसीलिए उमा, दुर्गा तथा काली सभी श्री राधा रानी की स्वांश हैं। यह सभी जीव की कोटि से परे हैं । यह सभी भगवान हैं।
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दुर्गा हैं राधा अंश गोविन्द राधे । दुर्गा जी की जय जयकार करा दे ॥
- राधा गोविंद गीत 5079
- जगद्गुरूत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
- जगद्गुरूत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
इन अवतारों का प्राकट्य किसी विशेष उद्देश्य से होता है। उद्देश्य के अनुरूप ही अवतार आवश्यक शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं । जैसे मच्छर को मारने के लिए परमाणु बम की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए हमारे हाथ ही पर्याप्त हैं । इसी प्रकार प्रत्येक अवतार में आवश्यक शक्तियाँ ही प्रकट होती अन्य शक्तियाँ सुसुप्त अवस्था में रहती हैं ।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार प्रथम पुरुष कार्णारणवशायी महाविष्णु श्री कृष्ण भगवान की एक कला के अवतार हैं। (1)
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार प्रथम पुरुष कार्णारणवशायी महाविष्णु श्री कृष्ण भगवान की एक कला के अवतार हैं। (1)
यस्यैक निःश्वसितकालमथावलम्ब्य, जीवन्ति लोमविलजाः जगदण्ड नाथा ।
विष्णुर्महान्स इह यस्य कलाविशेषो, गोविंदमादि पुरुषं तमहं भजामि ॥
विष्णुर्महान्स इह यस्य कलाविशेषो, गोविंदमादि पुरुषं तमहं भजामि ॥
ब्रह्म संहिता
अन्य सभी शक्तियाँ महाविष्णु में सुसुप्त अवस्था में रहती हैं। यही सत्य अन्य अवतारों के लिए भी है। जैसे त्रेता में श्री राम 12 कलाओं के साथ तथा द्वापर में श्री कृष्ण 16 कलाओं के साथ अवतरित हुए। परंतु इसका आशय यह नहीं है कि भगवान श्री राम भगवान श्री कृष्ण से कम शक्तिमान है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि श्री कृष्ण भगवान के पास अनंत शक्तियाँ हैं। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण को पूर्णतया नहीं समझा जा सकता है। उनकी प्रत्येक शक्ति भी अनंत मात्रा की होती है। उसका मापन नहीं हो सकता। काली माता भी दिव्य शक्ति हैं अतः इसमें कदापि आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उनको भी पूर्णतया कोई नहीं समझ सकता। अतः मार्कंडेय पुराण के शब्द सही हैं परंतु उसको पढ़ कर भ्रमित नहीं होना चाहिए कि एक भगवान दूसरे से अधिक शक्तिमान हैं । यह तुलना करना नामापराध की श्रेणी में आता है।(2)
देवी दुर्गा और माँ काली का अवतार राक्षसों के वध तथा अन्य देवी-देवताओं की रक्षा हेतु हुआ । अतः उनका अवतार धर्म-स्थापन हेतु हुआ । अब लीला के अनुसार उनके गले में मुंडमाला, उनकी जिह्वा रक्त सिक्त है तथा भृकुटी चढ़ी हुई हैं, हाथों में विभिन्न शस्त्र धारण किए हुए हैं। उनकी इस छवि से बहुत से लोग डर सकते हैं परंतु उनका मूल स्वरूप प्रेम युक्त है।
कुछ उपासक माता के इस स्वरूप से प्रेम करते हैं जैसे स्वामी रामकृष्ण परमहंस । परंतु अक्सर ऐसा देखा जाता है कि बच्चा अपनी माता के पास तब नहीं जाता जब वह क्रोधित होती है। वह क्रोध के शांत होने तक इंतजार करता है तत्पश्चात उनकी गोद में जाता है। माँ दुर्गा और माँ काली का प्रेम युक्त स्वरूप श्री राधा रानी हैं जो श्री दुर्गा तथा अन्य देवियों का मूल हैं । |
निष्कर्ष
कुछ लोग अपने परिवार के रीति-रिवाजों को निभाते हुए देवी दुर्गा के इन स्वरूपों की आराधना करते हैं परंतु कुछ लोग भय से करते हैं कि "यदि मैंने दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना नहीं की तो देवी के कोप के कारण मेरा अथवा मेरे परिवार का अनिष्ट हो जाएगा " ।
विचार कीजिये: यदि किसी बच्चे की माँ पुलिस अधिकारी है तो क्या वह कभी ये सोच सकता है कि वर्दी पहने हुए माँ से प्रेम करें या माँ के बिना वर्दी वाले स्वरूप को । बच्चा घर में अपनी माँ से प्रेम करता है । इसी प्रकार सभी देवियाँ एक ही हैं। हमें उनके जिस स्वरूप से अधिक प्रेम हो उसी की उपासना करने से सभी की उपासना का लाभ स्वतः मिल जाएगा ।(3) अतः भय के कारण अथवा अन्य किसी कारणवश माता के विकराल स्वरूप की उपासना या साथ-साथ उनके अन्य स्वरूपों की उपासना करने की अपेक्षा यदि हम उनके सर्वश्रेष्ठ प्रेम युक्त स्वरूप यथा श्री राधा रानी की उपासना करें तो भक्ति करना अधिक आसान होगा और हमारी साधना तेजी के साथ आगे बढ़ेगी । अधिक विकल्प हमारे मस्तिष्क में भ्रम पैदा कर देते हैं अतः भक्ति मंद पड़ जाती है। अतः हमें अपने पूजा स्थल में भगवान के एक ही स्वरूप की पूजा करने से मन अधिक एकाग्र होगा और हमारा प्रेम द्रुतगति से उस एक इष्ट के प्रति शीघ्रता से बढ़ता जाएगा। तब सभी माताओं की फोटो रखकर के पूजा लोग क्यों करते हैं? |
अन्ततः यह सदैव याद रहे कि दुर्गा, काली, लक्ष्मी, पार्वती सभी देवियां श्री राधा रानी के अभिन्न स्वरूप हैं । अतः इस बार दुर्गा पूजा में मन से माता दुर्गा के प्रेम स्वरूप श्री राधा रानी की उपासना करिये । केवल श्री राधा रानी को ही अपना इष्ट तथा श्री कृष्ण को अपना प्रियतम मानकर, हम प्रेमानंद के उच्चतम स्तर महारास को प्राप्त कर सकते हैं।(4)