श्री राधाष्टमी |
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अधिकांश लोग श्रीकृष्ण के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, परंतु श्रीराधा के बारे में पूर्णतया अनभिज्ञ हैं । बल्कि श्री राधा तत्व के ज्ञान के अभाव में, लोग उनकी लीलाओं पर संदेह करते हैं और उनकी आलोचना करते हैं । तो राधाष्टमी के शुभ अवसर पर, आइए हम श्री राधा के परम पवित्र चरित्र का दिगदर्शन करें।
श्री राधा, जो बरसाना (यूपी भारत) की भूमि में श्री वृषभानुजी और माता कीर्ति की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं । कृपा की अथाह स्रोत श्री राधा ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी (8वें दिन) को जन्म लेकर इस पृथ्वी को कृतार्थ किया था । भाद्रपद महीने का शुक्लपक्ष आमतौर पर अगस्त में आता है। श्रीकृष्ण का अस्तित्व श्री राधा रानी से है, क्योंकि श्री राधा रानी उनकी आत्मा हैं। त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु शंकर) श्रीकृष्ण के चरण कमलों को नमन करते हैं, और वे श्रीकृष्ण श्री राधा के चरण कमलों को नमन करते हैं।
श्री राधा श्री कृष्ण की प्रेमा शक्ति हैं। श्रीकृष्ण की अगणित शक्तियों में प्रेम की शक्ति सर्वोच्च है और इतनी विचित्र है कि वह अपने स्वामी के अधीन न रहकर स्वयं स्वामी को वश में कर लेती है। श्रीकृष्ण की सभी शक्तियाँ अनंत, दिव्य और साकार हैं।
दिव्य प्रेम के आठ स्तर होते हैं -
1.प्रेम 2. स्नेह 3.मान 4. प्रणय 5. राग 6. अनुराग 7. भाववेश और 8 महाभाव ।
उनमें से प्रत्येक स्तर पिछले स्तर की तुलना में उच्चतर है। इस प्रकार, महाभाव दिव्य प्रेम के 8 स्तरों में उच्चतम है। महाभाव के प्रेम के और भी स्तर हैं जिनमें से मादन महाभाव सबसे अंतरंग और सर्वोच्च है। श्री राधा मादन महाभाव का साकार रूप हैं।
त्रिदेव के ईश सर्वशक्तिमान और अजेय भगवान श्री कृष्ण, की अनूठी विशेषता ये है कि वे प्रेम के आधीन हो जाते हैं। इसलिए वे हमेशा अपने भक्तों के वश में रहते हैं। फिर श्री राधा, जो मादन महाभाव की अवतार हैं, की क्षमताओं को कौन परिभाषित कर सकता है! निष्काम, अनन्य, निःस्वार्थ भाव से प्रियतम के सुख हेतु की गई सेवा ही श्रीराधा प्रेम का आदर्श है। यह इस धरती पर उनके सनातन परिकर "गोपियों" के साथ प्रकट हुईं और प्रेम करना सिखाया । नारद जी ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है
श्री राधा, जो बरसाना (यूपी भारत) की भूमि में श्री वृषभानुजी और माता कीर्ति की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं । कृपा की अथाह स्रोत श्री राधा ने भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी (8वें दिन) को जन्म लेकर इस पृथ्वी को कृतार्थ किया था । भाद्रपद महीने का शुक्लपक्ष आमतौर पर अगस्त में आता है। श्रीकृष्ण का अस्तित्व श्री राधा रानी से है, क्योंकि श्री राधा रानी उनकी आत्मा हैं। त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु शंकर) श्रीकृष्ण के चरण कमलों को नमन करते हैं, और वे श्रीकृष्ण श्री राधा के चरण कमलों को नमन करते हैं।
