सुश्री ब्रज बनचरी जी

श्री कृपालु कुंज आश्रम की संस्थापक ब्रज बनचरी देवी को प्यार से दीदी जी के नाम से जाना जाता है। वह भारत के इतिहास में पञ्चम मूल जगद्गुरु, जगद्गुरु कृपालु जी महाराज (श्री महाराज जी) अंतरंग सत्संगी और सबसे वरिष्ठ प्रचारक हैं। दीदी जी ने सम्पूर्ण जीवन अपने पूज्य गुरु की सेवा में ही व्यतीत किया।
दीदी जी का जन्म 1946 में भारत के उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में श्री एच.पी. महाबनी की सबसे छोटी संतान के रूप में हुआ था। महाबनी जी श्री महाराज जी के परम भक्त थे। श्री महाराज जी 15 वर्ष तक उनके घर में परिवार के सदस्य की तरह रहे। श्री महाराज जी की कृपा से, दीदी जी बचपन से ही श्री महाराज जी के बहुत समीप सानिध्य प्राप्त हुआ और उनको स्वयं श्री महाराज जी से भक्ति की पहली शिक्षा मिली।
दीदी जी बड़ी होकर मेधावी छात्रा बनीं। अपनी रुचि के अनुसार उन्होंने संस्कृत और संगीत में डबल एम.ए. प्राप्त किया। जब श्री महाराज जी ने उन्हें प्रचारिका बनने का आदेश दिया तो गुरु कृपा से उन्होंने मात्र चार महीने में वेदों और अन्य हिंदू शास्त्रों का अध्ययन पूरा किया। 1978 में शरद पूर्णिमा के शुभ दिन पर, श्री महाराज जी ने दीदी जी के सन्यास का आदेश देते हुए पीले वस्त्र दिए और उनका नाम बदलकर "ब्रज बनचरी" रख दिया। श्री महाराज जी ने दीदी जी को श्री राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम रस के प्रचार-प्रसार का उत्तरदायित्व सौंपा।
1980 के दशक की शुरुआत में, श्री महाराज जी नए प्रचारकों को बनचरी जी के पास श्लोकों का अभ्यास करने के लिए भेजते थे। यह सेवा बाद में जगद्गुरु कृपालु परिषत् के अध्यक्षा श्री महाराज जी की सुपुत्री परम पूज्य डॉ सुश्री श्यामा त्रिपाठी (मंझली दीदी) को दी गई।
कुछ वर्षों तक दीदी जी ने भारत के कई शहरों में प्रचार करते हुए कई लेक्चर दिए एवं संकीर्तन का रस बरसाया। उनके निष्काम सेवा भाव और कुशलता को देखकर श्री महाराज जी ने उन्हें सिद्धान्त का प्रचार के लिए विदेश भेजा। 1982 में दीदी जी ने स्वीडन और अमेरिका के विभिन्न शहरों में प्रचार करते हुए, 4 दिसंबर 1982 को कनाडा पहुँचीं। श्री महाराज जी ने उनको कनाडा में रहकर प्रचार करने के लिए कहा। दीदी जी ने 1983 में नॉन-प्रॉफिट संस्था, अंतर्राष्ट्रीय भक्तियोग साधना सोसाइटी (IBYSS) की स्थापना की। यह संस्था आज भी टोरंटो के साधना मंदिर से श्री कृपालु जी महाराज का तत्त्व ज्ञान और हिंदू शास्त्रों के दर्शन का प्रसार कर रही है। 1983 से इस मंदिर में नियमित रूप से सत्संग, विशेष आध्यात्मिक रिट्रीट (साधना शिविर) और धार्मिक उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं, जिससे कई साधक लाभान्वित हुए हैं।
1986 में दीदी लेक्चर टूर के लिए इंग्लैंड गईं। इस टूर की सफलता को देखकर दीदी जी साधकों को भक्ति मार्ग में अग्रसर करना चाहती थीं। इसलिए दीदी जी ने इंग्लैंड में भी IBYSS की स्थापना की और कई महीनों तक इस प्रयास को आगे बढ़ाया। उसके बाद इस इंग्लैंड के संगठन की जिम्मेदारी जेकेपी के अन्य प्रचारकों को सौंप दी गई, जो इस मिशन को अभी तक सफलतापूर्वक जारी रखे हुए हैं।
दीदी जी की शिक्षाओं ने वर्षों से हजारों परिवारों को गहराई से छुआ है। उनमें से कुछ परिवारों के बच्चे इतने अधिक प्रभावित हुए कि वे श्री महाराज जी के प्रचारक बन गए और श्री महाराज जी की सेवा करने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।श्री कृपालु कुंज आश्रम की संस्थापक ब्रज बनचरी देवी को प्यार से दीदी जी के नाम से जाना जाता है। वह भारत के इतिहास में पञ्चम मूल जगद्गुरु, जगद्गुरु कृपालु जी महाराज (श्री महाराज जी) अंतरंग सत्संगी और सबसे वरिष्ठ प्रचारक हैं। दीदी जी ने सम्पूर्ण जीवन अपने पूज्य गुरु की सेवा में ही व्यतीत किया।
