मायिक शरीर में तीन दोष होते हैं अतः इन्हें त्रिदोष कहा जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति के शरीर में तीन मुख्य दोष होते हैं, वात-पित्त और कफ । इन्हीं से मिलकर शरीर बना होता है । एक स्वस्थ शरीर के लिए इन तीनों ही दोषों का संतुलित होना जरूरी होता है । यदि कोई एक भी दोष बढ़ या घट जाता है तो शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है ।
ये दोष हैं -
आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति के शरीर में तीन मुख्य दोष होते हैं, वात-पित्त और कफ । इन्हीं से मिलकर शरीर बना होता है । एक स्वस्थ शरीर के लिए इन तीनों ही दोषों का संतुलित होना जरूरी होता है । यदि कोई एक भी दोष बढ़ या घट जाता है तो शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है ।
ये दोष हैं -
कफ दोष - कफ का मूल स्थान छाती है। यह शरीर में रिक्त स्थानों में भर जाता है, जिससे शरीर को सक्रियता, स्फुर्ति और शक्ति मिलती है । इस दोष की मात्रा बढ़ने पर आलस्य, अत्यधिक नींद आना आदि होते हैं।
वात दोष - यह शरीर के चारों ओर घूमता है । तंत्रिका तंत्र और शरीर से निष्कासन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
पित्त दोष - इसको अग्नि भी कहा जा सकता है। यह भोजन और पेय पदार्थों को पचाने में मदद करता है। यह मुख्य रूप से छोटी आंत, पेट, रक्त और आंखों में रहता है।