श्री राधा श्री कृष्ण की प्रेमा शक्ति हैं। श्रीकृष्ण की अगणित शक्तियों में प्रेम की शक्ति सर्वोच्च है और इतनी विचित्र है कि वह अपने स्वामी के अधीन न रहकर स्वयं स्वामी को वश में कर लेती है। श्रीकृष्ण की सभी शक्तियाँ अनंत, दिव्य और साकार हैं।
दिव्य प्रेम के आठ स्तर होते हैं -
1.प्रेम 2. स्नेह 3.मान 4. प्रणय 5. राग 6. अनुराग 7. भाववेश और 8 महाभाव ।
उनमें से प्रत्येक स्तर पिछले स्तर की तुलना में उच्चतर है। इस प्रकार, महाभाव दिव्य प्रेम के 8 स्तरों में उच्चतम है। महाभाव के प्रेम के और भी स्तर हैं जिनमें से मादन महाभाव सबसे अंतरंग और सर्वोच्च है। श्री राधा मादन महाभाव का साकार रूप हैं।
त्रिदेव के ईश सर्वशक्तिमान और अजेय भगवान श्री कृष्ण, की अनूठी विशेषता ये है कि वे प्रेम के आधीन हो जाते हैं। इसलिए वे हमेशा अपने भक्तों के वश में रहते हैं। फिर श्री राधा, जो मादन महाभाव की अवतार हैं, की क्षमताओं को कौन परिभाषित कर सकता है! निष्काम, अनन्य, निःस्वार्थ भाव से प्रियतम के सुख हेतु की गई सेवा ही श्रीराधा प्रेम का आदर्श है। यह इस धरती पर उनके सनातन परिकर "गोपियों" के साथ प्रकट हुईं और प्रेम करना सिखाया । नारद जी ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है
तत्सुखसुखित्वम्
नारद भक्ति दर्शन
श्री राधा श्री कृष्ण की पत्नी नहीं हैं । श्री राधा का स्थान पत्नियों की अपेक्षा अति उच्च है । श्री कृष्ण का विवाह रुक्मिणी जी और सत्यभामा आदि 16,108 रानियों से हुआ था । लेकिन उन्हें श्रीकृष्ण की पत्नी होने का अभिमान था । हालाँकि, उनका प्रेम भी बहुत ऊच्च स्तर का और निःस्वार्थ था, फिर भी कभी-कभी श्री कृष्ण से कुछ अपेक्षाएँ उनके प्रेम को कलंकित करती थीं । ऐसे प्रेम को समंजसा रति कहते हैं।
श्री राधा और गोपियों की लगातार एक ही इच्छा थी कि मैं अपने प्रिय को कैसे प्रसन्न करूँ। वहाँ प्रेम और सेवा की भावनाएँ श्री कृष्ण पर इतनी केंद्रित थीं कि उनके पास अन्य गोपियों के प्रति श्री कृष्ण के प्रेम को नापने का समय भी नहीं था तथा आवश्यकता भी नहीं थी । इसलिए, वे एक-दूसरे से ईर्ष्या नहीं करतीं थीं । गोपियों में एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं थी। नहीं तो उनका मन भी दूषित हो जाता। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य प्रियतम श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना था। इसलिए अगर वे श्रीकृष्ण को किसी अन्य गोपी के साथ खुश देखती थीं, तो वे उस गोपी से ईर्ष्या नहीं करती थीं । वरन उस गोपी से उनका मिलन कराने का भरसक प्रयत्न करती थीं ।