दीदी जी का जन्म 1946 में भारत के उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में श्री एच.पी. महाबनी की सबसे छोटी संतान के रूप में हुआ था। महाबनी जी श्री महाराज जी के परम भक्त थे। श्री महाराज जी 15 वर्ष तक उनके घर में परिवार के सदस्य की तरह रहे। श्री महाराज जी की कृपा से, दीदी जी बचपन से ही श्री महाराज जी के बहुत समीप सानिध्य प्राप्त हुआ और उनको स्वयं श्री महाराज जी से भक्ति की पहली शिक्षा मिली।
दीदी जी बड़ी होकर मेधावी छात्रा बनीं। अपनी रुचि के अनुसार उन्होंने संस्कृत और संगीत में डबल एम.ए. प्राप्त किया। जब श्री महाराज जी ने उन्हें प्रचारिका बनने का आदेश दिया तो गुरु कृपा से उन्होंने मात्र चार महीने में वेदों और अन्य हिंदू शास्त्रों का अध्ययन पूरा किया। 1978 में शरद पूर्णिमा के शुभ दिन पर, श्री महाराज जी ने दीदी जी के सन्यास का आदेश देते हुए पीले वस्त्र दिए और उनका नाम बदलकर "ब्रज बनचरी" रख दिया। श्री महाराज जी ने दीदी जी को श्री राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम रस के प्रचार-प्रसार का उत्तरदायित्व सौंपा।
1980 के दशक की शुरुआत में, श्री महाराज जी नए प्रचारकों को बनचरी जी के पास श्लोकों का अभ्यास करने के लिए भेजते थे। यह सेवा बाद में जगद्गुरु कृपालु परिषत् के अध्यक्षा श्री महाराज जी की सुपुत्री परम पूज्य डॉ सुश्री श्यामा त्रिपाठी (मंझली दीदी) को दी गई।
कुछ वर्षों तक दीदी जी ने भारत के कई शहरों में प्रचार करते हुए कई लेक्चर दिए एवं संकीर्तन का रस बरसाया। उनके निष्काम सेवा भाव और कुशलता को देखकर श्री महाराज जी ने उन्हें सिद्धान्त का प्रचार के लिए विदेश भेजा। 1982 में दीदी जी ने स्वीडन और अमेरिका के विभिन्न शहरों में प्रचार करते हुए, 4 दिसंबर 1982 को कनाडा पहुँचीं। श्री महाराज जी ने उनको कनाडा में रहकर प्रचार करने के लिए कहा। दीदी जी ने 1983 में नॉन-प्रॉफिट संस्था, अंतर्राष्ट्रीय भक्तियोग साधना सोसाइटी (IBYSS) की स्थापना की। यह संस्था आज भी टोरंटो के साधना मंदिर से श्री कृपालु जी महाराज का तत्त्व ज्ञान और हिंदू शास्त्रों के दर्शन का प्रसार कर रही है। 1983 से इस मंदिर में नियमित रूप से सत्संग, विशेष आध्यात्मिक रिट्रीट (साधना शिविर) और धार्मिक उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं, जिससे कई साधक लाभान्वित हुए हैं।
1986 में दीदी लेक्चर टूर के लिए इंग्लैंड गईं। इस टूर की सफलता को देखकर दीदी जी साधकों को भक्ति मार्ग में अग्रसर करना चाहती थीं। इसलिए दीदी जी ने इंग्लैंड में भी IBYSS की स्थापना की और कई महीनों तक इस प्रयास को आगे बढ़ाया। उसके बाद इस इंग्लैंड के संगठन की जिम्मेदारी जेकेपी के अन्य प्रचारकों को सौंप दी गई, जो इस मिशन को अभी तक सफलतापूर्वक जारी रखे हुए हैं।
दीदी जी की शिक्षाओं ने वर्षों से हजारों परिवारों को गहराई से छुआ है। उनमें से कुछ परिवारों के बच्चे इतने अधिक प्रभावित हुए कि वे श्री महाराज जी के प्रचारक बन गए और श्री महाराज जी की सेवा करने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।श्री कृपालु कुंज आश्रम की संस्थापक ब्रज बनचरी देवी को प्यार से दीदी जी के नाम से जाना जाता है। वह भारत के इतिहास में पञ्चम मूल जगद्गुरु, जगद्गुरु कृपालु जी महाराज (श्री महाराज जी) अंतरंग सत्संगी और सबसे वरिष्ठ प्रचारक हैं। दीदी जी ने सम्पूर्ण जीवन अपने पूज्य गुरु की सेवा में ही व्यतीत किया।

2005 में जब श्री महाराज जी ह्यूस्टन आए, उन्होंने दीदी जी को इस शहर में संस्था स्थापित करने का निर्देश दिया। बाद में 2007 में ह्यूस्टन, टेक्सास में एक नॉन-प्रॉफिट आध्यात्मिक संस्था 'श्री कृपालु कुंज आश्रम' की स्थापना की गई। तब से आश्रम में कीर्तन, आध्यात्मिक प्रवचन जैसी नियमित भक्ति साधना आयोजित की जाती हैं। हर साल कई 8 घंटे के साधना शिविर भी आयोजित किए जाते हैं, जहाँ भक्तों को दिव्य प्रेम आनंद का अमृत पीने को मिलता है।
