हमारी प्यारी बड़ी दीदी
बड़ी दीदी इनका नाम “विशाखा” है हम सब उन्हें प्यार से बड़ी दीदी बुलाते हैं । वैसे उनके बारे में बोलने का मौका नहीं मिलता पर कुछ सत्संगियों ने निवेदन किया कि मैं दीदी के बारे में कुछ बताऊँ ।
मैं उन्हें बचपन से जानती हूँ जब वो बहुत छोटी थीं और हमारे घर में हमारे संग में रहती थीं, उस समय से मैंने उनके अंदर कुछ अद्भुत गुण देखे हैं ।
सबसे पहले मैं बता दूँ बहुत पहले जब मैं दस साल की थी मैंने महाराज जी से पूछा एक बार “ महाराज जी मुझे घनश्याम, बालकृष्ण, श्यामा और कृष्णा का मतलब समझ में आता है पर विशाखा का मतलब क्या होता है? मुझे पता है विशाखा श्री राधा रानी की अष्ट महासाखियों में से एक थी पर फिर भी विशाखा का मतलब क्या होता है ?" इसके उतर में श्री महाराज जी ने कहा “ वि” मतलब “अनोखी” और “शाखा” मतलब “पेड़ की एक टहनी” – दिव्य प्रेम की उस अनोखी शाखा को विशाखा कहते हैं और यही गुण विशाखा सखी, जो की अष्टमहासाखियों में से एक हैं, उनमें भी देखा जाता हैं । इस प्रकार हम (बड़ी दीदी) को विशाखा महासखी का स्वरुप भी कह सकते हैं । वैसे उनका सत्य स्वरुप कौन जान सकता है ?
मुझे पता है की श्री महाराज जी का सम्पूर्ण परिवार - उनके बच्चे, अम्मा जी, आजी और सब परिवारजन अपने वास्तविक स्वरूप को छुपाते हैं ।
जब विशाखा जी (बड़ी दीदी) ग्यारह साल की थीं मुझे याद है एक बार मैं “ देखु सखी, झूमत आवत श्याम ” कीर्तन करा रही थी। पद सुनते ही बड़ी दीदी भाव में आ गयीं और आधे घंटे तक नाचती रहीं । और जब वो बहुत ही छोटी थीं, लगभग पाँच साल की, तो जब भी “हरि बोल” कीर्तन होता वो भाव में आधा घण्टे से लेकर ४५ मिनट तक नाचती रहतीं । और सब लोग उनके अद्भुत नृत्य पर बलि-बलि जाते ।
बड़ी दीदी मयूर नृत्य में भी बहुत विलक्षण थीं। उन्होंने किसी से मयूर नृत्य सीखा नहीं था। जब भी श्री महाराज जी किसी उत्सव पर सब सत्संगियो के समक्ष भोग ग्रहण करते, बड़ी दीदी मयूर नृत्य करके श्री महाराज जी का और सबका मनोरंजन करती थीं ।
बड़ी दीदी बहुत ही विलक्षण चित्रकार भी हैं । उन्होंने बहुत सुन्दर राधा-कृष्ण और श्री महाराज जी के चित्र बनाये हैं । बहुत से सत्संगियों के पास उनके बनाये या प्रिंटिड चित्र भी हैं ।
सबसे अनोखी बात जो मैंने बड़ी दीदी में बचपन से देखी है की उनके मुख मंडल पर हर क्षण, हर परिस्थिति में मुस्कान रहती है। एक समय होली के उत्सव पर मैंने सब परिवार और कुछ मुख्य सदस्यों के लिए हिंदी फिल्मों के गानों पर आधारित प्रशंसा के शीर्षक बनाये। मैं शीर्षक गाती और सुन कर सबको बताना होता की वह शीर्षक किसके लिए है ? जब मैंने विशाखा दीदी के लिए बनाया हुआ शीर्षक गाया :-
