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Govardhan Leela Sculpture in Prem Mandir

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गोवर्धन पूजा

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Govardhan LeelaGovardhan Leela portrayed in Prem Mandir Vrindaban
ब्रज के पूज्य गोपों को इन्द्र की उपासना हेतु यज्ञ की तैयारी में व्यस्त देखकर, भगवान कृष्ण ने नम्रतापूर्वक अपने पिता नंद महाराज से इन सभी अनुष्ठानों का कारण पूछा। नंद महाराज ने समझाया कि इंद्र वर्षा के नियंत्रक हैं। मेघ जल प्रदान करते हैं, जो सभी प्राणियों को सुख और जीवनदाई अन्न​ प्रदान करते हैं।

कृष्ण ने कहा, "हमारा घर शहरों या गांवों में नहीं है। वनवासी होने के नाते, हम हमेशा जंगल और पहाड़ों पर आश्रित​ हैं। हमें गोवर्धन पहाड़ की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यह हमारे गायों के लिए चारा प्रदान करता है और यही हमारी आय का स्रोत है"।

भगवान कृष्ण ब्रजवासीयों को, केवल परात्पर ब्रह्म, जो आनंद के स्रोत​ हैं, की पूजा करने का महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाना चाहते थे। देवी-देवता की पूजा बंद करके, केवल परात्पर ब्रह्म ​ की अनन्य उपासना करने से अन्य सभी देवी-देवता स्वतः प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन इसके विपरीत सब की उपासना करने से भगवान की उपासना नहीं मानी जाती है।

Indra worshiping Shri KrishnaIndra worshiping Shri Krishna
जीव चिरकाल के लिये, प्रतिक्षण वर्धमान​, नित्य-नवायमान​ (नवीन) दिव्य आनंद चाहता है । ये देवी-देवता माया के आधीन​ प्राणी हैं  । यद्यपि उनके पास महान शक्तियाँ हैं तथापि वे शक्तियाँ सीमित मात्रा में, तथा सीमित काल के लिये हैं । उनके पास जितना है उससे अधिक​ नहीं दे सकते। अतः मानव जीवन के लक्ष्य को दिव्य प्राणियों की पूजा से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सर्वोच्च भगवान की पूजा करनी होगी। दूसरे शब्दों में वे परात्पर ब्रह्म की अनन्य भक्ति का पाठ पढ़ाना चाहते थे। भगवान कृष्ण वह भगवान हैं।

जब इंद्र को पता चला कि उनका यज्ञ नहीं किया जायेगा, तो वे नंद महाराज और अन्य गोपों पर क्रोधित हो गए। उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण ने सबको पट्टी पढ़ाई है और उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना भगवान मान लिया है । क्रोधित इंद्र ने संवर्तक बादलों को भेजा जो प्रलयकाल में विनाश का कारण बनते हैं। उन्होंने अपने हाथी ऐरावत पर सवार वर्षा के बादलों का अनुसरण किया और नंद महाराज के गांव को नष्ट करने के लिए शक्तिशाली पवन-देवता को अपने साथ ले गए। पवन-देव के वेग से बादल से बिजली कड़कने लगी और बदल ओले बरसाने लगे । बादलों ने मूसलाधार वृष्टी की जिससे ब्रज की भूमि बाढ़ में डूबने लगी । गाय और अन्य जानवर, अत्यधिक बारिश से त्रस्त हो गये, और गोप - गोपियाँ ठंड में ठिठुरने लगीं, सभी आश्रय के लिए कृष्ण के पास पहुँचे ।

भगवान कृष्ण समझ गए कि यह क्रोधित इंद्र का काम था। उन्होंने अपने प्रिय​ गोकुल वासियों को ओलों से और तीव्र​ हवा से बेहोश होते देखा । श्री कृष्ण ने कहा कि मैंने अपने भक्तों की रक्षा करने का संकल्प लिया है। इतना कहकर उन्होंने अपने बाएँ हाथ की छोटी उंगली के नाखून की नोक पर गोवर्धन पहाड़ को उठा लिया । सभी ब्रजवासी पहाड़ के नीचे चले गए, व​हाँ पशुओं तथा ब्रजवासियों के लिए भी पर्याप्त जगह थी । भगवान कृष्ण सात दिनों तक पहाड़ को उठाये खड़े रहे । ब्रजवासी टकटकी लगाकर​ उनकी ओर देखते रहे । किसी को भूख या प्यास नहीं लगती थी और व्यक्तिगत सुख की कोई परवाह नहीं थी ।

इसको देखकर इंद्र चकित रह गए । भगवत् कृपा से तब इंद्र को एहसास हुआ कि यह छोटा सा लड़का साधारण लड़का नहीं है, जिसने ब्रजभूमि को नष्ट करने के सभी शक्तिशाली प्रयासों को विफल कर दिया। ओह! वह ब्रह्म है - परात्पर ब्रह्म है !! फिर उन्होंने बारिश बंद कर दी और भगवान कृष्ण से क्षमा माँगने के लिए आए । ऐरावत हाथी ने सूंड में पानी भरकर​ श्री कृष्ण का अभिषेक​ किया और श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए इंद्र ने वैदिक ऋचाओं से स्तुति की। भगवान कृष्ण ने उन्हें क्षमा करके निर्देश दिया कि वे फिर कभी अहंकार​ में अंधे न हों । इंद्र ने कहा, "मैं अपनी सीमित शक्तियों के इतने नशे में था कि मैं भूल गया, कि मेरी शक्तियों का स्रोत आप हैं । कृपा करके मेरे झूठे अहंकार को चकनाचूर कर आपने आज मेरी आंखें खोल दीं"।

तो इस लीला का दूसरा कारण हमें झूठे-अहंकार को त्यागने की शिक्षा देना था । भगवान दीनबंधु हैं, अहंकारबंधु नहीं हैं ।

जब बारिश बंद हो गई, तो सभी गोप, महिलाएँ, बच्चे "कृष्ण कन्हैया लाल की - जय" कहते हुए परमानंद में नाचने लगे। उन्होंने गोवर्धन पर्वत की पूजा की और उन्हें इंद्र की पूजा के लिए बनाए गए सभी भोज्य पदार्थों का भोग लगाया । भगवान कृष्ण स्वयं गोवर्धन के विशाल रूप में प्रकट हुए और सब का भोग लगाया ।

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