दीदी जी प्रति वर्ष जुलाई के आरम्भ में तथा दिसंबर के अंत में आध्यात्मिक रिट्रीट (साधना शिविर) आयोजित करती हैं। रिट्रीट इसलिए आयोजित किए जाते हैं कि साधक अपने दैनिक जीवन में साधना भक्ति को एक क्रियात्मक रूप दे सकें। दीदी जी प्रश्नोत्तर सत्रों के लिए रिट्रीट में पर्याप्त समय देती हैं, और उनके वेदों और शास्त्रों पर आधारित उत्तर साधक के संशय और संदेह का निवारण करते हैं। इन शिविर में और कई अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं जैसे कि साधक मिलकर भक्ति की कोई लीला प्रदर्शन में भाग लेते हैं। इनमें बच्चों एवं बड़ों को नृत्य एवं अन्य प्रतिभाओं का प्रदर्शन करने का मौका भी मिलता है। बच्चों को हारमोनियम, ढोलक (भारतीय ड्रम) और मंजीरा (झांझ) सीखने का अवसर भी दिया जाता है। रिट्रीट में, दीदी जी अपने जीवन में श्री महाराज जी से जुडी कई अनुभवों को खुलकर साझा करती हैं, क्योंकि उनके जीवन का हर हिस्सा किसी न किसी रूप में श्री महाराज जी से जुड़ा हुआ है।
दीदी जी प्रति वर्ष जुलाई के आरम्भ में तथा दिसंबर के अंत में आध्यात्मिक रिट्रीट (साधना शिविर) आयोजित करती हैं। रिट्रीट इसलिए आयोजित किए जाते हैं कि साधक अपने दैनिक जीवन में साधना भक्ति को एक क्रियात्मक रूप दे सकें। दीदी जी प्रश्नोत्तर सत्रों के लिए रिट्रीट में पर्याप्त समय देती हैं, और उनके वेदों और शास्त्रों पर आधारित उत्तर साधक के संशय और संदेह का निवारण करते हैं। इन शिविर में और कई अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं जैसे कि साधक मिलकर भक्ति की कोई लीला प्रदर्शन में भाग लेते हैं। इनमें बच्चों एवं बड़ों को नृत्य एवं अन्य प्रतिभाओं का प्रदर्शन करने का मौका भी मिलता है। बच्चों को हारमोनियम, ढोलक (भारतीय ड्रम) और मंजीरा (झांझ) सीखने का अवसर भी दिया जाता है। रिट्रीट में, दीदी जी अपने जीवन में श्री महाराज जी से जुडी कई अनुभवों को खुलकर साझा करती हैं, क्योंकि उनके जीवन का हर हिस्सा किसी न किसी रूप में श्री महाराज जी से जुड़ा हुआ है।
Testimonials
"Didi Ji is a unique sanyasi and spiritual teacher as she is dedicated with absolutely every fiber of her being to the teachings of her divine Guru. There is no doubt that being raised from earliest childhood around Sri Maharaj ji, and being cared for and repeatedly blessed by him throughout her whole life has granted her a special divine place among Sri Maharaji ji's closest family and associates.
Being around her, one can surely sense she has no one and nothing in her life but Sri Maharaj ji. Her uncompromising attitude with the material world is a blessing to behold as she tirelessly helps all those who come to her for guidance. Her lectures are spontaneous and right to the point, always taking the listeners to deeper and more profound levels of surrender and realization of the divine presence.
One of the many benefits of her association for me has been that the path to our universal divine goal has been cleared of obstacles, made more enjoyable, and simultaneously made simpler than it was before meeting her. Didi Ji's ability to open the receptive listener's mind to even the most intimate loving exchanges between the Lord and His devotees is enlightening and amazing.
I am grateful to be blessed by her association, and always feel helped by being in her satsang." DB, Houston, Texas, USA
“Braj Banchary Didi Ji has been a source of tremendous inspiration for me. The first time she conducted satsang at our home, the way she explained philosophy and resolved your doubts made me feel as if Shri Maharaj Ji himself was there. Her kirtan is melodious and fills you with divine love. She talks fondly of her childhood association with Shri Maharaj Ji. She paints a living picture of Shri Maharaj Ji's life from those days which seems to come alive. Learning about Shri Maharaj Ji from Didi Ji is a unique and a very pleasant experience.It seems the philosophy of divine love is part of the very fiber of her being.”