“ मस्त चहकती चिड़ियाँ हूँ मैं चाहे जिससे प्यार करूँ
चाहे गुरूजी चाहे महाराज जी चाहे पिता सौ बार कहूँ
सब रिश्ते हैं मेरे लिए मेरे लिए मेरे लिए ”
जैसे ही मैंने गाना अभी समाप्त ही किया सब लोग एक स्वर में बोले “विशाखा”। उस समय वो बहुत छोटी थीं और सब उनसे बड़े लोग विशाखा ही कह कर पुकारा करते थे या फिर विशाखा दीदी कह कर बुलाते थे बड़ी दीदी नहीं। इस प्रकार विशाखा दीदी हर समय प्रसन्न चित्त रहती थीं ।
अब जब श्री महाराज जी प्रत्यक्ष रूप से संसार में चले गए है और सब जिम्मेदारियाँ तीनों दीदियों, पर प्रमुख रूप से बड़ी दीदी, पर हैं। बड़ी दीदी को संस्था के अनेकों प्रोग्राम को देखना होता है और वो सारे कार्यक्रम वैसे ही चला रही हैं जैसे श्री महाराज जी के समय पर चलते थे। वो सारी जिम्मेदारियाँ सुचारू रूप से निभा रही हैं और सारे प्रोग्राम बिलकुल वैसे ही नियम से चला रही हैं जैसे श्री महाराज जी के समय में चलते थे ।
हम सब श्री महाराज जी को देख कर आश्चर्य चकित हो जाते थे की वो इतनी यात्रा कैसे करते थे और कभी भी थकान महसूस नहीं करते थे । मैं एक शहर से दूसरे शहर में जाती हूँ प्रोग्राम के लिए तो थोड़े ही दिन में थक जाती हूँ और श्री महाराज जी हर दो दिन में यात्रा करते थे एक शहर से दूसरे शहर से तीसरे शहर और कभी भी थके हुए नहीं दिखते थे। कई बार मैंने भी श्री महाराज जी के साथ यात्रा करी हैं मैं थक जाती थी पर महाराज जी कभी थकान महसूस नहीं करते दिखे। बड़ी दीदी भी बिलकुल वैसे ही श्री महाराज जी के समान यात्रा करती हैं, सारी जिम्मेदारियाँ निभा रही हैं और बहुत ही सुचारु रूप से चला रही हैं और हर समय प्रसन्न चित्त भी रहती हैं ।
कोई भी व्यक्ति बड़ी दीदी के पास जाता है वो सदा नरमी से, प्यार से बात करती हैं। मैंने ऑनलाइन ब्लॉग पर देखा जब स्कूल के विद्यार्थियों को जैकेट्स बाँटी जा रही थीं, बड़ी दीदी स्वयं अपने कर-कमलों से बच्चों को जैकेट पहना रही थीं, उनको प्यार दुलार कर रही थीं । उनकीं ममतामयी चरित्र की झाँकी देखने को मिलती हैं।
यह सब बातें एक ही बात सिद्ध करती है की बड़ी दीदी प्रेम की अद्भुत शाखा हैं ।
एक और बात जो मैंने बचपन से बड़ी दीदी में देखी हैं की जब भी उनके ऊपर जिम्मेदारियों का पहाड़ आता हैं , श्री महाराज जी के लिए प्रतिकूल परिस्थिति को सम्भालना आसान था – श्री महाराजी के एक बार कहने की देर होती थी “ अरे तुम ऐसा नहीं करो...” बस कोई प्रश्न या आनाकानी नहीं करता था और चुपचाप मान लेता था और बुरा भी महसूस नहीं करता था। पर अब अगर बड़ी दीदी को कभी किसी से कुछ कहना या किसी को कुछ करने से रोकना होता है तो उनको बड़ी नरमी से परिस्थिति को समझ-भूझ कर बोलना होता है नहीं तो लोग बुरा मान जाते हैं ।