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गोपाष्टमी

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Shri Krishna with his friends Shri Krishna frolicking with his friends in the forests of Braj
भगवान श्रीकृष्ण मथुरा की एक कारागृह में माता देवकी और पिता वसुदेव के पुत्र के रूप में अवतरित हुए । देवकी के क्रूर भाई कंस ने दोनों को जेल में बंदी बना रखा था । श्रावण मास में, एक अंधेरी तूफानी रात में, श्री कृष्ण अपने दिव्य रूप के साथ कारागृह में प्रकट हुए, जिसमें उनकी चार भुजाएँ थीं और उन हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म था। देवकी और वसुदेव ने भगवान की स्तुति की और फिर उनसे बाल रूप में प्रकट होने के लिए अनुरोध किया। साथ ही, वे यह भूलना चाहते थे कि श्रीकृष्ण भगवान हैं ।

तब श्रीकृष्ण ने अपने पिता वसुदेव को नंद बाबा और यशोदा मैया के घर गोकुल ले जाने के लिए प्रेरित किया।

श्रीकृष्ण ने अपना बचपन गोकुल गाँव में अपने पालक माता-पिता के घर में बिताया। नंद बाबा गोपों के मुखिया थे और उनका व्यव्साय गोपालन था। उनके पास 900,000 गायें थीं। समकालीन प्रथा के अनुसार बहुत कम आयु में बालकों को उनके पिता के व्यवसाय में विधिवत शुभारंभ करा दिया जाता था। गोपाष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के पांचवें जन्मदिन के बाद, श्रीकृष्ण का गोचारण में शुभारंभ कराया गया।​

गोपों का यह कर्तव्य होता है कि वे गौचारण के लिये गायों को जंगल में हरे चरागाहों में ले जाएँ और उन्हें शाम तक वापस ले आएँ । अल्पायु के कारण यद्यपि श्रीकृष्ण का शुभारंभ तो हो गया था परंतु गायों की देखभाल उनका उत्तरदायित्व नहीं था। कभी कभार वे अपने निर्दिष्ट कर्तव्य का पालन करते थे परंतु वे मुख्यतः सखाओं के साथ खेलने के लिये वन में जाते थे। उनके सखा अपनी गायों के साथ-साथ श्रीकृष्ण के गायों की भी देखभाल करते थे। यह सिलसिला एक दो साल तक चलता रहा। आज अपने 7वें जन्मदिन के बाद तीसरी बार गोपाष्टमी की पूजा के उपरांत​, वे अपने सखाओं के संग​ गायों को चराने के लिए जंगल में गये । आज अपने सखाओं को सुख देने के लिये उन्हें छेड़खानी की सूझी । थोड़ा रूठेंगे और मनायेंगे तो रस में वृद्धि होगी ।

श्रीकृष्ण के लिए अपने सखाओं की मीठी डांट का आनंद कुछ और ही बात थी।  इसलिए जब श्रीकृष्ण​ की गायों को  बहोड़ने की बारी आई, उन्होंने यह कह कर साफ इन्कार कर दिया कि ये मेरा काम नहीं है। जैसे अभी तक तुम लोग बहोड़ते आये हो वैसे ही बहोड़ो । नहीं तो मैं मैया से जाकर कह दूँगा । 

यह सुनकर सखाओं को क्रोध आ गया । उनके एक सखा ने पलट कर कहा "ए मैया के लड़ैते ! मुझे धमकाने की चेष्टा मत कर​ ! हम सब बारी-बारी से गायों को बहोड़ते हैं और बाकि समय मस्ती करेते हैं । अपनी गायों को अलग कर लो, आज से हम तुम्हारी गायों को नहीं बहोड़ेंगे । अभी अलग कर लो ! आगे कोई बात नहीं सुनी जायेगी । अभी तो एक बार बारी आई और उस पर भी ताव दिखा रहे हो । बच्चू ! जब पूरे दिन चाकरी करनी पड़ेगी तब अकल ठिकाने आयेगी । अब तक हमने तुमको अपने सखा बलराम का छोटा भाई समझकर छूट दे रखी थी । लेकिन तुम तो सर पे ही चढ़ गये । ये पहली  गोपाष्टमी नहीं है । दो गोपाष्टमी और भी हो चुकी हैं । अब तुम्हें अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा । कभी तुम जाकर झपकी लेते हो, तो कभी आपनी बांसुरी बजाने के लिए भाग जाते हो। हम तुम्हारे नौकर नहीं हैं जिन्हें तुम्हारे पिताजी ने दिन भर तुम्हारे सेवा करने के लिए नियुक्त किया है। साथ ही, अपने पिता की धौंस मत दो  । हम तुम्हारे पिता से नहीं डरते हैं । क्या हुआ यदि तुम्हारे  पिता के पास हमारे पिता से कुछ अधिक​ गायें हैं ? हम उनका दिया नहीं खाते और उनकी छत के नीचे नहीं सोते !!"

श्रीकृष्ण का लक्ष्य लीला सौरस्य था लेकिन यहाँ तो ममला बहुत ही गंभीर हो गया । अपने प्राणप्रिय सखाओं को इस प्रकार कुपित देखकर​ श्रीकृष्ण बहुत घबरा गए। डर और घबराहट के कारण उनका गला भर आया और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

रसिक शिरोमणी, श्री कृपालु जी महाराज अपने आराध्य की ऐसी दयनीय दशा देखकर समझौता कराने गये। वैसे भी श्रीकृष्ण मैया बाबा के बुढ़ापे की संतान हैं, तो वैसे ही उनका लाड प्यार इतना अधिक हुआ । श्री कृष्ण तो सारे ब्रजमंडल का लाडले थे,  दिन रात गोपियाँ उनके दर्शन के लिए लालायित  रहती थीं, कोई न कोई बहाने बना कर नंदरानी के आंगन के चक्कर लगाती थीं। कोई ऐसा लाडला हो, और उसका कभी भी ताड़न ना हुआ हो तो ऐसे बालक का दिमाग सातवें आसमान पर हो तो उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है । श्री कृपालु जी महाराज श्री कृष्ण का पक्ष लेते हुए कहते हैं “दुनिया में आमतौर पर यह देखा जाता है कि गोद लिए हुए बच्चे अपने माता-पिता द्वारा लाड़-प्यार से और बिगड़ जाते हैं।”

नैतिक: प्रेम समाधि में कोई मर्यादा नहीं रहती। उनके मित्र श्रीकृष्ण से इतना प्रेम करते थे कि श्री कृष्ण उनके प्रेम की डांट सुनने के लिए हमेशा बेताब रहते थे। 

यह रसमय लीला प्रेम रस मदि​रा नामक ग्रंथ​ में काव्यात्मक शैली में लिखी गई है। यह पद​ श्रीकृष्ण बाल-लीला माधुरी में है । इस माधुरी में श्रीकृष्ण की बाल्यकाल तथा पौगण्ड लीलाओं का अत्यंत सरस वर्णन है ।


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