श्री राधा और गोपियों की लगातार एक ही इच्छा थी कि मैं अपने प्रिय को कैसे प्रसन्न करूँ। वहाँ प्रेम और सेवा की भावनाएँ श्री कृष्ण पर इतनी केंद्रित थीं कि उनके पास अन्य गोपियों के प्रति श्री कृष्ण के प्रेम को नापने का समय भी नहीं था तथा आवश्यकता भी नहीं थी । इसलिए, वे एक-दूसरे से ईर्ष्या नहीं करतीं थीं । गोपियों में एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं थी। नहीं तो उनका मन भी दूषित हो जाता। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य प्रियतम श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना था। इसलिए अगर वे श्रीकृष्ण को किसी अन्य गोपी के साथ खुश देखती थीं, तो वे उस गोपी से ईर्ष्या नहीं करती थीं । वरन उस गोपी से उनका मिलन कराने का भरसक प्रयत्न करती थीं ।
![श्रीराधा](/uploads/1/9/8/0/19801241/editor/7136859_1.jpg)
श्री राधा की रूप माधुरी, शक्ति और आभा प्रेम की कसौटी है। किसी भी शास्त्र में उनकी सुंदरता का शब्दों में निरूपण करने की क्षमता नहीं है। हालाँकि, यह इस तथ्य से काफी स्पष्ट है कि "श्री कृष्ण", जिनकी सुंदरता बड़े-बड़ों को मोहित कर लेती है, श्रीराधा के रूप से इतने मंत्रमुग्ध हो जाते हैं कि वे चेतना खो देते हैं। तब यह स्वतः स्पष्ट है कि उनकी तुलना में हज़ारों कामदेव (कामदेव) और रति (कामदेव की पत्नी) की गिनती ही क्या है । श्री राधारानी के रूप की उपमा श्री राधारानी ही हैं । क्योंकि वे सर्वोच्च प्रेम की साकार रूप हैं । इसलिए, जो श्रीकृष्ण के नाम से पूर्व श्री राधा का नाम उच्चारता है उदाहरण के लिए- "श्री राधा-कृष्ण", उसको श्रीकृष्ण की आराध्या निश्चित प्राप्त होती हैं ।
आमतौर पर यह मान्यता है कि श्री राधारानी एक गोपी थीं जो भगवान कृष्ण को सबसे अधिक प्रिय थीं, लेकिन यह सच नहीं है। वे निकुंज वृंदावन की साम्राज्ञी हैं जहाँ गोपियाँ और अष्ट महा सखियाँ निःस्वार्थ भाव से उसकी सेवा करती हैं। श्री राधारानी राधावल्लभ संप्रदाय की आत्मा हैं। राधावल्लभ संप्रदाय के अस्तित्व और प्रेरणा श्री राधा और श्री कृष्ण का लोकातीत प्रेम बंधन है। वेदों के अनुसार श्री राधारानी स्वयं श्रीकृष्ण की आत्मा है। ब्रह्मा विष्णु और शंकर द्वारा पूजे जाने वाले श्रीकृष्ण सबसे सुंदर, आकर्षक और अतुल्य वीर हैं। वह भी श्रीराधा के चरण कमलों को प्रणाम करते हैं। यह वर्णन करता है कि श्री राधा कितनी दिव्य और अतुल्य है।
आमतौर पर यह मान्यता है कि श्री राधारानी एक गोपी थीं जो भगवान कृष्ण को सबसे अधिक प्रिय थीं, लेकिन यह सच नहीं है। वे निकुंज वृंदावन की साम्राज्ञी हैं जहाँ गोपियाँ और अष्ट महा सखियाँ निःस्वार्थ भाव से उसकी सेवा करती हैं। श्री राधारानी राधावल्लभ संप्रदाय की आत्मा हैं। राधावल्लभ संप्रदाय के अस्तित्व और प्रेरणा श्री राधा और श्री कृष्ण का लोकातीत प्रेम बंधन है। वेदों के अनुसार श्री राधारानी स्वयं श्रीकृष्ण की आत्मा है। ब्रह्मा विष्णु और शंकर द्वारा पूजे जाने वाले श्रीकृष्ण सबसे सुंदर, आकर्षक और अतुल्य वीर हैं। वह भी श्रीराधा के चरण कमलों को प्रणाम करते हैं। यह वर्णन करता है कि श्री राधा कितनी दिव्य और अतुल्य है।