अर्थात् बड़ी दीदी श्री महाराज जी की तरह लोगों को आज्ञा नहीं दे पातीं क्योंकि लोगों में बड़ी दीदी के लिए श्री महाराज जी जैसा आदर भाव नहीं है। हमारी मायिक बुद्धि बड़ी दीदी के लिए श्री महाराज जी जैसे आदर भाव मानने की अनुमति नहीं देती । हम सब जानते है श्री महाराज जी ने अपने जीवन काल में ही दीदियों को संस्था के प्रतिदिन की गतिविधियों का कार्यभार सौंप दिया था और इसलिए हम सब में दीदियों के लिए भी वैसे ही आदर सम्मान की भावना, आज्ञा पालन की भावना होनी चाहिए जैसे श्री महाराज जी के लिए थी पर हमारी मायिक बुद्धि हमें धोका देती है। हम सब को स्वयं आभास है कि दीदियाँ दिव्य स्वरूप हैं ।
एक बार मैंने श्री महाराज जी से इस विषय में प्रश्न किया था की क्या महापुरुष के सब परिवार वाले दिव्य होते हैं ? श्री महाराजी ने कहा , “नहीं ! माँ और पत्नी महापुरुष होते हैं, वो शत प्रतिशत सत्य है। बच्चे महापुरुष हो भी सकते हैं या फिर कोई ऊँची अवस्था के योगी होते हैं या फिर सामान्य पुरुष भी हो सकते हैं । ऊपर बताई हुई बड़ी दीदी के चरित्र के विषय में समझ कर हम सब स्वयं अनुमान लगा सकते है की दीदियाँ कौन हो सकती हैं? यह हमारी भावना और हमारी ज्ञान की समझदारी पर निर्भर करता है। दीदियों का व्यक्तित्व कोई सामान्य नहीं है। विशाखा जी के चेहरे पर जो चमक है वो बड़ी अनोखी है।
एक बार की बात है श्री महाराज जी तब भगवा वस्त्र नहीं पहनते थे, अन्य रंगो के और बहुत बार सफ़ेद वस्त्र ही पहनते थे। इसलिए उन्हें भीड़ में भी पहचानना सरल था। पर जब भी यदि श्री महाराज जी कहीं बाजार में अगर खड़े हो जाते थे तो जो भी कोई उनके आस-पास से निकलता तो उनकी ओर आशर्य-चकित देखता हुआ निकलता था क्योंकि श्री महाराज जी के व्यक्तित्व में अनोखी सी दमक थी। वही अनोखी दमक मुझे बड़ी दीदी में दिखती है। उनमें बड़ी अनोखी आभा है, कितनी भी परेशानी आ जाए, कितनी भी जिम्मेदारियाँ आ जायें वो सदा अपने कार्यभार को प्रसन्नता पूर्वक पूर्ण करने में तत्पर रहती हैं ।
उनके यही सब गुण हम सबको यह प्रेरणा देते हैं की हमें भी प्रसन्नचित्त रह कर अपनी संसारी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए और कभी शिकायत नहीं करनी चाहिए जैसे वो हमें प्रतिदिन कर के दिखा रही हैं ।
कई बार लोग उनके साथ ठीक से व्यवहार नहीं करते, कई बार बड़ी दीदी के विषय में प्रतिकूल बाते करते हैं । बड़ी दीदी सब कुछ अनदेखा करते हुए क्षमा कर देती हैं और अपने प्रतिदिन की सेवा में तत्पर रहती हैं । वो रूकती नहीं हैं, दुखी नहीं होतीं। यह सब गुण हम लोगों के लिए एक उच्चतम प्रेरणा का उदाहरण है। बड़ी दीदी हम सब को अपने आप सब कुछ करके सिखा रही हैं की कैसे श्री महाराज जी की सेवा की जाती है।
