2022 होली अंक
कृपालु लीलामृतम् - निराधार का आश्रय लेना मूर्खता है |

बचपन में श्री महाराज जी अत्यंत नटखट थे। अपने कुछ मित्रों के साथ मनगढ़ से कुंडा स्कूल पैदल जाया करते थे।स्कूल जाते समय रास्ते में पड़ने वाले गन्ने के खेतों, आम के बागों, तालाबों के किनारे खेला करते थे ।जब प्रार्थना की घंटी बजने का कुछ समय शेष बचता तो दौड़ कर समय से प्रार्थना में शामिल हो जाते थे।
श्री महाराज जी पेड़ों पर बंदर की तरह बड़ी फुर्ती से चढ़ जाते थे ।एक बार वे अपने मित्रों के साथ आम के बगीचे में गए । सभी लड़कों ने अधिक ऊंचाई पर एक पके हुए आम को देखा। पत्थर मारकर उसे गिराने की कोशिश की परंतु कामयाब नहीं हुए । अन्य सखाओं ने उस आम तक पहुंचने की हिम्मत नहीं की। परंतु श्री महाराज जी ने चुनौती देते हुए कहा कि मैं इसे तोड़ सकता हूँ।
आम के लालच में कुछ लड़कों ने उनसे उसको तोड़ने के लिए कहा। महाराज जी फुर्ती से उस पेड़ पर चढ़े और आम तक पहुंचने की चेष्टा की परंतु आम उनकी पहुंच से दूर था और डाल बहुत पतली थी । क्योंकि आम पका नहीं था इसलिए स्पर्श मात्र से नहीं टूटा और श्री महाराज जी ने उस पतली सी डाल पर चढ़कर उसको तोड़ने की कोशिश की परंतु वह महाराज जी का भार सहन न कर सकी अतः वह डाल टूट गई और श्री महाराज जी नीचे गिरने लगे।
गिरते समय उन्होंने दूसरी शाखा को पकड़ने की कोशिश की परंतु वह भी टूट गई और श्री महाराज जी नीचे जमीन पर उन दोनों शाखाओं के साथ आ गिरे और उनको काफी चोट लग गई।
श्री महाराज जी पेड़ों पर बंदर की तरह बड़ी फुर्ती से चढ़ जाते थे ।एक बार वे अपने मित्रों के साथ आम के बगीचे में गए । सभी लड़कों ने अधिक ऊंचाई पर एक पके हुए आम को देखा। पत्थर मारकर उसे गिराने की कोशिश की परंतु कामयाब नहीं हुए । अन्य सखाओं ने उस आम तक पहुंचने की हिम्मत नहीं की। परंतु श्री महाराज जी ने चुनौती देते हुए कहा कि मैं इसे तोड़ सकता हूँ।
आम के लालच में कुछ लड़कों ने उनसे उसको तोड़ने के लिए कहा। महाराज जी फुर्ती से उस पेड़ पर चढ़े और आम तक पहुंचने की चेष्टा की परंतु आम उनकी पहुंच से दूर था और डाल बहुत पतली थी । क्योंकि आम पका नहीं था इसलिए स्पर्श मात्र से नहीं टूटा और श्री महाराज जी ने उस पतली सी डाल पर चढ़कर उसको तोड़ने की कोशिश की परंतु वह महाराज जी का भार सहन न कर सकी अतः वह डाल टूट गई और श्री महाराज जी नीचे गिरने लगे।
गिरते समय उन्होंने दूसरी शाखा को पकड़ने की कोशिश की परंतु वह भी टूट गई और श्री महाराज जी नीचे जमीन पर उन दोनों शाखाओं के साथ आ गिरे और उनको काफी चोट लग गई।
संदेश : वेद कहता है
प्लवा ह्येते अदृढा यज्ञरूपाः
आनंद प्राप्त करने के लिए कर्म मार्ग का पुल अत्यंत दुर्बल है। यह बीच में ही टूट जाएगा । अतः अनंतानंद प्राप्त करने के लिए कर्म मार्ग का अवलंब लेना नितांत मूर्खता है। कर्म का अंतिम फल स्वर्ग है जहां सीमित सुख है और वह भी सीमित काल के लिए है। उसके पश्चात पुनः 84 लाख हीन योनियों में भटकना होता है। इसी प्रकार भक्ति रहित ज्ञान का अंतिम उद्देश्य अज्ञान का नाश है । अज्ञान को समाप्त करने के पश्चातज्ञान स्वयं भी समाप्त हो जाता है और सच्चे ज्ञान के अभाव में वो आत्मज्ञानी के अहंकार को बढ़ा देता है जिससे ज्ञानी का पतन हो जाता है।
इसका तात्पर्य यह है कि सच्ची भक्ति के बिना सभी पथ कमजोर टहनियों के समान हैं और वो हमें हमारे आनंद प्राप्ति के लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकते ।अतः बुद्धिमता इसी में है कि भक्ति का आश्रय ले क्योंकि यही वो पथ है जो हमें भवसागर से पार पहुंचा कर आनंद की प्राप्ति कराने में सक्षम है।
यह लेख पसंद आया !
उल्लिखित कतिपय अन्य प्रकाशन आस्वादन के लिये निम्न चित्रों पर क्लिक करें
सिद्धान्त, लीलादि |
सिद्धांत गर्भित लघु लेखप्रति माह आपके मेलबोक्स में भेजा जायेगा
|
सिद्धांत को गहराई से समझने हेतु पढ़ेवेद-शास्त्रों के शब्दों का सही अर्थ जानिये
|
हम आपकी प्रतिक्रिया जानने के इच्छुक हैं । कृप्या contact us द्वारा
|
नये संस्करण की सूचना प्राप्त करने हेतु subscribe करें
|