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2021 शरद  पूर्णिमा अंक​

कृपालु लीलामृतम् : लड्डू चोर

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 कृपालु जी महाराजश्री महाराज जी - १९५० दशक के दौरान
श्री महाराज जी की यह लीला उस समय की है जब वे प्रतापगढ़ में श्री महाबनी जी के स्थान पर निवास करते थे । प्रतापगढ़ में एक राजस्थानी महिला भी रहती थीं। सब लोग उनको गोदावरी बुआ जी कह कर सम्बोधित करते थे ।

गोदावरी बुआ जी की श्री महाराज जी में अपार श्रद्धा थी । वे श्री महाराज जी को अपने घर पर आमंत्रित कर​ प्रेमपूर्वक​ भोजन कराती थीं । वे चूरमे के लड्डू बनाने में निपुण थीं । अतः भोजन के उपरांत​ वे चूरमे के लड्डू का भोग अवश्य लगाती थीं ।

जब श्री महाराज जी गोदावरी बुआ जी के घर से भोजन करके लौटते तो उनके बनाये लड्डुओं की
भूरि-भूरि प्रंशसा करते । महाबनी जी श्री महाराज जी को पुत्र समान मानते थे । प्रत्येक बार की तरह एक दिन जब श्री महाराज जी ने प्रशंसा की तो उन्हें विनोद में डाँटते हुए कहते कि, "तुम्हें शरम नहीं आती । आप तो लड्डू खा कर आते हो और उनकी इतनी प्रशंसा करते हो । ये नहीं कि एक लड्डू हमारे लिए भी ले आया करो "।

अगली बार जब श्री महाराज जी पुनः गोदावरी बुआ जी के घर भोजन करने गये तो प्रत्येक बार की तरह उन्होंने दो लड्डू परोसे । श्री महाराज जी नें एक लड्डू चखते हुये कहा कि, "ये लड्डू बड़े स्वादिष्ट हैं, कृपया एक और ले आइये"। जब वे और लड्डू लाने के लिये कमरे से गयीं, श्री महाराज जी नें स्फुर्ति से एक लड्डू अपने कुरते की जेब में रख लिया । जब बुआ जी लड्डू लेकर लौटीं तो यह देखकर बड़ी प्रसन्न हुयी कि श्री महाराज जी को लड्डू प्रिय हैं और उन्होंने दोनों लड्डू खा लिये।

जब उन्होंने लड्डू थाली में रखा, श्री महाराज जी पुनः बोले," एक और लड्डू है क्या ?"। बुआ जी खुशी-खुशी एक और लड्डू लाने के लिये कमरे से गयी और श्री महाराज जी ने तपाक से एक और लड्डू अपने कुरते की जेब में रख लिया । जब तीसरी बार​ बुआ जी लड्डू लेकर आयीं उसको प्रेमपूर्वक ग्रहण करके श्री महाराज जी लौट आये ।

जैसे ही उन्होंने घर में प्रवेश किया, वे जोर से बोले, "महाबनी! देखो मैं क्या लाया हूँ "। जैसे ही महाबनी जी आये, श्री महाराज जी ने मुस्कुराते हुए अपनी जेब से दोनों लड्डू निकालते हुए कहा कि, "देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ", और फिर उन्होंने लड्डू चोरी करने का सारा वृतांत सुनाया।

श्रीकृष्ण प्रेम के वशीभूत हो कर, सखाओं के लिये मक्खन और खीर चुरा कर, ब्रज गोपिकाओं का चित्त चुरा कर, माखनचोर, खीर चोर, चितचोर कहलाये । उसी प्रकार हमारे प्यारे श्री महाराज जी, उस दिन, लड्डू चोर बन गये ।


नैतिक शिक्षा- भगवान एवं उनके वास्तविक संत कभी भी कोइ अनुपयुक्त कार्य नहीं कर सकते। वे आत्माराम हैं अतः वे सब कार्य अपने भक्तों की प्रसन्नता के लिये ही करते हैं । उनके प्रत्येक कार्य का उद्देश्य जीव कल्याण के लिये ही होता है । उनकी प्रत्येक चेष्टा जीव का मन श्रीकृष्ण के पावन चरणों में आकृष्ट करने हेतु ही होती है ।


येन-केन प्रकारेण मन: कृष्णे निवेशयेत ||
भक्ति रसामृत सिंधु - 1.2.4
अतः अपने प्रिय गुरुदेव के प्रयास को सफल बनाने हेतु "किसी भी प्रकार से मन श्रीकृष्ण को समर्पित करें" ।

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