बड़ी दीदी शारीरिक रूप से पहले की भाँति स्वस्थ्य न होते हुए भी अपनी सेवा में पीछे नहीं रहतीं । हर समय तन मन धन से सेवा करती हैं और हम सब के लिए यह उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं । हम लोग कभी-कभी साधना न कर पाने का कारण किसी व्यक्ति विशेष के प्रतिकूल व्यवहार, परिस्थिति या वातावरण को बताते हैं । बड़ी दीदी किसी भी कारणवश, कितनी भी कठिन परिस्थिति आये कभी अपनी सेवा साधना से विचलित होती नहीं दिखाई देतीं । वो हम सब को प्रेरणा दे रही हैं कि हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए श्री महाराज जी के चरण कमलों की भक्ति नित्य निरंतर करनी है, चाहे कितनी भी प्रतिकूल परिस्थियाँ आ जायें या कोई कुछ भी कहे।
चाहे कैसा भी वातावरण हो हमारे समक्ष, हमें निरंतर श्री महाराजजी के चरणों की भक्ति करनी है। हम अपने मन में ह्रदय में कैसे ही भक्ति करें, कोई व्यक्ति जान नहीं सकता या हमें रोक नहीं सकता। उदाहरण के रूप में भक्त ध्रुव और प्रह्लाद हैं । उनके पिता ने उन पर कितने प्रतिबन्ध लगाए शारीरिक रूप से - उनके शरीर को रस्सी से बाँध दिया पर प्रह्लाद ने कहा, “ मेरे शरीर को कैसे भी बाँध दो, मेरे शरीर को भगवान की भक्ति नहीं करनी है पर मेरे ह्रदय को कोई भगवान का नाम लेने से, उनकी भक्ति करने से, कोई नहीं रोक सकता।” इसी प्रकार हमें भी श्री महाराज जी के चरणकमलों को, उनके बताये तत्त्व ज्ञान को, उनके दर्शन शास्त्र को अपने ह्रदय में विराजमान करना है - चाहे कहीं भी हों, कैसी भी परिस्थिति आये, परिवार में संसार में हमारे सामने।
वैसे तो बड़ी दीदी के बारे में बहुत कुछ और भी है बताने के लिए पर समय का ध्यान रखते हुए यही पर समाप्त करती हूँ।
मैं उन्हें बचपन से जानती हूँ जब वो बहुत छोटी थीं और हमारे घर में हमारे संग में रहती थीं, उस समय से मैंने उनके अंदर कुछ अद्भुत गुण देखे हैं ।
सबसे पहले मैं बता दूँ बहुत पहले जब मैं दस साल की थी मैंने महाराज जी से पूछा एक बार “ महाराज जी मुझे घनश्याम, बालकृष्ण, श्यामा और कृष्णा का मतलब समझ में आता है पर विशाखा का मतलब क्या होता है? मुझे पता है विशाखा श्री राधा रानी की अष्ट महासाखियों में से एक थी पर फिर भी विशाखा का मतलब क्या होता है ?" इसके उतर में श्री महाराज जी ने कहा “ वि” मतलब “अनोखी” और “शाखा” मतलब “पेड़ की एक टहनी” – दिव्य प्रेम की उस अनोखी शाखा को विशाखा कहते हैं और यही गुण विशाखा सखी, जो की अष्टमहासाखियों में से एक हैं, उनमें भी देखा जाता हैं । इस प्रकार हम (बड़ी दीदी) को विशाखा महासखी का स्वरुप भी कह सकते हैं । वैसे उनका सत्य स्वरुप कौन जान सकता है ?
