धनतेरस |
धनतेरस को यमदीप के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाता है।
एक बार दानवों और देवों ने अमृत निकालने के लिए दिव्य क्षीर सागर का मंथन किया। इस मंथन को समुद्रमंथन कहा जाता है।
मंथन के अंत में धन्वंतरि वैद्य (देवताओं के चिकित्सक) अमृत कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुये । इसीलिए, इस दिन को धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है।
यह अमृत दानवों और देवताओं दोनों का अभिष्ट लक्ष्य था। आप सभी जानते ही होंगे कि कैसे श्री कृष्ण ने मोहिनी नामक सुंदरी बनकर धर्म परायण देवताओं को अमृत पिलाया और दानवों को मादक पेय पिलाया । यह अमृत देवताओं को युवा बनाता है और उन्हें कोई शारीरिक कष्ट, व्याधि और मल नहीं होता।
यह अमृत आज भी स्वर्ग में उपलब्ध है । यह अमृत भी एक दिन मृत कर देता है । पुण्य समाप्त होने पर देवता का शरीर छिन जाता है ।
आमतौर से लोग इस दिन सोना खरीदते हैं और महालक्ष्मी की पूजा करते हैं । वे महालक्ष्मी को प्रसन्न करके समृद्ध होना चाहते हैं । लेकिन दुखद सच्चाई यह है अंत में यह सब यहीं छूट जाता है ।
धनतेरस के शुभ अवसर पर 2005 में जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज ने संसार को भक्ति मंदिर का अनोखा उपहार दिया । भक्ति वह अमृत है जो अनंत जीवन, अनंत ज्ञान और अनंत आनंद प्रदान करती है [1][2][3][4]। यह मंदिर हमारे प्यारे गुरुदेव की जन्मस्थली श्री कृपालु धाम मानगढ़ में स्थित है।
हजारों दिव्य प्रेम के पिपासु भक्तगण प्रति वर्ष अमृतमयी भक्ति पाकर कृतार्थ होने हेतु साधना भक्ति करने के लिए कृपालु धाम आते हैं । आप भी भक्ति की अजस्र धारा में डूबने हेतु वार्षिक भक्ति शिविर में भाग ले सकते हैं ।
एक बार दानवों और देवों ने अमृत निकालने के लिए दिव्य क्षीर सागर का मंथन किया। इस मंथन को समुद्रमंथन कहा जाता है।
मंथन के अंत में धन्वंतरि वैद्य (देवताओं के चिकित्सक) अमृत कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुये । इसीलिए, इस दिन को धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है।
यह अमृत दानवों और देवताओं दोनों का अभिष्ट लक्ष्य था। आप सभी जानते ही होंगे कि कैसे श्री कृष्ण ने मोहिनी नामक सुंदरी बनकर धर्म परायण देवताओं को अमृत पिलाया और दानवों को मादक पेय पिलाया । यह अमृत देवताओं को युवा बनाता है और उन्हें कोई शारीरिक कष्ट, व्याधि और मल नहीं होता।
यह अमृत आज भी स्वर्ग में उपलब्ध है । यह अमृत भी एक दिन मृत कर देता है । पुण्य समाप्त होने पर देवता का शरीर छिन जाता है ।
आमतौर से लोग इस दिन सोना खरीदते हैं और महालक्ष्मी की पूजा करते हैं । वे महालक्ष्मी को प्रसन्न करके समृद्ध होना चाहते हैं । लेकिन दुखद सच्चाई यह है अंत में यह सब यहीं छूट जाता है ।
धनतेरस के शुभ अवसर पर 2005 में जगद्गुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज ने संसार को भक्ति मंदिर का अनोखा उपहार दिया । भक्ति वह अमृत है जो अनंत जीवन, अनंत ज्ञान और अनंत आनंद प्रदान करती है [1][2][3][4]। यह मंदिर हमारे प्यारे गुरुदेव की जन्मस्थली श्री कृपालु धाम मानगढ़ में स्थित है।
हजारों दिव्य प्रेम के पिपासु भक्तगण प्रति वर्ष अमृतमयी भक्ति पाकर कृतार्थ होने हेतु साधना भक्ति करने के लिए कृपालु धाम आते हैं । आप भी भक्ति की अजस्र धारा में डूबने हेतु वार्षिक भक्ति शिविर में भाग ले सकते हैं ।