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2022 जगद्गुरुत्तम दिवस अंक

लक्ष्य प्राप्त करना है तो एकाग्रचित्त रहो

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कौरवों और पांडवों को शिक्षा प्रदान करने के लिए गुरु द्रोणाचार्य को नियुक्त किया गया था । आपने एक दिन लक्ष्य साधने की शिक्षा देने हेतु चिड़िया के आकार का लक्ष्य पेड़ पर रखकर उसकी आंख को भेदने के लिए एक-एक करके सभी शिष्यों को आमंत्रित किया । बाण का संधान करने से पूर्व प्रत्येक शिष्य से द्रोणाचार्य ने एक प्रश्न किया।

सबसे पहले दुर्योधन ने संधान किया तब द्रोणाचार्य जी ने पूछा ,"तुम क्या देख रहे हो?"

​उत्तर आया “मुझे चिड़िया, पत्तियाँ, पेड़ आदि...दिख रहे हैं”।

द्रोणाचार्य जी ने धनुष नीचे रखने को कहा और दुर्योधन को वापस भेज दिया । फिर युधिष्ठिर से यही प्रश्न किया और उत्तर भी वही आया। सभी से यही प्रश्न किया गया। सभी का उत्तर लगभग समान था। किसी ने अपने भाइयों और अपने गुरु को भी देखने की बात कही। सभी राजकुमार आपस में खुसपुसाने लगे कि आखिर द्रोणाचार्य को क्या उत्तर चाहिए। एक-एक करके गुरु जी ने सभी को बिना बाण छोड़े ही बिठा दिया। यहाँ तक कि स्वयं द्रोणाचार्य जी के पुत्र अश्वत्थामा भी नहीं समझ पाए कि उनके पिता क्या चाहते हैं। अंततः केवल अर्जुन बचा।
एकाग्र चित्त अर्जुन अर्जुन और चिड़िया की आँख
​द्रोणाचार्य ने अर्जुन से निशाना साधने को कहा और जब अर्जुन ने धनुष बाण उठाकर संधान किया तब गुरु ने पूछा “तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है”? 

​अर्जुन ने उत्तर दिया “चिड़िया की आँख” ।

गुरुजी ने पूछा "क्या तुम्हें पेड़ दिखाई दे रहा है?"

उत्तर आया, "नहीं, केवल चिड़िया की आँख।"

उसके पश्चात द्रोणाचार्य ने आसपास की सभी वस्तुओं के बारे में एक-एक करके पूछा। पेड़ का तना, पत्तियाँ, फूल, फल, उसके भाई, कौरव और स्वयं द्रोणाचार्य।

सभी के लिए अर्जुन ने 'नहीं' में उत्तर दिया और कहा मुझे सिर्फ चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है।
तब द्रोणाचार्य ने अर्जुन को बाण छोड़ने को कहा। अर्जुन ने जैसे ही बाण छोड़ा वह सीधे चिड़िया की आँख का भेदन करता हुआ पार गया। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को गले लगा लिया।

तब गुरु द्रोणाचार्य ने सब शिष्यों को समझाया, "जब तुम कुछ प्राप्त करना चाहते हो तो उसी लक्ष्य पर एकाग्रचित्त रहो । उसके आसपास व्यवधान डालने वाली सभी वस्तुओं पर ध्यान न देते हुए अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहो । अन्यथा लक्ष्य प्राप्ति नहीं होगी।"
यह कलियुग है। इस युग में मत - मतांतर का बाहुल्य है और लगातार नए सिद्धांत भी बन रहे हैं। अतः साधारण मनुष्य के लिए स्वयं सही मार्ग का चयन सुदुर्गम ही नहीं बल्कि असंभव है । परंतु यदि आप वास्तव में भगवान को प्राप्त करना चाहते हैं और किसी सच्चे भगवत् प्राप्त संत का सत्संग आपको प्राप्त है तब अपने गुरु के आदेशों का पूर्णरूपेण पालन करने से परम चरम लक्ष्य बड़ी सरलता से प्राप्त हो जाएगा । अन्य सिद्धांत न पढ़ो न सुनो क्योंकि वे सब तुम्हारे मस्तिष्क में संशय पैदा करेंगे और

संशयात्मा विनष्यति।

संशय आते ही साधना में ब्रेक लग जाएगा। अब उस संशय का निवारण करने के लिए प्रयत्न करोगे । यदि सारा जीवन संशय करने में और उसका निवारण करने में लगा दिया तो फिर लक्ष्य प्राप्ति हेतु साधना कब करोगे?

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