मुझे पता है की श्री महाराज जी का सम्पूर्ण परिवार - उनके बच्चे, अम्मा जी, आजी और सब परिवारजन अपने वास्तविक स्वरूप को छुपाते हैं ।
जब विशाखा जी (बड़ी दीदी) ग्यारह साल की थीं मुझे याद है एक बार मैं “ देखु सखी, झूमत आवत श्याम ” कीर्तन करा रही थी। पद सुनते ही बड़ी दीदी भाव में आ गयीं और आधे घंटे तक नाचती रहीं । और जब वो बहुत ही छोटी थीं, लगभग पाँच साल की, तो जब भी “हरि बोल” कीर्तन होता वो भाव में आधा घण्टे से लेकर ४५ मिनट तक नाचती रहतीं । और सब लोग उनके अद्भुत नृत्य पर बलि-बलि जाते ।
बड़ी दीदी मयूर नृत्य में भी बहुत विलक्षण थीं। उन्होंने किसी से मयूर नृत्य सीखा नहीं था। जब भी श्री महाराज जी किसी उत्सव पर सब सत्संगियो के समक्ष भोग ग्रहण करते, बड़ी दीदी मयूर नृत्य करके श्री महाराज जी का और सबका मनोरंजन करती थीं ।
बड़ी दीदी बहुत ही विलक्षण चित्रकार भी हैं । उन्होंने बहुत सुन्दर राधा-कृष्ण और श्री महाराज जी के चित्र बनाये हैं । बहुत से सत्संगियों के पास उनके बनाये या प्रिंटिड चित्र भी हैं ।
सबसे अनोखी बात जो मैंने बड़ी दीदी में बचपन से देखी है की उनके मुख मंडल पर हर क्षण, हर परिस्थिति में मुस्कान रहती है। एक समय होली के उत्सव पर मैंने सब परिवार और कुछ मुख्य सदस्यों के लिए हिंदी फिल्मों के गानों पर आधारित प्रशंसा के शीर्षक बनाये। मैं शीर्षक गाती और सुन कर सबको बताना होता की वह शीर्षक किसके लिए है ? जब मैंने विशाखा दीदी के लिए बनाया हुआ शीर्षक गाया :-
“ मस्त चहकती चिड़ियाँ हूँ मैं चाहे जिससे प्यार करूँ
चाहे गुरूजी चाहे महाराज जी चाहे पिता सौ बार कहूँ
सब रिश्ते हैं मेरे लिए मेरे लिए मेरे लिए ”
जैसे ही मैंने गाना अभी समाप्त ही किया सब लोग एक स्वर में बोले “विशाखा”। उस समय वो बहुत छोटी थीं और सब उनसे बड़े लोग विशाखा ही कह कर पुकारा करते थे या फिर विशाखा दीदी कह कर बुलाते थे बड़ी दीदी नहीं। इस प्रकार विशाखा दीदी हर समय प्रसन्न चित्त रहती थीं ।
अब जब श्री महाराज जी प्रत्यक्ष रूप से संसार में चले गए है और सब जिम्मेदारियाँ तीनों दीदियों, पर प्रमुख रूप से बड़ी दीदी, पर हैं। बड़ी दीदी को संस्था के अनेकों प्रोग्राम को देखना होता है और वो सारे कार्यक्रम वैसे ही चला रही हैं जैसे श्री महाराज जी के समय पर चलते थे। वो सारी जिम्मेदारियाँ सुचारू रूप से निभा रही हैं और सारे प्रोग्राम बिलकुल वैसे ही नियम से चला रही हैं जैसे श्री महाराज जी के समय में चलते थे ।
हम सब श्री महाराज जी को देख कर आश्चर्य चकित हो जाते थे की वो इतनी यात्रा कैसे करते थे और कभी भी थकान महसूस नहीं करते थे । मैं एक शहर से दूसरे शहर में जाती हूँ प्रोग्राम के लिए तो थोड़े ही दिन में थक जाती हूँ और श्री महाराज जी हर दो दिन में यात्रा करते थे एक शहर से दूसरे शहर से तीसरे शहर और कभी भी थके हुए नहीं दिखते थे। कई बार मैंने भी श्री महाराज जी के साथ यात्रा करी हैं मैं थक जाती थी पर महाराज जी कभी थकान महसूस नहीं करते दिखे। बड़ी दीदी भी बिलकुल वैसे ही श्री महाराज जी के समान यात्रा करती हैं, सारी जिम्मेदारियाँ निभा रही हैं और बहुत ही सुचारु रूप से चला रही हैं और हर समय प्रसन्न चित्त भी रहती हैं ।
