Guru Stuti - गुरु स्तुति
मत्प्रेयान् राधिका प्रेयान् मद्धवो राधिका धवः । तस्मादपि गरियान्यो कृपालुर्मे जगद्गुरुः ॥
matpreyān rādhikā preyān maddhavo rādhikā dhavaḥ । tasmādapi gariyānyo kṛpālurme jagadguruḥ ॥
मेरे प्रियतम वही हैं जो श्री राधा के प्रियतम हैं। मेरे स्वामी वही हैं जो श्री राधा के स्वामी हैं। लेकिन उनसे भी अधिक महान है मेरे गुरु जगदगुरू श्री कृपालुजी महाराज।
Beloved of Sri Radha Rani is the Beloved of my heart and soul, but my gracious Guru Jagadguru Kripalu Maharaj is still the great.
गुरु भजति श्री कृष्णः श्रीकृष्णं भजते गुरुः । सिद्धांततस्त्वभेदेऽपि कृपालुर्मे गुरुर्महान् ॥
guru bhajati śrī kṛṣṇaḥ śrīkṛṣṇaṃ bhajate guruḥ । siddhāṃtatastvabhede'pi kṛpālurme gururmahān ॥
गुरुदेव श्रीकृष्ण को भजते हैं, और श्रीकृष्ण गुरुदेव को । यद्यपि सिद्धांत के दृष्टिकोण से हरि एवं गुरु में अंतर नहीं है, तथापि गुरु अधिक महान हैं, क्योंकि उन्हीं से हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है।
Krishna and Krishna adores Guru. Though both are one and the same, however my Supreme Guru, Guru Shri Kripalu Ji Maharaj, is still Superior.
यस्य साक्षात् भगवति ज्ञानदीप प्रदे गुरौ । मर्त्या सद्धिः श्रतं तस्य सर्वं कुंजर शौचवत् ॥
yasya sākṣāt bhagavati jñānadīpa prade gurau । martyā saddhiḥ śrataṃ tasya sarvaṃ kuṃjara śaucavat ॥
हृदय में ज्ञान का दीपक जलाने वाले गुरु साक्षात भगवान ही हैं। जो दुर्बुद्धि पुरुष उन्हें मनुष्य मानता समझता है, उसका समस्त शास्त्र-श्रवण हाथी के नाम के समान व्यर्थ है।
The Guru who ignites the flame of divine knowledge in the heart of a devotee is God Himself but, the one who considers the Divine Guru as a human being, is completely ignorant and his spiritual knowledge is totally useless like an elephant's bath.
एष वै भगवान् साक्षात् प्रधान पुरुषेश्वरः। योगेश्वरैर्विमग्यांघ्रिर्लोकोऽयं मन्यते नरम् ॥
eṣa vai bhagavān sākṣāt pradhāna puruṣeśvaraḥ। yogeśvarairvimagyāṃghrirloko'yaṃ manyate naram ॥
योगेश्वर जिन के चरण कमलों का अनुसंधान करते रहते हैं, प्रकृति और मनुष्य के अधिश्वर वे स्वयं भगवान ही गुरुदेव के रूप में प्रकट हैं । इन्हें लोग भ्रम से मनुष्य मानते हैं ।
Whose gracious foot dust is desired by the great yogis and gyanis and who is the Supreme controller of soul and Maya, He himself descends on the Earth planet as Guru. But the ignorant souls think of him as an ordinary human being
matpreyān rādhikā preyān maddhavo rādhikā dhavaḥ । tasmādapi gariyānyo kṛpālurme jagadguruḥ ॥
मेरे प्रियतम वही हैं जो श्री राधा के प्रियतम हैं। मेरे स्वामी वही हैं जो श्री राधा के स्वामी हैं। लेकिन उनसे भी अधिक महान है मेरे गुरु जगदगुरू श्री कृपालुजी महाराज।
Beloved of Sri Radha Rani is the Beloved of my heart and soul, but my gracious Guru Jagadguru Kripalu Maharaj is still the great.
गुरु भजति श्री कृष्णः श्रीकृष्णं भजते गुरुः । सिद्धांततस्त्वभेदेऽपि कृपालुर्मे गुरुर्महान् ॥
guru bhajati śrī kṛṣṇaḥ śrīkṛṣṇaṃ bhajate guruḥ । siddhāṃtatastvabhede'pi kṛpālurme gururmahān ॥
गुरुदेव श्रीकृष्ण को भजते हैं, और श्रीकृष्ण गुरुदेव को । यद्यपि सिद्धांत के दृष्टिकोण से हरि एवं गुरु में अंतर नहीं है, तथापि गुरु अधिक महान हैं, क्योंकि उन्हीं से हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है।
Krishna and Krishna adores Guru. Though both are one and the same, however my Supreme Guru, Guru Shri Kripalu Ji Maharaj, is still Superior.
यस्य साक्षात् भगवति ज्ञानदीप प्रदे गुरौ । मर्त्या सद्धिः श्रतं तस्य सर्वं कुंजर शौचवत् ॥
yasya sākṣāt bhagavati jñānadīpa prade gurau । martyā saddhiḥ śrataṃ tasya sarvaṃ kuṃjara śaucavat ॥
हृदय में ज्ञान का दीपक जलाने वाले गुरु साक्षात भगवान ही हैं। जो दुर्बुद्धि पुरुष उन्हें मनुष्य मानता समझता है, उसका समस्त शास्त्र-श्रवण हाथी के नाम के समान व्यर्थ है।
The Guru who ignites the flame of divine knowledge in the heart of a devotee is God Himself but, the one who considers the Divine Guru as a human being, is completely ignorant and his spiritual knowledge is totally useless like an elephant's bath.
एष वै भगवान् साक्षात् प्रधान पुरुषेश्वरः। योगेश्वरैर्विमग्यांघ्रिर्लोकोऽयं मन्यते नरम् ॥
eṣa vai bhagavān sākṣāt pradhāna puruṣeśvaraḥ। yogeśvarairvimagyāṃghrirloko'yaṃ manyate naram ॥
योगेश्वर जिन के चरण कमलों का अनुसंधान करते रहते हैं, प्रकृति और मनुष्य के अधिश्वर वे स्वयं भगवान ही गुरुदेव के रूप में प्रकट हैं । इन्हें लोग भ्रम से मनुष्य मानते हैं ।
Whose gracious foot dust is desired by the great yogis and gyanis and who is the Supreme controller of soul and Maya, He himself descends on the Earth planet as Guru. But the ignorant souls think of him as an ordinary human being