श्रीकृष्ण जन्माष्टमी |
जन्माष्टमी वह अत्यंत पावन पर्व है, जब लगभग 5000 साल पहले, सारस्वत कल्प के द्वापर युग के अंत में, पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रह्म श्री कृष्ण ने मनुष्यों को वास्तविक दिव्य प्रेम के बारे में समझाने एवं उसे प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया था । पंचांग के अनुसार, जन्माष्टमी श्रावण मास की पूर्णिमा के बाद आठवें दिन को पड़ती है।
इस त्योहार लगातार दो दिन मनाने की प्रथा है । वैष्णव लोग इसे पहले दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं क्योंकि इस दिन श्री कृष्ण का अवतरण मथुरा में कारागृह में हुआ था, जहाँ देवकी और वसुदेव को कंस ने कैद में रखा था ।
दूसरे दिन, नंदनंदन श्री कृष्ण के भक्त जन्माष्टमी मनाते हैं । इस दिन श्री कृष्ण को गोकुल में माता यशोदा और नंद बाबा के घर लाया गया था । गोकुलवासियों ने उनके आगमन को अत्यंत धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया। ब्रज के सभी निवासी आनंद के सागर में डूबे हुए थे। वे सब ईश्वरीय परमानंद में ऐसे विभोर थे कि सब के सब आनंद में नाचने गाने लगे और उन्हें खाने, पीने और अपने घर-गृहस्थी के काम संभालने का कोई भान ही नहीं रहा।
वर्तमान काल में, इस दिन को मनाने के लिए, साधकगण उपवास रखते हैं, अपने घरों को श्री कृष्ण की बाललीलाओं की झांकियों से सजाते हैं, बाल गोपाल की मूर्ति को स्नान कराते हैं, कीर्तन करते हैं, सब को स्वादिष्ट प्रसाद बाँटते हैं और बड़े उत्साह के साथ नाचते गाते भी हैं।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं कि जन्माष्टमी मनाने का सही तरीका यह है कि पूरे दिन साधक रूपध्यान पूर्वक कीर्तन करें, अपने घर को श्री कृष्ण की लीलाओं की झाँकियों से सजाएँ और भगवान के लिये स्वादिष्ट व्यंजन तैयार कर भोग लगायें । साधक को इन गतिविधियों में इतना व्यस्त रहना चाहिए कि वह स्वाभाविक रूप से खाना-पीना भूल जाए । श्रीकृष्ण के अवतरण के समय गोकुलवासियों की वास्तव में ये स्वाभाविक अवस्था थी । आज तक, भक्त उपवास करके गोकुलवासियों की स्थिति का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं। भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों के प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाना ही जन्माष्टमी मनाने का वास्तविक उद्देश्य है।
अपने पूज्य गुरुदेव श्री कृपालु जी महाराज की कृपा से, हम आज भी ऐसे ही जन्माष्टमी मनाते हैं। हम आरती करते हैं, सुंदर भजन गाते हैं, बाल गोपाल की लीलाओं का मंच प्रदर्शन करते हैं, अभिषेक करते हैं और अंत में सभी परमानंद में नाचते गाते हैं -
हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की !!
दूसरे दिन, नंदनंदन श्री कृष्ण के भक्त जन्माष्टमी मनाते हैं । इस दिन श्री कृष्ण को गोकुल में माता यशोदा और नंद बाबा के घर लाया गया था । गोकुलवासियों ने उनके आगमन को अत्यंत धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया। ब्रज के सभी निवासी आनंद के सागर में डूबे हुए थे। वे सब ईश्वरीय परमानंद में ऐसे विभोर थे कि सब के सब आनंद में नाचने गाने लगे और उन्हें खाने, पीने और अपने घर-गृहस्थी के काम संभालने का कोई भान ही नहीं रहा।
वर्तमान काल में, इस दिन को मनाने के लिए, साधकगण उपवास रखते हैं, अपने घरों को श्री कृष्ण की बाललीलाओं की झांकियों से सजाते हैं, बाल गोपाल की मूर्ति को स्नान कराते हैं, कीर्तन करते हैं, सब को स्वादिष्ट प्रसाद बाँटते हैं और बड़े उत्साह के साथ नाचते गाते भी हैं।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं कि जन्माष्टमी मनाने का सही तरीका यह है कि पूरे दिन साधक रूपध्यान पूर्वक कीर्तन करें, अपने घर को श्री कृष्ण की लीलाओं की झाँकियों से सजाएँ और भगवान के लिये स्वादिष्ट व्यंजन तैयार कर भोग लगायें । साधक को इन गतिविधियों में इतना व्यस्त रहना चाहिए कि वह स्वाभाविक रूप से खाना-पीना भूल जाए । श्रीकृष्ण के अवतरण के समय गोकुलवासियों की वास्तव में ये स्वाभाविक अवस्था थी । आज तक, भक्त उपवास करके गोकुलवासियों की स्थिति का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं। भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों के प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाना ही जन्माष्टमी मनाने का वास्तविक उद्देश्य है।
अपने पूज्य गुरुदेव श्री कृपालु जी महाराज की कृपा से, हम आज भी ऐसे ही जन्माष्टमी मनाते हैं। हम आरती करते हैं, सुंदर भजन गाते हैं, बाल गोपाल की लीलाओं का मंच प्रदर्शन करते हैं, अभिषेक करते हैं और अंत में सभी परमानंद में नाचते गाते हैं -
हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की !!