कोई भी व्यक्ति बड़ी दीदी के पास जाता है वो सदा नरमी से, प्यार से बात करती हैं। मैंने ऑनलाइन ब्लॉग पर देखा जब स्कूल के विद्यार्थियों को जैकेट्स बाँटी जा रही थीं, बड़ी दीदी स्वयं अपने कर-कमलों से बच्चों को जैकेट पहना रही थीं, उनको प्यार दुलार कर रही थीं । उनकीं ममतामयी चरित्र की झाँकी देखने को मिलती हैं।
यह सब बातें एक ही बात सिद्ध करती है की बड़ी दीदी प्रेम की अद्भुत शाखा हैं ।
एक और बात जो मैंने बचपन से बड़ी दीदी में देखी हैं की जब भी उनके ऊपर जिम्मेदारियों का पहाड़ आता हैं , श्री महाराज जी के लिए प्रतिकूल परिस्थिति को सम्भालना आसान था – श्री महाराजी के एक बार कहने की देर होती थी “ अरे तुम ऐसा नहीं करो...” बस कोई प्रश्न या आनाकानी नहीं करता था और चुपचाप मान लेता था और बुरा भी महसूस नहीं करता था। पर अब अगर बड़ी दीदी को कभी किसी से कुछ कहना या किसी को कुछ करने से रोकना होता है तो उनको बड़ी नरमी से परिस्थिति को समझ-भूझ कर बोलना होता है नहीं तो लोग बुरा मान जाते हैं ।अर्थात् बड़ी दीदी श्री महाराज जी की तरह लोगों को आज्ञा नहीं दे पातीं क्योंकि लोगों में बड़ी दीदी के लिए श्री महाराज जी जैसा आदर भाव नहीं है। हमारी मायिक बुद्धि बड़ी दीदी के लिए श्री महाराज जी जैसे आदर भाव मानने की अनुमति नहीं देती । हम सब जानते है श्री महाराज जी ने अपने जीवन काल में ही दीदियों को संस्था के प्रतिदिन की गतिविधियों का कार्यभार सौंप दिया था और इसलिए हम सब में दीदियों के लिए भी वैसे ही आदर सम्मान की भावना, आज्ञा पालन की भावना होनी चाहिए जैसे श्री महाराज जी के लिए थी पर हमारी मायिक बुद्धि हमें धोका देती है। हम सब को स्वयं आभास है कि दीदियाँ दिव्य स्वरूप हैं ।
एक बार मैंने श्री महाराज जी से इस विषय में प्रश्न किया था की क्या महापुरुष के सब परिवार वाले दिव्य होते हैं ? श्री महाराजी ने कहा , “नहीं ! माँ और पत्नी महापुरुष होते हैं, वो शत प्रतिशत सत्य है। बच्चे महापुरुष हो भी सकते हैं या फिर कोई ऊँची अवस्था के योगी होते हैं या फिर सामान्य पुरुष भी हो सकते हैं । ऊपर बताई हुई बड़ी दीदी के चरित्र के विषय में समझ कर हम सब स्वयं अनुमान लगा सकते है की दीदियाँ कौन हो सकती हैं? यह हमारी भावना और हमारी ज्ञान की समझदारी पर निर्भर करता है। दीदियों का व्यक्तित्व कोई सामान्य नहीं है। विशाखा जी के चेहरे पर जो चमक है वो बड़ी अनोखी है।
