दिवाली |
दिवाली या दीपावली वह शुभ दिन है, जब भगवान श्री राम 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या वापस आए थे। दिवाली 'अमावस्या' के दिन पड़ती है, जब चंद्रमा नहीं उगता और चारों ओर अंधेरा होता है।
श्रीराम के बिना अयोध्यावासी जीवित तो थे, परंतु उनका जीवन मृतसमान था ।
उनमें कुछ भी करने का उत्साह नहीं था। उनके हृदय में शोक का सघनतम अंधकार छाया हुआ था । श्रीराम के आगमन की खबर ने उनमें फिर से जीवन फूंक दिया । परिणामस्वरूप संपूर्ण अयोध्या, जो 14 वर्षों से निष्क्रिय थी, उत्साही और अत्यंत सक्रिय हो गई। उनके अंधकारमय हृदय उल्लसित हो गये। उन्होंने अपने हृदय और देश के राजा के सम्मान में अपने गंदे घरों को रंगना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने घर को इतने मिट्टी के दीयों से सजाया कि पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था। उनकी आतिशबाजी से धरती से आकाश तक उजाला ही उजाला छा गया ।
दिवाली त्योहारों की एक श्रृंखला है। क्योंकि श्रीराम के आने के बाद दिन का हर पल अपने आप में एक पर्व था । वास्तव में, यह महीनों तक चला।
पांच दिवसीय दिवाली का ये पर्व, अश्वयुजा बहुल चतुर्दशी से शुरू होता है और कार्तिका शुद्ध विजया पर समाप्त होता है। इस त्योहार के पहले दिन की शुरुआत 'धन त्रयोदशी' या 'धनतेरस' से होती है। धन्वंतरि त्रयोदशी के बाद दिवाली का दूसरा दिन 'नरक चतुर्दशी' है, जो 'छोटी दिवाली' के नाम से लोकप्रिय है। दिवाली का तीसरा दिन, जिसे 'बड़ी दिवाली' भी कहा जाता है, दिवाली के त्योहार के उत्सव का मुख्य दिन है। लोग इस दिन लक्ष्मी पूजन करते हैं और उनसे धन और समृद्धि का आशीर्वाद देने के लिए प्रार्थना करते हैं। दिवाली का चौथा दिन गोवर्धन पूजा को समर्पित है। दिवाली का पांचवाँ दिन भाई दूज है, जो भाई-बहन के रिश्ते को सम्मान देने का समय है।
श्रीराम के बिना अयोध्यावासी जीवित तो थे, परंतु उनका जीवन मृतसमान था ।
उनमें कुछ भी करने का उत्साह नहीं था। उनके हृदय में शोक का सघनतम अंधकार छाया हुआ था । श्रीराम के आगमन की खबर ने उनमें फिर से जीवन फूंक दिया । परिणामस्वरूप संपूर्ण अयोध्या, जो 14 वर्षों से निष्क्रिय थी, उत्साही और अत्यंत सक्रिय हो गई। उनके अंधकारमय हृदय उल्लसित हो गये। उन्होंने अपने हृदय और देश के राजा के सम्मान में अपने गंदे घरों को रंगना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने घर को इतने मिट्टी के दीयों से सजाया कि पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था। उनकी आतिशबाजी से धरती से आकाश तक उजाला ही उजाला छा गया ।
दिवाली त्योहारों की एक श्रृंखला है। क्योंकि श्रीराम के आने के बाद दिन का हर पल अपने आप में एक पर्व था । वास्तव में, यह महीनों तक चला।
पांच दिवसीय दिवाली का ये पर्व, अश्वयुजा बहुल चतुर्दशी से शुरू होता है और कार्तिका शुद्ध विजया पर समाप्त होता है। इस त्योहार के पहले दिन की शुरुआत 'धन त्रयोदशी' या 'धनतेरस' से होती है। धन्वंतरि त्रयोदशी के बाद दिवाली का दूसरा दिन 'नरक चतुर्दशी' है, जो 'छोटी दिवाली' के नाम से लोकप्रिय है। दिवाली का तीसरा दिन, जिसे 'बड़ी दिवाली' भी कहा जाता है, दिवाली के त्योहार के उत्सव का मुख्य दिन है। लोग इस दिन लक्ष्मी पूजन करते हैं और उनसे धन और समृद्धि का आशीर्वाद देने के लिए प्रार्थना करते हैं। दिवाली का चौथा दिन गोवर्धन पूजा को समर्पित है। दिवाली का पांचवाँ दिन भाई दूज है, जो भाई-बहन के रिश्ते को सम्मान देने का समय है।
हममें से जो श्री महाराज जी के छत्रछाया में भक्ति साधना कर रहे हैं, उनके लिए यह दिन और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारी गुरू माँ, श्री महाराज जी की पत्नी हमारी प्यारी अम्मा, के अवतरण का दिन है। अम्माजी के दिव्य व्यक्तित्व की एक झलक पाने के लिए नीचे दिया गया वीडियो 00:30:55 से देखें।
Click on the link below to hear Banchary Didi's poem on "how to celebrate Diwali"
आज दिवाली है, जीवन का, जगमग दीप जले। Today is Diwali. Let the diyas (lighten earthen lamps) glimmer. |
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