एक बार की बात है श्री महाराज जी तब भगवा वस्त्र नहीं पहनते थे, अन्य रंगो के और बहुत बार सफ़ेद वस्त्र ही पहनते थे। इसलिए उन्हें भीड़ में भी पहचानना सरल था। पर जब भी यदि श्री महाराज जी कहीं बाजार में अगर खड़े हो जाते थे तो जो भी कोई उनके आस-पास से निकलता तो उनकी ओर आशर्य-चकित देखता हुआ निकलता था क्योंकि श्री महाराज जी के व्यक्तित्व में अनोखी सी दमक थी। वही अनोखी दमक मुझे बड़ी दीदी में दिखती है। उनमें बड़ी अनोखी आभा है, कितनी भी परेशानी आ जाए, कितनी भी जिम्मेदारियाँ आ जायें वो सदा अपने कार्यभार को प्रसन्नता पूर्वक पूर्ण करने में तत्पर रहती हैं ।
उनके यही सब गुण हम सबको यह प्रेरणा देते हैं की हमें भी प्रसन्नचित्त रह कर अपनी संसारी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए और कभी शिकायत नहीं करनी चाहिए जैसे वो हमें प्रतिदिन कर के दिखा रही हैं ।
कई बार लोग उनके साथ ठीक से व्यवहार नहीं करते, कई बार बड़ी दीदी के विषय में प्रतिकूल बाते करते हैं । बड़ी दीदी सब कुछ अनदेखा करते हुए क्षमा कर देती हैं और अपने प्रतिदिन की सेवा में तत्पर रहती हैं । वो रूकती नहीं हैं, दुखी नहीं होतीं। यह सब गुण हम लोगों के लिए एक उच्चतम प्रेरणा का उदाहरण है। बड़ी दीदी हम सब को अपने आप सब कुछ करके सिखा रही हैं की कैसे श्री महाराज जी की सेवा की जाती है।
बड़ी दीदी शारीरिक रूप से पहले की भाँति स्वस्थ्य न होते हुए भी अपनी सेवा में पीछे नहीं रहतीं । हर समय तन मन धन से सेवा करती हैं और हम सब के लिए यह उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं । हम लोग कभी-कभी साधना न कर पाने का कारण किसी व्यक्ति विशेष के प्रतिकूल व्यवहार, परिस्थिति या वातावरण को बताते हैं । बड़ी दीदी किसी भी कारणवश, कितनी भी कठिन परिस्थिति आये कभी अपनी सेवा साधना से विचलित होती नहीं दिखाई देतीं । वो हम सब को प्रेरणा दे रही हैं कि हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए श्री महाराज जी के चरण कमलों की भक्ति नित्य निरंतर करनी है, चाहे कितनी भी प्रतिकूल परिस्थियाँ आ जायें या कोई कुछ भी कहे।
चाहे कैसा भी वातावरण हो हमारे समक्ष, हमें निरंतर श्री महाराजजी के चरणों की भक्ति करनी है। हम अपने मन में ह्रदय में कैसे ही भक्ति करें, कोई व्यक्ति जान नहीं सकता या हमें रोक नहीं सकता। उदाहरण के रूप में भक्त ध्रुव और प्रह्लाद हैं । उनके पिता ने उन पर कितने प्रतिबन्ध लगाए शारीरिक रूप से - उनके शरीर को रस्सी से बाँध दिया पर प्रह्लाद ने कहा, “ मेरे शरीर को कैसे भी बाँध दो, मेरे शरीर को भगवान की भक्ति नहीं करनी है पर मेरे ह्रदय को कोई भगवान का नाम लेने से, उनकी भक्ति करने से, कोई नहीं रोक सकता।” इसी प्रकार हमें भी श्री महाराज जी के चरणकमलों को, उनके बताये तत्त्व ज्ञान को, उनके दर्शन शास्त्र को अपने ह्रदय में विराजमान करना है - चाहे कहीं भी हों, कैसी भी परिस्थिति आये, परिवार में संसार में हमारे सामने।
वैसे तो बड़ी दीदी के बारे में बहुत कुछ और भी है बताने के लिए पर समय का ध्यान रखते हुए यही पर समाप्त करती हूँ।